Blog LiveFeaturedUttarakhand
उत्तराखंड में चुनावी घोषणाओं के बीच यह खबर आईना दिखाती हैं, क्या किसी को शर्म आई…
उत्तराखंड में इसी साल 2022 में विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Election 2022) होने हैं। चुनाव से पहले इस बात पर जोर है कि कौन कितनी घोषणाएं करता है। भाजपा (Uttarakhand BJP) और कांग्रेस (Uttarakhand Congress) के साथ आम आदमी पार्टी (AAP) सिर्फ और सिर्फ घोषणाओं के जोर पर चुनाव में जीत हासिल करना चाहते हैं। पर, इस बीच अल्मोड़ा (Almora) से आई एक खबर चुनावी नेताओं को आईना दिखाने वाली है, क्या सत्ता सुख की लालसा में खुद को जनता के सबसे बड़े हितैषी के तौर पर प्रोजेक्ट करने वाले हिम्मत के साथ कह सकते हैं कि हम शर्मिंदा हैं।
यह मामला अल्मोड़ा के भैसियाछाना ब्लाक का है, जो जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी. दूर है। इसी ब्लाक में पतलचौरा नाम का गांव है, जिसमें 15 से 20 परिवार रहते हैं। जहां कोई बीमार हो जाए तो उसके लिए स्वास्थ्य सुविधा पाना बहुत आसान नहीं है। खच्चर या डोली के सहारे करीब पांच किमी. खड़ी चढ़ाई चढ़कर कनारछीना पहुंचना होता है और यहां से रोगी को गाड़ी से लगभग 19 किमी. दूर भैंसियाछाना अस्पताल ले जाया जाता है। इस तरह का उत्तराखंड का यह पहला गांव नहीं है। देहरादून राजधानी के पास भी कई गांव हैं, जहां स्वास्थ्य सेवा पाने के लिए बहुत सब्र रखने की आवश्यकता है।
खबरों के मुताबिक, चार जनवरी, 2022 की रात पतलचौरा गांव की एक महिला को प्रसव पीड़ा हुई। परिजनों ने महिला को डोली में बैठाकर सर्द रात में बारिश के बीच लगभग पांच किमी. चढ़ाई पार करके सड़क तक पहुंचने का निर्णय लिया। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सड़क तक पहुंचने के लिए पूरी शक्ति के साथ आगे बढ़ते रहे। आधे रास्ते में डोली में ही बच्चे का जन्म हो गया। यह ईश्वर की कृपा है कि मां और बच्चा स्वस्थ हैं।
- हम शर्मिंदा हैंः उत्तराखंड की राजनीति में इस नये शब्द को लेकर
- कहां गया जल, नलों की टोंटियां घुमाकर रोज देखता है देहरादून का हल्द्वाड़ी गांव
उत्तराखंड में ऐसा वाकया पहली बार नहीं हुआ। इस तरह की खबरें चर्चाओं में रहती हैं। पर, क्या यह उन राजनीतिक दलों के लिए खुद पर शर्म करने का विषय नहीं है, जो उत्तराखंड के हर घर तक स्वास्थ्य एवं शिक्षा पहुंचाने का दावा और वादा करते हैं।
मीडिया मे इस गांव के प्रधान दीवान सिंह मेहता के हवाले से कहा गया है कि ग्रामीण लंबे समय से सड़क बनाने की मांग कर रहे हैं। वो बताते हैं कि कनारछीना- पतलचौरा सड़क के लिए रीठागाड़- दगड़ियो संघर्ष समिति ने भी लंबे समय तक संघर्ष किया, लेकिन प्रशासन ने इसको गंभीरता से नहीं लिया। उनका कहना है कि गांव से अस्वस्थ, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक ले जाने के लिए आज भी डोली या खच्चरों का सहारा लेना पड़ता है।
हालांकि इस मामले में राहत वाली खबर यह है कि उत्तराखंड महिला आयोग की अध्यक्ष ज्योति साह मिश्रा ने स्वतः संज्ञान लेते हुए अल्मोड़ा के जिलाधिकारी को पत्र भेजकर संबंधित विभाग से एक सप्ताह में स्पष्टीकरण तलब किया है। उन्होंने जवाब मांगा है कि पतलचौरा गांव में सड़क नहीं होने के क्या कारण हैं। उन्होंने उन गर्भवती महिलाओं की सूची मंगाई है, जिनके गांवों तक सड़क नहीं है।
