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गायिकी की सीक्रेट सुपर स्टार हैं कौड़सी गांव की कल्पना और ऋतु

19 साल की कल्पना को और बेहतर गायिकी के प्रशिक्षण के लिए सहयोग की आवश्यकता

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

कौड़सी गांव की 19 साल की कल्पना हमें ‘सीक्रेट सुपर स्टार’ फिल्म का पॉपुलर गाना “तेरी ही बोली बोलूंगी मैं, तेरी ही बानी गाऊंगी मैं, तेरे इश्क़ दा चोला पहन के, मैं तुझमें ही रंग जाऊंगी…” सुनाती हैं। कल्पना एक दिन कामयाब गायिका बनेंगी, गीत गाते समय उनके चेहरे पर दिखता आत्मविश्वास इस दावे की पुष्टि करता है। कल्पना भी सीक्रेट सुपर स्टार फिल्म की उस मेधावी बिटिया की तरह हैं, जो पॉपुलर सिंगर बनना चाहती है।

कल्पना से हमारी मुलाकात महज संयोग है। हमें जानकारी मिली थी कि कौड़सी गांव में एक बिटिया बहुत सुंदर गीत गाती है। हम उनसे गीत सुनने और गीतों को रिकार्ड करने के लिए मंगलवार (8 नवंबर, 2022) की दोपहर कौड़सी गांव पहुंच गए। हमारा उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र की प्रतिभाओं का इंटरनेट मीडिया के माध्यम से परिचय कराना है। शिक्षक जगदीश ग्रामीण, पत्रकार मित्र आनंद मनवाल के साथ कौड़सी गांव पहुंचे। जगदीश ग्रामीण और आनंद मनवाल गांवों के मुद्दों को आवाज देते रहे हैं।

गांव पहुंचने पर पता चला कि कौड़सी गांव निवासी ऋतु गीत गाती हैं। ऋतु का मायका ऋषिकेश के पास श्यामपुर क्षेत्र में है। उन्होंने ऋषिकेश के राजकीय महाविद्यालय से बीए किया है और वर्तमान में बीएड की तैयारी कर रही हैं। ऋतु बताती हैं, उनके पिता गीत लिखते हैं। उनकी बहन शिवानी भी गायक हैं। संगीत उनको परिवार से मिला है। उन्होंने गायिकी का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है। समय मिलने पर गायिकी का अभ्यास करती हैं।

कौड़सी गांव निवासी  गायिका ऋतु। फोटो- राजेश पांडेय

ऋतु संत निरंकारी सत्संग से जुड़ी हैं और गुरु की वंदना करती हैं। गढ़वाली में भी गीत गाती हैं। उन्होंने हमें दो गीत हरि सुमिरन में जो मन डूबा, उसका क्या कहना… और गढ़वाल गीत ‘धन-धन मेरा सतगुरु…’ सुनाए, जो बेहद शानदार और लयबद्ध थे। हम ऋतु की गायिकी के कायल हो गए।

कौड़सी गांव निवासी अनारी देवी। फोटो- राजेश पांडेय

ऋतु बताती हैं, उनकी सास अनारी देवी और परिवार का काफी सहयोग मिलता है। अनारी देवी बताती हैं, ऋतु सत्संग और अन्य अवसरों पर बहुत सुंदर गीत गाती हैं।

अपने आवास पर ऋतु ने हमारी मुलाकात कल्पना से कराई। ऋतु ने बताया कि कल्पना भी बहुत अच्छा गाती हैं और स्कूल के प्रोग्राम में भागीदारी करती रही हैं। कल्पना दसवीं की बोर्ड परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुई थीं। बारहवीं में भी उन्होंने बहुत अच्छे अंक हासिल किए थे।

कल्पना ने बताया, वो चाहती हैं कि संगीत के क्षेत्र में पहचान बनाकर अपने परिवार को सहयोग करें। उनके पिता श्रमिक हैं और पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं है कि गायिकी का प्रशिक्षण हासिल कर सकें। उनका मानना है कि बेहतर गायिकी के लिए अभ्यास और अभ्यास के लिए प्रशिक्षण बेहद जरूरी है। कल्पना को फिल्मी गीत गाना पसंद है। हमारी फरमाइश पर, कल्पना “मैं तैनु समझावां की, न तेरे बिना लगदा जी” सुनाती हैं। “हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया” मूवी के इस गीत को उन्होंने बहुत अच्छा गाया।

कौड़सी गांव निवासी गायिका कल्पना। फोटो- राजेश पांडेय

कल्पना बीए (बैचलर ऑफ आर्ट्स) के लिए प्राइवेट फार्म भरेंगी। कहती हैं,  “जब नौवीं कक्षा में थी, मैंने गीत गाने शुरू किए। स्कूल में देशभक्ति गीत, फिल्मों के गीत गाने का अवसर मिला। मैं समूह में गीत गाती रही। संगीत स्पर्धा में मुझे खास अवसर नहीं मिले। जब अवसर नहीं मिला तो मैं हतोत्साहित होने लगी। हालांकि, समय मिलने पर गीतों को गाती हूं, गुनगुनाती हूं।

आज काफी समय बाद, आपको गाना सुना रही हूं। पहले सोशल मीडिया पर भी गाने पोस्ट करती रही हूं। “मुझे अपनी गायिकी को सही मुकाम तक पहुंचाने के लिए कोई माध्यम नहीं मिला। मुझे लगा कि मैं गायिकी में आगे नहीं बढ़ पाऊंगी, इसलिए मैंने वर्तमान में गीत गाना और गीत लिखना छोड़ दिया,” कल्पना कहती हैं।

बातचीत के आखिर में उन्होंने एक और फिल्मी गीत “तेरी ही बोली बोलूंगी मैं, तेरी ही बानी गाऊंगी मैं, तेरे इश्क़ दा चोला पहन के मैं तुझमें ही रंग जाऊंगी…” सुनाया। यह फिल्म सीक्रेट सुपर स्टार का बेहद लोकप्रिय गाना है। कल्पना भी गायिकी की सीक्रेट सुपर स्टार हैं, जिनको एक दिन गायिकी में पहचान मिलेगी, ऐसा हमें पूरा विश्वास है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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