
यमलोक से कैसे लौटीं 102 साल की दमदार दादी
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
हरिद्वार से लगभग 45 किमी. दूर एक गांव है नारसन खुर्द (Narsan Khurd), जिसे छोटा नारसन के नाम से भी जानते हैं। इस गांव की 102 साल की दादी, कुछ दिन से खूब चर्चा में हैं। उनके बारे में माना जा रहा है, शरीर शांत होने के चार घंटे बाद दादी फिर से जीवित हो गईं। शोक में डूबा परिवार उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था में जुटा था कि दादी के शरीर में हलचल होने लगी तो पता चला कि दादी जिंदा हैं। सबकी प्यारी दादी ज्ञान देवी, गांव की सबसे बुजुर्ग महिला (Oldest woman) हैं।
हरिद्वार- दिल्ली रोड से गांव में प्रवेश करते ही लगभग एक किमी. चलकर सबसे आखिरी के घरों में एक घर दादी ज्ञान देवी का है। जहां, दादी के जीवित होने की खुशी है, वहीं यह जानने की उत्सुकता भी है कि अगर दादी की मृत्यु नहीं हुई थी, तो चार घंटे उनका शरीर शांत क्यों था। एक बात, जिसको चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) शायद नहीं मानेगा, वो यह कि दादी की मृत्यु हो गई थी। चिकित्सा विशेषज्ञ, किसी व्यक्ति की मृत्यु घोषित करने से पहले शरीर की कई मानकों पर जांच करते हैं।
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पर, गांव के निवासी तो यह जानना चाहते हैं कि दादी स्वर्ग के द्वार से कैसे वापस लौटीं। उनके लिए दादी के साथ हुई घटना जिज्ञासा बनी है। पर, इस घटना के बाद से दादी के स्वास्थ्य की स्थिति ऐसी नहीं है कि वो किसी से बात कर पाएं। दादी के पौत्र और उनके बच्चे उनकी सेवा में जुटे हैं, वो उनको एक पल भी अकेला नहीं छोड़ रहे। वो चाहते हैं कि दादी फिर से उनके बीच उसी तरह हंसें, बातें करें, पूरे गांव का चक्कर लगाएं, जैसा कि वो आज से एक महीने पहले करती थीं।
हमने दादी के परिवारवालों से मिलकर, उनकी जिंदगी के उन पन्नों को पलटने की कोशिश की, जो दादी के व्यक्तित्व और उनके संघर्ष के बारे में बताते हैं। पूरी जिंदगी कभी अस्वस्थ नहीं रहने वाली ज्ञान देवी को एक महीने पहले तक कभी दवा की आवश्यकता नहीं पड़ी। उन्होंने कभी चश्मा नहीं लगाया, पर आज दादी बिस्तर पर पड़ी हैं और इशारों में अपनी बात कहने की कोशिश कर रही हैं।
31 जनवरी , 2023 को मृत्यु और फिर जीवन की घटना के बाद से दादी बोलने में स्वयं को असमर्थ पा रही हैं। चार-पांच दिन से उन्होंने कुछ नहीं खाया, सिवाय कुछ घूंट पानी के। आइए हम जानते हैं, उनकी जिंदगी के बारे में, जिससे ग्रामीणों को अपने सवाल का जवाब समझने में काफी हद तक मदद मिलेगी, आखिर दादी यमलोक (Yamlok)से वापस कैसे लौटीं?