- हकीकत ए उत्तराखंडः इस आबादी का न तो कोई गांव है और न ही कोई शहर
- हाल ए हल्द्वाड़ीः “बचपन से सुन रहे हैं कि हमारे गांव तक रोड आएगी, रोड आएगी…,पर यह कब आएगी”
यह तो उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों की घटनाएं हैं, राजधानी देहरादून से करीब 30 किमी. दूर भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं। डोईवाला विधानसभा के अंतर्गत हल्द्वाड़ी गांव तक पांच किमी. सड़क नहीं बनी, जबकि इसके तीन सर्वे हो चुके हैं।
हल्द्वाड़ी गांव निवासी 35 वर्षीय गंभीर सिंह सोलंकी बताते हैं, मैं उस रात को कभी नहीं भूल सकता। बहुत तेज बारिश हो रही थी। गांव से सड़क तक जाने वाला कच्चा रास्ता बंद हो गया था। मेरी पत्नी प्रसव पीड़ा से व्यथित थीं। उनको जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना था। अस्पताल गांव से बहुत दूर है और हमें तेज बारिश में ही जंगल का पांच किमी. ऊबड़ खाबड़ रास्ता तय करना था। ग्रामीणों के सहयोग से हम किसी तरह एक दूसरे के सहारे आगे बढ़ रहे थे। मुझे याद है, उस समय रात के 12 बजकर 20 मिनट पर, मेरी बिटिया ने रास्ते में ही बारिश में जन्म लिया।”
ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए गंभीर सिंह कहते हैं, मुझे हमेशा इसी बात का डर रहता है कि ऐसा किसी के साथ न हो। उनकी बिटिया अब आठ साल की हो गई है। पर, हल्द्वाड़ी गांव से अस्पताल अभी भी, पहले जितना ही दूर है और रास्ता भी उसी हाल में है। हालांकि, गांव वालों ने श्रमदान करके इसको यूटिलिटी चलने लायक बना दिया है, लेकिन जोखिम हमेशा बरकरार है।
उनका कहना है, हम बचपन से सुन रहे हैं कि हमारे गांव तक रोड आएगी, रोड आएगी, पर यह कब आएगी। मेरा भाई, गांव से पलायन कर गया। मैं भी, यहां से परिवार को लेकर चला जाऊँगा। मैंने थानो के एक स्कूल में बिटिया का एडमिशन करा दिया है। बेटे का भी वहीं एडमिशन करा दूंगा। आप यहां स्कूल भवन की हालत देख सकते हो। बच्चों को पढ़ाई के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
उत्तराखंड से कुछ खबरें और हैं- 28 अक्तूबर, 2021 की बृहस्पतिवार रात धौलादेवी ब्लॉक निवासी 22 वर्ष की महिला को प्रसव पीड़ा हुई। सड़क बंद होने के कारण घर में ही प्रसव के बाद महिला की हालत खराब होने पर उनको अस्पताल ले जाने की नौबत आई, लेकिन बंद सड़क के कारण महिला को जान गंवानी पड़ी।
29 जून, 2021 को पिथौरागढ़ जिले के नामिक गांव में गर्भवती महिला को आपदा में ध्वस्त पैदल रास्तों से डोली के सहारे 10 किमी पैदल चलकर बागेश्वर जिले के गोगिना गांव पहुंचाया। इसके बाद 35 किमी दूर वाहन से कपकोट अस्पताल ले जाया गया। यहां सुरक्षित प्रसव हो गया है।
17 सितंबर 2017 को अल्मोड़ा के धारानौला क्षेत्र में महिला को सड़क पर ही बच्चे को जन्म देना पड़ा। एंबुलेंस उस जगह पर नहीं पहुंच सकी थी।
17 जनवरी, 2020 को पिथौरागढ़ के मुनस्यारी तहसील के मालूपाती गांव तक सड़क नहीं होने पर गर्भवती महिला को माइनस तीन डिग्री तापमान में खेत में ही शिशु को जन्म देने को मजबूर होना पड़ा।
चंपावत के डांडा में 22 जून,2016 को 23 साल की गर्भवती महिला की हालत बिगड़ने लगी। ग्रामीणों ने महिला को कंधों के सहारे 25 किमी पैदल दूरी लांघ रोड हैड पर कलोनियां पहुंचाया।