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मिसालः बेटी के आग्रह पर पिता बने पैड मैन, बनाते और बेचने जाते हैं सैनिटरी नैपकीन

देहरादून में 20 साल की बिटिया और पापा करते हैं लोगों को जागरूक, घर पर स्थापित किया प्लांट

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

महिलाओं के स्वास्थ्य (Women Health) से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा, जिस पर घर परिवार की महिलाएं आपस में भी बातें नहीं करतीं। मासिक धर्म चक्र पर जागरूकता (Awareness on Menstrual Cycle) की बात को गांवों, कस्बों और शहरों में भी, अधिकतर महिलाएं सुनना नहीं चाहतीं। पर, देहरादून के रामपुर कलां की चोई बस्ती में रहने वाली 20 साल की प्रिंसी और उनके पिता मिसाल बन गए। प्रिंसी ने पिता के साथ मिलकर महिलाओं को न केवल इस मुद्दे पर जागरूक बनाने का जिम्मा उठाया है,बल्कि उन्होंने सैनिटरी नेपकीन का एक प्लांट भी स्थापित कर दिया।

प्रिंसी कहती हैं, मैं अपने पिता के साथ सैनिटरी पैड बेचने के लिए बाजार जाती हूं। कई बार ऐसा होता है कि दो दिन ज्यादा पैकेट बिक जाते हैं, और फिर तीन दिन नहीं बिकते। यहां निराशा हो जाती है। किसी दिन दो पैकेट बिक गए तो उम्मीद बन जाती है, चलो आज कुछ बिक्री तो हुई है। हम निराश नहीं होते, बल्कि कोशिश करते हैं।  मैं इस प्रोडक्ट के बारे में महिलाओं से बात करती हूं, लड़कियों को समझाती हूं। इस बीच बहुत दिक्कतें आती हैं, महिलाएं हमें सुनना नहीं चाहतीं। पर, हम कोशिश कर रहे हैं, एक दिन वो हमें सुनेंगे।

देहरादून चंडीगढ़ मार्ग पर, सेलाकुई के पास चोई बस्ती काफी दूरी तक फैली है। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के ग्राम मोडा विष्णु, पोस्ट हैदराबाद की रहने वाली प्रिंसी ओपन बोर्ड से 12वीं की पढ़ाई कर रही हैं। इससे पहले, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (Prime Minister’s Employment Generation Programme-PMEGP) के तहत ईडीपी (Entrepreneurship Development Programme -EDP) ब्यूटीशियन का प्रशिक्षण हासिल कर रही थीं। इसी दौरान उनको लघु उद्यम स्थापित करने की जानकारी मिली।

उन्होंने पिता राजेश वर्मा को ऋण एवं अनुदान के बारे में बताया। पिता और बेटी ने मिलकर बाजार का सर्वे किया, कि ऐसा क्या उद्यम शुरू किया जाए, जो अच्छी तरह चल सके। प्रिंसी बताती हैं, “उनको जानकारी मिली, आसपास सैनिटरी पैड का प्लांट  (Sanitary Napkin Making Machine) नहीं है। बड़े ब्रांड का प्रोडक्ट बड़ी संख्या में महिलाओं के लिए महंगा है। इसलिए उन्होंने यह प्लांट लगाया और प्रोडक्ट की कीमत भी बहुत कम रखी है। हम केवल दो रुपये प्रति पैकेट पर बचा रहे हैं, कई बार तो ऐसा होता है कि स्कूलों में बालिकाओं तक पहुंचाने में हमें एक रुपया या कभी यह भी नहीं बचता।”

“खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (Khadi and Village Industries Board- KVIB)  एवं निसबड (National Institute for Entrepreneurship and Small Business Development- NIESBUD) के सहयोग से सैनिटरी नेपकीन की मशीन के लिए लगभग दस लाख रुपये का ऋण मिला और लगभग तीन लाख रुपये अपने पास से लगाए। इस तरह लगभग 13 लाख रुपये में मशीन और कच्चे माल की व्यवस्था हो गई।”

“23 जुलाई, 2022 को उत्पादन शुरू कर दिया। उत्पादन प्रक्रिया आसान है, पर कुछ बातों का ध्यान रखना होता है। हमारा प्रोडक्ट स्वच्छता के मानकों पर खरा उतरे, इसलिए बहुत सारी सावधानियां बरतते हैं। शुरुआत में हमारे सामने, सबसे बड़ी चुनौती एक ऐसे प्रोडक्ट की मार्केटिंग करना थी, जिससे बारे में उपयोगकर्ता महिलाएं ही बात नहीं करतीं। दूसरी सबसे बड़ी चुनौती, बाजार में पहले से मौजूद बड़े ब्रांड्स का मुकाबला। दुकानदारों ने यही सवाल किया, उनके पास बड़े ब्रांड हैं, वो हम से क्यों खरीदें। शुरुआत में हम बहुत निराश हुए। ऐसा कई बार हुआ कि पापा और मैं, घर से बेचने के लिए जो पैकेट बाजार ले गए थे, वो सभी वापस लेकर आए। किसी-किसी दिन एक या दो पैकेट ही बिके।”

“हमारी कोशिश जारी है, हम दुकानदारों के पास समय-समय पर जाते रहे। हमने उनसे यह तक कहा, कोई बात नहीं, अगर नहीं बिकेगा, तो हम वापस ले जाएंगे। जिन लोगों ने हमारे से प्रोडक्ट खरीदे, हमने उनसे लगातार संपर्क बनाए रखा। उनसे फीड बैक लेते रहे। हम अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी बताते हैं। हम स्थानीय उत्पादक हैं और हमने प्रोडक्ट की पैकेजिंग पर अपना फोन नंबर लिखा है, हम वो उत्पादक हैं, जो उपयोगकर्ता से भी सीधे बात करते हैं। हमारा प्रोडक्ट हम सीधे दुकानदारों या उपयोगकर्ताओं तक पहुंचा रहे हैं, इसलिए इसका दाम भी कम है।”

