agricultureBlog LiveFeaturedUttarakhand

सूर्याधार गांवः पानी नहीं मिलने से सैकड़ों बीघा खेत बंजर, किसान बेरोजगार

बासमती की खेती के नाम से प्रसिद्ध गांव अब प्रापर्टी डीलर्स के प्रोजेक्ट्स के नाम से पहचान में

सूर्याधार (देहरादून)। राजेश पांडेय

चर्चित सूर्याधार झील (Suryadhar lake), जिस गांव के नाम पर है, उस गांव की लगभग 500 बीघा खेती, पानी नहीं मिलने से बंजर पड़ी है। बताया तो यह भी जाता है कि इसमें से लगभग डेढ़ सौ बीघा को प्लाटिंग के लिए बेचा जा चुका है। गांव के छोटे किसान, जिनके पास आठ से दस बीघा तक जमीन है, वो इसलिए परेशान हैं, क्योंकि उनके यहां वहां बिखरे पड़े खेत, प्लाटिंग के बीच में फंस रहे हैं। लगभग दस साल पहले से बंद सिंचाई की गूलों को फिर से चालू करने का आश्वासन इस बुनियाद पर दिया गया था कि सूर्याधार झील बनने के बाद गांव को पानी की कोई कमी नहीं होगी, पर ऐसा नहीं हो सका। दूर दूर तक महकने वाली बासमती की खेती (Basmati farming) के नाम से प्रसिद्ध यह गांव अब प्रापर्टी डीलर्स के प्रोजेक्ट्स के नाम से पहचान में है। कोई दिन ऐसा नहीं जाता, जिस दिन गांव में प्रापर्टी डीलर न आते हों। छोटे किसान (Small farmers) चाहते हैं कि सरकार यहां जमीन को बेचने से रोक दे।

जब सूर्याधार गांव के खेतों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था हो सकती है, तो फिर ऐसी क्या वजह है कि लगभग 500 बीघा खेती को बचाने की कार्रवाई नहीं हो रही, क्या पूरे गांव की कृषि को प्रापर्टी डीलर्स के हवाले किया जा रहा है।

देहरादून के सूर्याधार गांव के किसान देवपाल सिंह कृषाली पानी के बिना खेती को हुए नुकसान की चर्चा करते हुए। फोटो- राजेश पांडेय

देवपाल सिंह कृषाली, जिनकी आयु 75 वर्ष के आसपास है, कहते हैं, “बचपन से यहां खेतों को हराभरा देख रहा था, पर अब दस साल से इनको बंजर देखता हूं तो आंसू आ जाते हैं। मेरे पास 15-20 बीघा खेती है। पहले, मेरे पास बैलों की दो-दो जोड़ी थीं, दूसरों के खेतों में भी हल लगाता था। आप खुद ही देख लो, खेतों में झाड़ उग गईं, पेड़ उग आए हैं। यहां के किसान बेरोजगार हो गए हैं। मैं चाहता हूं, एक बार फिर अपने खेतों में हल चलाऊं। हम अपनी पीढ़ियों के लिए यहां खेती चाहते हैं। सरकार चाहे तो हमें अमगढ़ वाले खाले से पानी दे सकती है। यहां ट्यूबवैल भी खोदे जा सकते हैं। सूर्याधार झील बनने से हमें बड़ी आस थी कि खेतों को पानी मिल जाएगा, पर हमें निराशा ही मिली।”

हम चाहते हैं, अमगढ़ के खाले से भी हमें आठ-दस इंच पानी मिल जाए तो हमारे सारे खेत सिंचित हो जाएंगे। अगर, यहां पानी नहीं पहुंचा तो, खेत बिक जाएंगे, फिर तो हमारा रहना भी मुश्किल हो जाएगा।”

“हमें बताया गया था, यहां से जौलीग्रांट तक पानी जाएगा, पर जब हमारे यहां ही पानी नहीं पहुंचा तो जौलीग्रांट तो बहुत दूर है। आय का अब कोई स्रोत हमारे पास नहीं है, मैं यहां ऊखड़ भूमि पर घर के लिए सब्जी उगा रहा हूं। इनमें नलों का पानी डाल देते हैं। पर इस छोटी सी खेती को भी जंगली जानवर नहीं छोड़ रहे। यहां हाथी भी पहुंच जाता है। यहां एक और बड़ी समस्या है, शहर से गाड़ियों में भरकर लाए पशु छोड़े जा रहे हैं, जो बड़ी संख्या में हैं। ये पशु रात को गुलदार की दहशत में गांव के पास इकट्ठा रहते हैं,” देवपाल सिंह बताते हैं।