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विनोद कुमार, दादी के बड़े पौत्र हैं, बताते हैं, “हमारी दादी किसी के दबाव में नहीं रहती थीं। बड़े-बड़े गम सहने वाली दादी कभी तनाव में नहीं दिखीं। हमारी मां, पिताजी और फिर मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई। ऐसा नहीं है कि उनको दुख नहीं होता था, पर हमारे सामने दादी हमेशा मजबूत बनकर रहीं। वो कहती थीं, जीवन ऐसे ही चलता है, संघर्ष में टूटना नहीं चाहिए, बल्कि डटकर मुकाबला करो।”
“जब मैं 12 साल का था, मेरी माताजी की मृत्यु हो गई थी। दादी ने हम बहन भाइयों को पाला। हम छह बहन भाई हैं, मां की मृत्यु के समय दो बहनों और एक भाई की शादी हो गई थी। दादी ने हमें कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि हमारी मां नहीं हैं। वो हमारी दादी बनकर भी रहीं और मां भी। हमारे लिए समय पर खाना बनातीं, हमें स्कूल भेजतीं। जबकि उस समय दादी की उम्र 80 साल से ज्यादा ही थी। मेरी दादी इतनी अच्छी हैं, भगवान सबको ऐसी दादी देना,” यह बताते हुए अरुण कश्यप बेहद भावुक हो जाते हैं, उनकी आंखें नम हो जाती हैं।
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अरुण आगे बताते हैं, “मां के बाद बड़े भाई विनोद की पत्नी हमारी भाभी की मृत्यु हो गई। दादी ने विनोद भाई के दो बच्चों, यानी अपने पौत्र के बच्चों को भी पाला। पहले अपने बेटे यानी हमारे पिता और फिर पौत्र के बच्चों को पालने की जिम्मेदारी दादी ने निभाई। दादी ने जीवन में बहुत संघर्ष किया।”

“दादी ने मुझे एक बार बताया था, जब वो शादी होकर दादाजी के साथ घर पर आईं, तो उस समय एक छोटा सा कच्चा घर था, जिसके चारों तरफ ओट (चहारदीवारी) नहीं थी। दादी ने घर को मिट्टी और फूस की दीवार बनाकर घेरा था। इससे न तो दादी बाहर देख पाती थीं और न ही कोई बाहर से घर में बैठी दादी को।”
विनोद बताते हैं, “दादी को चटपटे खाने का बड़ा शौक है। घर के सामने से चाट की ठेलीवाला या फल वाला निकल जाए तो समझ लो दादी कुछ न कुछ जरूर खरीदेंगी। अभी तक दादी दो-दो प्लेट चाट खा लेती थीं। एक साल पहले तक अपना खाना खुद बना रही थीं। उनको मछली खाना पसंद था। अब तो बच्चे खाना बना लेते हैं, पर पहले तो दादी ही हम सबको खाना बनाकर खिलाती थीं।”
“उनके दादा जी खेतीबाड़ी करते थे, हमारे पास अपने खेत नहीं हैं, इसलिए वो बटाई पर सब्जियां बोते थे। दादी उनको सहयोग करती थीं। खेतीबाड़ी हमारी आजीविका का स्रोत थी।”
“दादी की आवाज बहुत दमदार थी। आज तक गांव में अपने किसी बच्चे को बुलाने के लिए दादी कभी उसके पास नहीं गई। घर से आवाज लगाती थीं, तीन-चार घर तक उनकी आवाज पहुंच जाती थी। गांव में दादी का बहुत सम्मान है। हमारे गांव की सबसे बुजुर्ग दादी ही हैं।”

विनोद हमें बुजुर्ग अतरकली से मिलवाते हैं। उनकी याददाश्त में कोई दिन ऐसा नहीं है, जिस दिन अतरकली और दादी ज्ञान देवी की मुलाकात नहीं हुई होगी। मौसम कैसा भी हो, कितनी भी बारिश क्यों न हो, दादी अतरकली से मिलने उनके घर जरूर जाती थीं। उनकी दादी से इतनी मजबूत दोस्ती कब हुई, किसी को नहीं पता। अतरकली बताती हैं, “यह बहुत मजबूत थी। इनको कभी बुखार भी नहीं हुआ। अब तुम खुद ही देख लो, यह किस हालत में हैं। मैं रोज इनको देखने आती हूं।”
“दादी ज्ञान देवी, लगभग एक महीने से अस्वस्थ हैं, पर इससे पहले पूरे गांव का चक्कर लगाती थीं। एक दिन में हिसाब लगाया जाए तो वो दो से ढाई किमी. पैदल चल रही थीं। नाश्ता करने के बाद गांव में घूमने जाती थीं। सबसे मेल मुलाकात रखती थीं। उनका जहां मन करता, उनके घर चली जाती थीं। दिन का भोजन करके कुछ देर आराम किया और फिर तीन बजे गांव में घूमने चली जाती थीं। फिर शाम को करीब पांच बजे तक घर पहुंच जाती थीं। करीब तीन किमी. दूर हमारी एक बुआ रहती थीं, एक साल पहले तक दादी उनके घर पैदल ही चली जाती थीं। कभी कोई शारीरिक दिक्कत नहीं हुई,” परिवार के लोग बताते हैं।
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