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समय पर बारिश नहीं होने पर किसान कृष्णा बोलीं, “अकाल ही तो पड़ेगा, जब इतने मकान बनेंगे”

देहरादून पलेड गांव की कृष्णा देवी बताती हैं, समय पर बारिश नहीं होने से खेतीबाड़ी पर पड़ा बुरा असर

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

पलेड गांव (Paled Village) में कृष्णा देवी, घर के पास के खेत में घुस आए लंगूरों को भगा रही हैं। फसल की सुरक्षा के लिए उनको दिनभर मुस्तैद रहना पड़ता है। उन्होंने खेत में दस दिन पहले मक्का का बीज बोया था, जिसके उगने की उम्मीद कम है, इसकी वजह बारिश नहीं होना और बीज को सूअर, बंदर, लंगूर, खरगोश और अन्य छोटे बड़े जानवरों द्वारा नुकसान पहुंचाना है। यही वजह है कि लोगों ने खेती करना छोड़ दिया है। पलेड गांव उत्तराखंड के देहरादून जिले की लड़वाकोट ग्राम पंचायत का गांव है।

हमने जब उनसे क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन शब्द के बारे में जानकारी चाही तो उनका कहना था कि “यह शब्द उन्होंने सुना है। यह समय पर बारिश नहीं होने को लेकर है।” पलेड गांव में खेती वर्षा पर निर्भर है।

कृष्णा देवी कहती हैं ” समय पर बारिश नहीं होने से खेतीबाड़ी पर बुरा असर पड़ता है। पहाड़ में खेतीबाड़ी और पशुपालन में महिलाएं ही व्यस्त रहती हैं, इसलिए सीधे सीधे यह महिलाओं को प्रभावित करता है। बारिश होने पर पिछले साल इस समय तक खेत में मक्का के पौधे दिखने लग गए थे।”

“मेरा मायका द्वारा गांव में है, लगभग 27 साल पहले शादी होकर पलेड गांव पहुंची। पहले यहां खेती के इतने बुरे हाल नहीं थे। हमने 20 किलो फ्रैंचबीन तक बोई। कोई उजाड़ नहीं थी। पिछले आठ-दस साल से ही जंगली जानवर खेतों को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। पहले खेतों में कोई जानवर नहीं आता था। यहां इतने खरगोश हो गए हैं, आप आज मिर्च की पौध लगाओ, दूसरे दिन जाकर देखो, मिर्च दिखेगी नहीं,” 48 साल की कृष्णा देवी बताती हैं।

पलेड गांव की कृष्णा देवी खेत में घुसे जंगली जानवरों को खदेड़ते हुए।

यह पूछे जाने पर शहरों में इमारतें बनने, पेड़ों को काटने, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने, इमारतें बनाने के लिए पहाड़ों को काटने का असर आप पर भी पड़ रहा है, पर कृष्णा हंसते हुए कहती हैं, “हम इसको अकाल पड़ रहा है,” बोलते हैं। ” आप ही बताओ, अकाल नहीं पड़ेगा, जब इतने घर (मकान), बड़ी बड़ी इमारतें बना दी जाएंगी। पेड़ों को काटा जाएगा।”

कृष्णा देवी, जो 27 साल से पलेड गांव में कृषि कर रही हैं, अपने अनुभव के आधार पर बताती हैं, “अगर ज्यादा बारिश हुई तो अदरक खराब हो जाएगी। पिछली बार, बारिश इतनी पड़ गई कि पूरी अदरक खेतों में ही खराब हो गई। हमें ऐसा चाहिए कि एक बारिश अभी हो जाए और फिर एक हफ्ते बाद फिर हो। खेती के लिए यहां बारिश जरूरी है, क्योंकि यहां की जमीन में मिट्टी कम, पत्थर ज्यादा है। हमने मिर्च की पौध लगाई थी, उनमें फूल आ गए थे, पर बारिश बंद होने पर पौधे सूख गए।”

कृष्णा देवी बताती हैं, “जंगल में चारा पत्ती नहीं मिल रहा, जंगल सूख रहे हैं। जंगल में बकरियां चराने के लिए आने वाले लोग बोलते हैं कि यहां खूब घास होती थी। पर दो-चार साल से जंगलों में घास कम हो गया। यहां लालटेन घास (लैंटाना) बढ़ गया। पहले बकरियां चराने वाले यहां कई दिन रुकते थे, पर अब एक दिन से ज्यादा नहीं रुकते। यह सब बारिश समय पर नहीं होने की वजह से हो रहा है। जब, बारिश समय पर नहीं होगी, तो जंगलों में घास कहां से होगी। पूरी सर्दियों में बारिश नहीं हुई, तो घास सूख गया। बारिश अब पड़ेगी तो कितनी घास हो पाएगी।”

“उनके पास छोटे बड़े मिलाकर चार पशु हैं, पर इनके लिए घास पत्ती जुटाने में काफी समय लगता है। अधिकतर खेत खाली छोड़ दिए गए हैं, इसलिए पशुओं के चारे के लिए खेती पर आश्रित नहीं रह सकते।”

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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