राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
बचपन में यही कोई सात-आठ साल का था, मां के साथ श्री शिव मंदिर के कीर्तन में जाता था। मंदिर में हर सोमवार कीर्तन होता था। बाकी दिनों में महिलाएं अपनी श्रद्धा से कीर्तन कराती रहती थीं। प्रसाद में मीठे बतासे चढ़ते थे। कुछ महिलाएं अपने घर से हलवा बनाकर भी ले आती थीं। मंदिर में कीर्तन से पहले दरियां बिछाना, फूल लेकर आना, किसी के घर से ढोलक लेकर आना, ये काम हमारे जिम्मे हो जाते थे। मैं पूरे टाइम कीर्तन में बैठता था। भजन मुझे नहीं आते थे, पर मैं गुनगुनाने की पूरी कोशिश करता था। हां, एक काम मुझे पसंद था, वो था चम्मच से ढोलक की लकड़ी पर टक टक करना, जिससे ढोलक के साथ एक और आवाज की जुगलबंदी होती थी।
यह वाकया मुझे उस समय याद आया, जब मैं भैरव कॉलोनी में मां भगवती कीर्तन मंडली से बातें कर रहा था। यह जानने की कोशिश कर रहा था, लगभग 40 वर्ष में महिलाओं की कीर्तन परंपरा में कितना बदलाव हुआ है। सच बताऊं, मुझे इस परपंरा में बहुत ज्यादा बदलाव महसूस नहीं हुआ, सिवाय इसके कि अब कीर्तन मंडलियां बन गई हैं, इनके बीच प्रतियोगिताएं होती हैं, अब प्रत्येक कीर्तन मंडली की अपनी वेशभूषा है, जो संस्कृति से उनके लगाव को प्रदर्शित करती है। महिलाएं कीर्तन की तैयारियों के लिए समय निकालती हैं और वाद्य यंत्र बजाना सीखती हैं।
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महिलाएं स्वयं भजन लिखती हैं या फिर सोशल मीडिया पर चल रहे गीतों को डायरी में नोट करती हैं और ईश्वर की आराधना में गाती हैं। फिल्मी गीतों की लय पर भी भजन लिखे जाते हैं। महिलाओं को गीत याद रहते हैं। कीर्तन मंडलियों से जब भी वार्ता की, सभी महिलाएं प्रसन्न नजर आईं। महिलाएं एक से बढ़कर एक भजन सुनाती हैं, चाहे सभी एक साथ मिलकर गाएं या फिर अकेले में भजन प्रस्तुत करें। बहुत सारे ऐसे गीत – भजन हैं, जिनके बारे में किसी को नहीं पता, ये किसने लिखे। पर, राज्य के किसी भी जिले में घूम आइए, महिलाएं लगभग यही गीत गाती हैं। कुमाऊंनी और गढ़वाली बोली में भी ऐसे गीत हैं, जिन्हें पूरे उत्तराखंड में कीर्तन मंडलियां गाती रहती हैं।
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बदलाव के दौर में भी, एक बात बहुत समान है, वो है सामाजिक भागीदारी की। स्वयं सहायता समूहों की भी अपनी-अपनी कीर्तन मंडलियां हैं, जो सामाजिक कार्यों में भी शामिल होती रही हैं। ऋषिकेश की भैरव कॉलोनी में महिलाओं की कीर्तन मंडली का नाम है, मां भगवती कीर्तन मंडली, जिसमें सात सदस्य हैं। करीब तीन महीने पहले महिलाओं ने मंडली का गठन किया। महिलाएं ढोलक और हारमोनियम बजाना सीख रही हैं।
कीर्तन मंडली की शुरुआत करने वालीं प्रेमा देवी बताती हैं, नवरात्र के समय पूजा पाठ के साथ महिलाएं कीर्तन भी करती हैं। हम पहले घर पर ही कीर्तन करते थे। उसी समय से कीर्तन मंडली बनाने का विचार मन में आया। हम कुछ महिलाओं ने भजन प्रस्तुति से महसूस किया कि हम अभ्यास करके भजनों को बेहतर तरीके से गा सकते हैं और फिर कीर्तन मंडली का शुभारंभ कर दिया। हम शाम को कीर्तन करते हैं, जिसमें भगवान का नाम भी ले लेते हैं और भजन प्रस्तुति को बेहतर बनाने का अभ्यास भी होता रहता है।
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संगीता कहती हैं, “औरतों का काम चूल्हा चौका है, हम दिनभर घर के कामकाज करते हैं। शाम को थोड़ा फ्री हो जाते हैं और कीर्तन करते हैं। मैं तो केवल कीर्तन सुनने आई थी, पर मुझे कहा गया तुम पढ़े लिखे हो, डायरी में भजन लिखो। मुझे बहुत अच्छा लगा और उस दिन से कीर्तन मंडली से जुड़ गई।”