नरपाल सिंह पुंडीर भी, सूर्याधार गांव में बचपन से हैं और यहां की बासमती की खेती से जुड़ा किस्सा साझा करते हैं, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सूर्याधार का बासमती चावल भेजा गया था। उन्होंने यहां की खेती की तारीफ की थी। बासमती की सुगंध 25 मीटर दूर तक महसूस की जा सकती थी। यहां लगभग सभी परिवारों की आय का प्रमुख स्रोत खेती थी, जिसमें बासमती चावल खास था, पर अब सिंचाई के लिए लगभग दस साल से पानी नहीं मिल रहा, इसलिए खेती बंजर हो गई।

देहरादून के सूर्याधार गांव के किसान नरपाल सिंह पुंडीर पानी के बिना बंजर हो गई खेती पर बात करते हुए। फोटो- राजेश पांडेय

करीब 67 वर्षीय नरपाल सिंह, घर के पास ही आटा चक्की दिखाते हैं, जो बंद पड़ी है। कहते हैं, जब खेती ही नहीं हो रही तो अनाज पिसाने कौन लाएगा। अब तो सबकुछ बाहर से ही लाना पड़ रहा है। वो गांव, जो एक समय में लोगों को अनाज बेचता था, आज खरीद रहा है।

क्या वर्षा जल से खेती नहीं हो सकती, जैसा कि पहाड़ के गांवों में होता है, पर उनका कहना है, यहां भूमि अधिक है और खेत भी दूर दूर तक हैं। केवल बारिश के पानी से खेती संभव नहीं है। यहां, जंगली जानवर भी खेती को नुकसान पहुंचा रहे थे। हाथी पूरी फसल रौंद रहे थे। इस वजह से भी खेती छोड़ी गई।

देहरादून के सूर्याधार गांव की पानी की टंकी, जो 1964 में बनी थी। लगभग 60 साल पहले बनी टंकी अभी भी दुरुस्त है। फोटो- राजेश पांडेय

बताते हैं, करीब 15 परिवार यहां से पलायन कर गए, जो 20-22 परिवार यहां हैं, वो खेतीबाड़ी पर ही निर्भर थे,  जिनकी आबादी लगभग सौ के आसपास होगी।

पुराने समय को याद करते हुए पुंडीर कहते हैं, यहां दूर दूर तक बैलों की 60-65 जोड़ियां एक साथ खेतों को जोतती थीं। बहुत खुशनुमा माहौल होता था। सभी लोग एक साथ मिलकर धान की पौध लगाते थे। बड़ी अच्छी फसल होती थी। एक-एक खेत में कुंतलों बासमती होती थी।

नरपाल सिंह और इसी गांव के निवासी करीब 60 वर्षीय देवपाल सिंह रावत, हमें अमगढ़ खाले पर, करीब पांच वर्ष से टूटा बंधा दिखाते हैं। यह बंधा टूटने से पहले गांव में जो थोड़ा बहुत पानी पहुंच भी रहा था, वह भी बंद हो गया था। अमगढ़ खाला गांव से लगभग दो किमी. दूर है। यहां से सूर्याधार झील भी इतनी ही दूरी पर है।

देहरादून के सूर्याधार गांव के किसान देवपाल सिंह रावत, ने हमें अमगढ़ खाले से गांव तक पानी की व्यवस्था की जानकारी दी। फोटो- राजेश पांडेय

देवपाल बताते हैं, अगर अमगढ़ खाले के बंधे और हमारे गांव तक जा रही गूलों की मरम्मत हो जाए, तो पानी हमारे खेतों तक पहुंच जाएगा। ज्यादा नहीं, थोड़ी बहुत खेती शाक सब्जी तो सही तरह से उगा लेंगे। गांववालों ने अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों को कई बार बताया, पर समस्या हल नहीं हुई।