बताती हैं, “पापा के साथ बाजार जाते समय हम कम से कम 100 पैकेट रखते हैं, कोशिश रहती है कि कितनी भी देर हो जाए, ये सभी पैकेट बेचने हैं। पहले ज्यादा रिस्पांस नहीं मिला, पर अब दुकानदार समझ गए कि ये स्थानीय उत्पादक हैं। अब औसतन हमारे लगभग 3000 पैकेट हर माह बिक जाते हैं। अब हम मार्केट में जिस भी दुकान पर जाते हैं, लोग खुश होकर मिलते हैं। वो हमारा हौसला भी बढ़ाते हैं। अगर उनको हमारे उत्पाद नहीं भी लेने होते, तब भी हमारा सम्मान करते हैं।”

देहरादून के रामपुर कलां स्थित चोई बस्ती में प्रिंसी ने अपने घर पर स्थापित किया है सैनिटरी पैड का प्लांट। फोटो- राजेश पांडेय

“बाजार में बड़े ब्रांड के बावजूद हमें अपने उत्पाद की सफलता की उम्मीद है, क्योंकि हमारे देश में जागरूकता के बाद भी अधिकतर महिलाएं सैनिटरी पैड इस्तेमाल नहीं करतीं। मैंने कई बार ग्रामीण क्षेत्रों में, कम आय वाले परिवारों की महिलाओं, श्रमिक महिलाओं से बात की, तो उनका कहना होता है, हमारे बड़ों ने हमेशा कपड़ा इस्तेमाल किया। यही हमें पता है, इससे कोई तकलीफ नहीं हुई। वैसे भी इसे बाजार से खरीदने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं। हम उनको समझाते हैं, एक ही कपड़े के बार-बार इस्तेमाल से नुकसान होता है।  हम आपके बजट में इसको उपलब्ध करा रहे हैं। कई बार हमें इन महिलाओं को एक पैकेट अपनी तरफ से निशुल्क इसलिए देना होता है, ताकि वो कपड़े और सैनिटरी पैड में अंतर को जान सकें,” प्रिंसी बताती हैं।

देहरादून के रामपुर कलां स्थित चोई बस्ती में महिलाओं को प्रोडक्ट के बारे में समझाते हुए प्रिंसी। फोटो- राजेश पांडेय

प्रिंसी ने बताया, “जब भी हम दुकानों पर गए, वहां मौजूद महिलाओं से इस मुद्दे पर बात की, तो पुरुषों के सामने वो हमें नहीं सुनतीं। हम वहां से पुरुषों के जाने का इंतजार करते हैं। हमारा उनसे कहना होता है, यह कोई ऐसी बात नहीं है, जिसके बारे में किसी को नहीं पता। उनसे आग्रह करते हैं कि वो हमारे प्रोडक्ट की क्वालिटी को जानें और कोशिश करें कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं के पास स्वास्थ्य सुरक्षा का यह उत्पाद पहुंचे। ऐसा भी होता है, महिलाएं वहां से जाने लगती हैं। मैं उनसे अकेले में जाकर बात करते हुए समझाने की कोशिश करती हूं।”

“मुझे इस बात की खुशी होती है कि हम महिलाओं को जागरूक करने का काम कर रहे हैं।”

उन्होंने बताया, “पिता और मां बहुत सहयोग करते हैं। हम पूरा परिवार मशीन से सैनिटरी पैड्स बनाते हैं, पैकिंग करते हैं और बाजार लेकर जाते हैं। कई बार ऐसा हुआ, महिलाओं ने मुझसे कहा, तुम अपने पापा के साथ पैड बेचने बाजार आती हो, क्या तुम्हें हिचकिचाहट नहीं होती। मेरा जवाब था, वो मेरे पापा हैं। हम बच्चों को अपने माता-पिता से इन मुद्दों पर बात करनी चाहिए, इसमें खराब क्या है। क्या महिलाएं पुरुष डॉक्टर के पास जाकर अपनी समस्याओं की जिक्र नहीं करतीं।”

प्रिंसी के पिता राजेश वर्मा बताते हैं, “बिटिया को सैनिटरी पैड्स के बिजनेस में सहयोग करना हमारी जिम्मेदारी है। लोग किसी भी बात पर अलग-अलग तरह की समझ रखते हैं। पर, यह हमारे लिए सामान्य बात है। हम अपने बच्चे के साथ सामान्य रूप से बात कर सकते हैं। उसके साथ सामान्य मार्केट करते हैं, इसमें हमें कोई दिक्कत नहीं होती। हमें गर्व है कि बिटिया महिलाओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए काम कर रही है।”

प्रिंसी सभी बच्चों से अपील करती हैं, “माता-पिता को सहयोग करें, उनसे अपने मुद्दों पर बात करें, क्योंकि एक दूसरे के सहयोग से ही सफलता मिलती है। साथ ही, प्रिंसी खादी बोर्ड की अधिकारी अल्का पांडेय, निसबड के सजवाण जी और अन्य अधिकारियों का आभार व्यक्त करती हैं।”

प्रिंसी के उद्योग का पता- न्यू फैंसी सैनिटरी पैड, चोई बस्ती, रामपुर कलां, देहरादून
8410876192, 9528399551, 9410517528

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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