Uttarakhand

तेजी से बदल रहा दूनः रोशन दलाल

देहरादून के पुराने दिनों की बात करते हुए इतिहासकार रोशन दलाल बताती हैं कि समय के साथ शहर तेजी से बदला है। शहर की शिराएं मानीं जाने वाली नहरें दफ़न कर दी गई हैं। पुराने समय में लोग बताया करते थे कि देहरादून में सैकड़ों मोर और हरतरफ लीची, अमरुद के बाग़ होते थे। आजकल सिर्फ कंक्रीट के जंगल हैं। उस दौर में राजपुर रोड, हाथीबड़कला के लिए सिर्फ घोडा गाड़ी थी। सडकें खाली खाली रहती थी।

आज पर्यावरण पर बहुत दबाव है। राजपुर रोड पर जहां हरियाली की सुरक्षा होनी चाहिए थी, वहाँ प्रस्तावित फ़ूड कोर्ट का वो मन से विरोध करती हैं। उन्होंने कहा इससे ब्लाइंड स्कूल के बच्चों को सबसे अधिक परेशानी होगी। इस शहर में सैकड़ों जगह हैं, जहाँ खाने पीने की व्यवस्था है।

युवा पीढ़ी को उनका सन्देश है कि पर्यावरण के अभिन्न अंग होने की वजह से सूक्ष्म कीट पतंगों का इको सिस्टम में बहुत बड़ा योगदान है। पर्यावरण पर उपभोक्तावाद की वजह से बहुत दबाव है। पशु प्रेमी रोशन दलाल के घर पर आज छह बिल्लियाँ और एक डॉगी है। उन्होंने अपनी सबसे प्रिय बिल्ली – स्वीटी के यादों को भी साझा किया !

1952 में मसूरी में जन्मी कैंब्रियन हाल स्कूल से पांचवीं तक की शिक्षा के बाद रोशन दलाल ने हैदराबाद से स्कूलिंग पूरी की। 1969-1972 तक बॉम्बे यूनिवर्सिटी से बीए की शिक्षा के बाद जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से पुरातन भारतीय इतिहास में एमए, पीएचडी व एमफिल की। रोशन दलाल ने 9 महत्वपूर्ण किताबें लिखी !

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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