Uttarakhand

‘दुनिया सरनौल तक है उसके बाद बड़ियाड़ है’

Arun Kuksaal
 डॉ. अरुण कुकसाल 

‘पलायन एक चिंतन’ अभियान के तहत रवांई के ‘बड़ियाड़’ क्षेत्र की यात्रा (13-16 जुलाई 2016) से लौटकर डॉ. अरुण कुकसाल की रिपोर्ट-रवांई-उत्तरकाशी जनपद की पश्चिमोेत्तर दिशा में स्थित संपूर्ण यमुना घाटी की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पहचान रवांई नाम से विख्यात है। दूसरे शब्दों में नौगांव, पुरोला एवं मोरी विकासखंडों के संयुक्त भू-भाग को रवांई कहा जाता है।

गढ़वाल के इतिहास में ‘रवांई’ को ‘रांई गढ़’ कहने का भी उल्लेख है। कहा ये भी जाता है कि ऊनी वस्त्रों को बनाने और उनको रंगने में रवांईजन सिद्धहस्त रहे हैं। रंगवाई से रवांई हुआ होगा। रवांई रणबाकुरों का मुल्क है। रणवाले से रवांई होने की भी संभावना है। इस तथ्य में दम है, क्योंकि रवांई के लोगों का आदि काल से ही राजसत्ता के प्रति हमेशा पंगा रहा है। ‘रयि’ शब्द प्राकृतिक एवं धन्य-धान्य से धनी क्षेत्र के अर्थ में भी है। इसलिए ‘रयि’ से रवांई होने की भी गुंजाइश है।

ऐतिहासिक तथ्य हैं कि महाभारत काल में रवांई क्षेत्र में कुलिन्द शासक सुबाहु का राज था जिसने पाडंवो को अनेक प्रकार से सहायता प्रदान की थी। पांडवों और कौरवो के इस क्षेत्र में लम्बे प्रवास के कारण रवांई के रीति-रिवाजों में महाभारत कालीन प्रभाव आज भी दिखाई देते हं। खूबसूरत घरों और मंदिरों से सजे-धजे रवांई क्षेत्र में प्रवाहित टौंस (सहायक नदी रुपिन-सुपिन) और यमुना नदी ने यहां के जन-जीवन को आर्थिक मजबूती के साथ सांस्कृतिक संपन्नता प्रदान की है।

इतिहास गवाह है कि एक तरफ राजसत्ता यहां की आर्थिक और सांस्कृतिक धरोहर को हड़पने की कोशिशे करता रहा तो दूसरी ओर राजतंत्र की संप्रभुता को यहां के लोग लगातार चुनौती देते रहे। गढ़वाल में ‘ढंडक’ (जनता द्वारा राजसत्ता की निरंकुश नीतियों का सामूहिक विरोध करना) शब्द की उत्पत्ति इसी क्षेत्र से हुई। सुन्दरता और सम्पन्नता जोखिम की जन्मदायी हैं, यह रवांई में आकर बखूबी समझा जा सकता है।

मानवीय सुन्दरता और प्रकृति-प्रदत सम्पन्नता को कुटिल एवं आतातायी समुदायों एवं शासकों से बचाये रखने के लिए स्थानीय लोगों के संघर्ष के कई निशान दर निशान रवांई में व्याप्त हैं। इसी तारतम्य में रवांई के लोगों का राडी (20 मई 1930) एवं तिलाड़ी (30 मई 1930) स्थल में जन-विद्रोह उनकी चरम अभिव्यक्ति थी, जिसमें 100 से ज्यादा लोगों ने राजशाही अन्याय का प्रतिरोध करते हुए जान गंवा दी थी।
रवांई की एक पट्टी का नाम है ‘बड़ियाड़’।

पुरोला विकासखंड में शामिल ‘बड़ियाड’ पट्टी 8 गांवों यथा- सर, ल्यौटाड़ी, डिंगाड़ी, किमडार, कसलो, पौंटी, छानिका और गोल से मिलकर बनी है। ग्राम पंचायत के हिसाब से ‘बड़ियाड़’ पट्टी में 3 ग्राम पंचायतें यथा- सर (सर, ल्यौटाडी एवं डिंगाडी), किमडार (किमडार एवं कसलो) और पौंटी ( पौंटी, छानिका एवं गोल) शामिल हैं। जनगणना 2011 के अनुसार बड़ियाड़ पट्टी की कुल आबादी 1363 है, जिसमें 253 (18.56 प्रतिशत) अनुसूचित जाति के व्यक्ति हैं। बड़ियाड़ पट्टी का कोई भी गांव सड़क से आज भी नहीं जुड़ पाया है।