नरपाल सिंह कहते हैं,”सैकड़ों बीघा खेती बचाने के लिए अमगढ़ खाले के बंधे और गूलों की मरम्मत कोई बड़ा काम नहीं है। पर, वर्षों से इस बारे में नहीं सोचा जा रहा है।”

गांव में इस तरह पहुंच रहा था पानी

पहले सूर्याधार बांध, जो कच्चा था, से रिसाव होने वाला पानी पाइपों के माध्यम से अमगढ़ खाले तक पहुंचाया जा रहा था। इसके बाद, यह पानी पास ही एक गूल से होता हुआ सूर्याधार के खेतों में पहुंच रहा था।

वहीं, इसी गूल से अमगढ़ खाले का पानी भी गांव पहुंचाया जा रहा था। ऐसे में दो व्यवस्थाओं से पानी गांव पहुंच रहा था, जो काफी था। बरसात में पानी ज्यादा होता था, इसलिए गांव में बासमती धान की खेती को प्राथमिकता दी जाती थी। यहां सैकड़ों बीघा में बासमती ही लहलहाती थी। अन्य फसलें भी होती थी, पर धान के मुकाबले नहीं।

देहरादून के सूर्याधार गांव को अमगढ़ खाले से भी पानी मिलता था, पर यह बंधा ग्रामीणों के अनुसार, लगभग पांच साल से टूटा है। फोटो- राजेश पांडेय

सूर्याधार गांव जा रहे पानी को जाखन नदी पार कराने के लिए सनगांव वाले पुल के किनारे मोटी पाइप लाइन बिछाई गई थी, जो आज भी दिखाई देती है। वर्षों पहले पानी कनस्तरों को जोड़कर बनाई गूल के सहारे नदी पार भेजा जाता था। कनस्तरों की बनाई गूल को पाइपों के सहारे नदी के आर पार किया गया था।

देहरादून के सूर्याधार गांव को पहले इस पाइप के माध्यम से नदी पार करके सिंचाई के लिए पानी भेजा जाता था। फोटो- राजेश पांडेय

ग्रामीण नरपाल सिंह बताते हैं, वर्षों पहले सूर्याधार झील के कच्चे बंधे से लगे पाइप तेज बहाव में बह गए। इससे वहां से पानी बंद हो गया। बाद में, बड़ा बांध बन गया, जिससे पानी का रिसाव नहीं होता। जो पाइप वहां पड़े थे, उनमें से बहुत सारे बह गए या लोग उठाकर ले गए। इसलिए सूर्याधार झील वाला पानी हमें वर्षों पहले ही मिलना बंद हो गया था। हमें अमगढ़ खाले से जो थोड़ा बहुत पानी मिल भी रहा था, वो लगभग पांच साल पहले बाढ़ में बंधा टूटने से बंद हो गया। यह बंधा बन जाए, गूलों की मरम्मत हो जाए तो पानी मिल सकता है।

देहरादून के सूर्याधार गांव निवासी मुन्नी देवी ने हमें बताया, पहले बासमती की खेती कैसे होती थी। फोटो- राजेश पांडेय

सूर्याधार गांव की मुन्नी देवी बताती हैं, हमने मेहनत से इन खेतों को हराभरा किया, हमारी आजीविका इन खेतों से चलती थी। पानी नहीं मिलने से बंजर खेतों को देखकर दुख होता है। जो थोड़ा बहुत शाक सब्जी घर के पास लगा भी रखा है, उसको जंगली जानवर नहीं छोड़ते।

देहरादून के सूर्याधार गांव में किसान शाकभाजी ही उगा पाते हैं, वो भी नलों में आए पानी से। पहले इस गांव में सैकड़ों बीघा में बासमती की खेती होती थी। फोटो- राजेश पांडेय

डोईवाला क्षेत्र के विधायक बृजभूषण गैरोला का कहना है, कृषि भूमि की सुरक्षा हमारा दायित्व है, इस दिशा प्रयास किए जा रहे हैं। डैमेज नहरों की मरम्मत कराई जा रही हैं। सूर्याधार गांव का मामला संज्ञान में है, वहां तक पानी पहुंचाने के लिए नहर को ठीक कराया जाएगा।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button