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श्री बदरीनाथ यात्रा में इन स्थानों का भी महत्व
देहरादून। न्यूज लाइव ब्यूरो
श्री बदरीनाथ धाम की यात्रा पर जा रहे हैं, तो भगवान बदरीविशाल के दर्शन के साथ इन धार्मिक स्थलों पर भी जाइए। श्री बदरीनाथ धाम में और आसपास स्थित धार्मिक और पौराणिक महत्व के स्थानों के बारे में जानिए। वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट की रिपोर्ट।
- बदरीनाथ धाम में ब्रह्म कपाल तीर्थ है, यहां पर पितृों को पिंड तर्पण दिया जाता है। कहा जाता है कि बदरीनाथ में ब्रह्म कपाल में पिंड तर्पण के बाद कहीं और पिंड तर्पण करने की आवश्यकता नहीं होती।
- बदरीनाथ में गर्म पानी के दो बडे कुंड हैं। जहां पर अनादि काल से गर्म पानी आ रहा है। इन्हीं कुंडों में स्नान के बाद भगवान के दर्शन करने की परंपरा है।
- भगवान बदरी विशाल के मंदिर परिसर में ही मां लक्ष्मी का मंदिर है। जहां कपाट खुलने के बाद मां लक्ष्मी विराजती हैं।
बदरीनाथ में ऋषिगंगा पार करने के बाद बामणी गांव है, जहां पर भगवान ने बालक रूप में बाल क्रीड़ा की थी, उसे लीला डुंगी कहा जाता है। यह जगह आज भी है। - बदरीनाथ मंदिर परिसर में घंटाकर्ण जो क्षेत्र के रक्षापाल हैं, का भी विग्रह है और माणा गांव में इनका मंदिर भी है।
- बदरीनाथ से तीन किमी दूर भारत का आखिरी गांव माणा है, जिसे शास्त्रों में मणीभद्र पुर कहा जाता है। यहां पर व्यास गुफा और गणेश गुफा भी है। कहा जाता है कि व्यास जी ने यहीं पर वेदों की रचना की और भगवान गणेश ने वेदों को लिपिबद्ध किया।
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- माणा गांव से करीब दो किमी. आगे मां सरस्वती का मंदिर है और यहां चट्टानों से होकर सरस्वती नदी का उद्गम है, जहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। विशाल पर्वतशिला के नीचे चट्टानों के बीच से निकल रही सरस्वती नदी का शोर रोमांचित करता है। नजदीक ही भीमपुल के नीचे से गुजरकर सरस्वती नदी शांत हो जाती है। थोड़ा ही आगे जाकर अलकनंदा नदी में मिल रही है।
- बदरीनाथ धाम में ही शेषनाग की भी एक पत्थर पर अद्भूत आकृति है, जिसका दर्शन पुण्य माना जाता है।
- बदरीनाथ मंदिर के पीछे नारायण पर्वत पर चरण पादुका तीर्थ है। यहां पर भगवान के चरणों के चिह्न हैं।
- बदरीनाथ जैसे पवित्र धाम की शोभा और गरिमा को विशाल नीलकंठ पर्वत अद्भुत बनाता है। बारह महीने बर्फ से लकदक इस नीलकंठ पर्वत पर शिव की आकृति सब को चमत्कृत कर देती है।
- बदरीनाथ पहुंचने के 45 किमी पहले जोशीमठ में भगवान नरसिंह की मूर्ति है। यहां पर नव दुर्गा मंदिर भी है। आदि गुरू शंकराचार्य ने इस धाम में साधना की थी। उन्हें जो दिव्य ज्ञान ज्योति मिली थी वह ज्योर्तिमठ ही है। इसे अब जोशीमठ कहा जाता है।
- यहां से 40 किमी तपोवन मार्ग पर भविष्य बदरी भी है। जहां पर भगवान भविष्य में दर्शन देंगे।
- बदरीनाथ से तीस किमी पहले पांडुकेश्वर पवित्र स्थान है, जहां पर ध्यान बदरी मंदिर है। यहां पर कुबेर का भी मंदिर है। यहां से दो किमी पहले गोविंद घाट से पहले हेमकुंड, लक्ष्मण मंदिर पहुंचा जा सकता है।