जी हां, बड़ियाड़ के प्रत्येक ग्रामीण को विकासखंड पुरोला आने के लिए 35 किमी़. की दुर्गम पैदल दूरी तय करनी होती है। बरसात एवं बर्फबारी के महीनों में आवश्यक अनाज एवं सामान की व्यवस्था कर वे अपने ही घर-गांवों में दुबके रहकर शेष दुनिया से अंतर्ध्यान रहते हैं। ऐसे उदाहरण आम है कि जब ग्रामीण अपने बीमार परिवारजन को डंडी-कंडी से पैदल मार्गों के टूट जाने के कारण 35 किमी.दूर पुरोला के अस्पताल नहीं पहुंचा पाए।

बड़ियाड़ को सड़क मार्ग से जोड़ने के प्रथम प्रयास वर्ष 2008 में हुए थे। पर आज यह हाल है कि गंगताड़ी से सर गांव को जोड़ने वाली 12 किमी. की ये निर्माणाधीन सड़क सन् 2008 से मात्र 2 किमी. बनकर शासकीय लापरवाही के कारण दम तोड़ चुकी है। देश-प्रदेश में शिक्षा के रखवालों ने बड़ियाड़ क्षेत्र में आठवीं तक की प्रारंभिक व्यवस्था करके अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली है। वर्तमान में इस संपूर्ण पट्टी में 8 प्राइमरी स्कूल एवं 4 जूनियर हाईस्कूल यथा- डिंगाडी, सर, पौंटी और किमडार गांव में हैं। बिडम्बना यह है कि कुल जमा 4 जूनियर हाईस्कूलों में 6 से 8 तक की कक्षाओं में मात्र 32 बच्चे अध्ययनरत हैं।

पौंटी में 2 और किमडार में शून्य छात्र संख्या होने के कारण स्कूल बंदी के कगार पर हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर पूरी पट्टी के लिए एक आर्युवेदिक केन्द्र सर गांव में है, जिसमें फार्मासिस्ट की नियुक्तिभर है। आंगनबाडी, महिला मंगल दलों से अधिकतर ग्रामीण परिचित भी नहीं है। पटवारी चौकी का भवन डिंगाडी गांव में बनने के बाद पटवारी अपने निवास कम कार्यालय में प्रवेश के लिए भी कभी नहीं पहुंचे। नतीजन, इस पटवारी भवन की नियति उजड़ने के लिए ही है। एक अदद डाकघर खोलने की मांग बड़ियाड़ पट्टी के लोग वर्षों से करते आ रहे हैं।

उनकी पट्टी में भी पोस्ट आफिस होगा यह अभी उनका सपना ही है। देश की स्वतंत्रता के बाद से बडि़याड़ पट्टी आने वाले उच्च अधिकारियों में पूर्व में तैनात राजेश कुमार, मुख्य विकास अधिकारी औऱ अमित घोष जिलाधिकारी, टिहरी के नाम दर्ज हैं। राजनेता वोट मांगने ही आ जांए वही गनीमत है। जीतने के बाद विधायक की शक्ल कैसी हो जाती है, यहां के लोग नहीं जानते।

देश-प्रदेश के स्वच्छता अभियान के प्रति जागरूकता की एक तस्वीर यह भी है कि बडियाड़ पट्टी के 8 गांवों में किसी भी घर में शौचालय नहीं है। शौच के लिए शौचालय होते हैं, यह जानकारी अधिकतर ग्रामीणों (विशेषकर महिलाओं) को नहीं है। स्वजल परियोजना को पट्टी के सभी 8 गावों में शौचालय बनाने का जिम्मा है पर उनके नुमायंदे वर्षों से कहां सोये हैं, किसी को पता नहीं।

शिक्षक, फार्मासिस्ट और आंगनबाडी कार्यकर्ता गांवों में अपने-अपने कार्यदायित्वों के लिए आ जाए वो दिन विशेष होता है। वे अपनी संग्रांद बजाकर मनमर्जी से जब चाहे जहां चाहें चले जाएं कोई देखने और पूछने वाला नहीं है। बड़ियाड़ पट्टी में जीवन की दुश्वारियों का ये एक जिक्रभर है। उनके जीवन की जीवटता और जीवन्तता को आप भी महसूस करें, आइये, ‘पलायन एक चिंतन’ अभियान के माध्यम से आपको लिए चलता हूं सर बड़ियाड़ पट्टी की ओर…

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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