कीर्तन मंडली की सदस्य रमा चौहान ग्रेजुएट हैं, बताती हैं “कीर्तन के समय हम भजनों में रम जाते हैं। हम कुछ समय के लिए सबकुछ भूल जाते हैं। मैं तो घर में खाना बनाते हुए, घर के अन्य कामकाज करते हुए भजन गुनगुनाती हूं। अच्छा लगता है, इस तरह हम तनावमुक्त रहना सीख जाते हैं।”
महिलाएं बताती हैं, “कीर्तन सामाजिक भागीदारी बढ़ाते हैं। कीर्तन मंडली बनने से पहले हम सभी महिलाएं अलग-अलग थे, पर अब हम सात महिलाएं एकसाथ हैं। हम अपने मन की बातें एक दूसरे के साथ साझा कर लेते हैं। बहुत सी बातों का समाधान मिल जाता है। सबसे महत्वपूर्ण पहलू तो यह है कि हम एक दूसरे की ताकत हैं।”
इसी तरह की जानकारी, टीएचडीसी कॉलोनी की कीर्तन मंडली- आपकी अपनी कीर्तन मंडली ऋषिकेश की सदस्यों से वार्ता में मिली। वार्ता के दौरान महिलाओं ने बताया, ” उनकी अपनी समिति भी है, जिसमें हर माह कुछ रकम जमा करते हैं। यह राशि बैंक में जमा रहती है। किसी को जरूरत पड़ती है तो तुरंत बैंक से निकालकर उनको सौंप देते हैं। इसमें कोई ब्याज भी नहीं देना होता। यह कुल मिलाकर ठीक इस तरह है, जैसे जरूरत पड़ने पर अपनी अलमारी में से पैसे निकाल लिए। महिलाएं हर सप्ताह कीर्तन करती हैं, जिसमें हिन्दी, गढ़वाली गीत गाए जाते हैं।”
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हमने गुमानीवाला स्थित ओम विहार कॉलोनी की ओम शक्ति कीर्तन मंडली से बात की। कीर्तन मंडली की सदस्य प्रभा थपलियाल बताती हैं, “उनकी मंडली को 23 साल हो गए हैं। कीर्तन मंडली मांगलिक कार्यों में शामिल होती है, जिसमें उनको सम्मान राशि मिलती है। यह राशि कीर्तन कराने वाला परिवार अपनी इच्छा से देता है। इस सम्मान राशि का इस्तेमाल कीर्तन मंडली की सदस्य महिलाएं नहीं करतीं। हमने इस पैसे से कॉलोनी में मंदिर का निर्माण कराया है। इस मंदिर में बैठकर महिलाएं कीर्तन करती हैं और अन्य धार्मिक आयोजन यहां संपन्न होते हैं।”
जिस भी कीर्तन मंडली से बात की, उन्होंने सभी ने गीत भजन सुनाए। महिलाएं बहुत अच्छा गाती हैं, जबकि उन्होंने कहीं से भी गायन या वाद्य यंत्रों की शिक्षा नहीं ली है। उनका कहना है, “उनको जब भी समय मिलता है, ईश्वर के भजन गाती हैं, गुनगुनाती हैं। इससे मन को सुकून मिलता है। घर परिवार की जिम्मेदारियां होती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाओं के जिम्मे कृषि एवं पशुपालन भी है, पर व्यस्त समय में से वो अपने लिए कुछ समय निकाल ही लेती हैं।”
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महिलाएं बताती हैं, “जब से कीर्तन मंडली से जुड़ी हैं, उनमें आत्मविश्वास बढ़ा है। जब कीर्तन के दौरान महिलाएं एक साथ होती हैं तो एक दूसरे से अपना सुख दुख भी साझा करती हैं। इससे तनाव कम होता है। कीर्तन में समय बीतता है और गीतों के माध्यम से मनोरंजन भी होता है।”
सामाजिक मुद्दों पर कार्य कर रहे वरिष्ठ पत्रकार गौरव मिश्रा कहते हैं, “कीर्तन मंडली सिर्फ भजन कीर्तन तक ही सीमित नहीं हैं, ये महिला सशक्तिकरण का बड़ा उदाहरण हैं। महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ता है, उनमें अपनी बात कहने का हौसला बढ़ता है। कीर्तन मंडलियां सामाजिक मुद्दों को भी उठाती हैं। महिलाएं समूहों के रूप में कार्य करती हैं, इससे उनकी शक्ति बढ़ती है। वो आत्मनिर्भर होती हैं और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि महिलाओं की सामाजिक सहभागिता बढ़ती है, वो एक दूसरे से अपने मन की बात कह पाती हैं। यह तनावमुक्त रहने के लिए बहुत जरूरी है। इस स्थिति में जहां महिलाएं सशक्त होती हैं, वहीं वो प्रसन्न रहती हैं।”