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मिलो से मिलिए

मिलो ग्रीस के महान शक्तिशाली रेसलर थे। उन्होंने लगातार छह ओलंपिक में जीत हासिल करके कई मेडल जीते। मिलो इतने शक्तिशाली कैसे हो गए। इसके पीछे एक प्रेरणास्पद अभ्यास है, जो बताता है कि लगातार प्रयास करने से बड़े से बड़े टास्क को आसान किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए नियमित तौर पर अभ्यास की जरूरत है।

बताया जाता है कि मिलो ने अपना अभ्यास नवजात बछड़े को कंधों पर उठाकर किया। वाकई यह उनके के लिए आसान था। उनका कहना था कि वो एक बछड़े को आसानी से उठा सकते हैं, आप क्यों नहीं। इस पर आप कहेंगे, एक छोटे से बछड़े को कंधे पर उठा लेना कौन सी बड़ी बात हो गई। यह तो बड़ा आसान काम है।

क्या आप जानते हैं कि मिलो उस बछड़े को जब भी समय मिलता, कंधे पर उठा लिया करते थे। रोजाना दिन में कई बार वह एसा करते थे। जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी एक बड़े बुल( सांड) को कंधों पर उठाने का प्रयास करते रहे। वे लोग मिलो पर हंसते थे कि वो बछड़े को कंधे पर उठा रहे हैं। लेकिन मिलो ने अपने नियमित अभ्यास को नहीं छोड़ा और समय के साथ बछड़ा बड़ा होता गया और साथ ही उसको उठाने की मिलो की क्षमता भी बढ़ती गई।

आखिरकार एक दिन एसा भी आया, जिस दिन मिलो ने उस भारी सांड को कंधे पर उठा लिया, जो कभी बछड़ा था। लगातार अभ्यास ने मिलो की ताकत को बढ़ा दिया। लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी सांड को ही उठाने का प्रयास करते रहे। कभी वे उसे उठाने में सफल भी हो जाते थे, लेकिन वो मिलो की तरह सर्वश्रेष्ठ ताकत हासिल नहीं कर पाए।

यहां कहने का मतलब है कि कोई भी कार्य तब तक असंभव या कठिन है, जब तक हम उसको करने के लिए नियमित तौर पर अभ्यास नहीं करते। किसी भी कार्य को करने के लिए एक प्रक्रिया को अपनाना होता है, इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए सब्र के साथ लगन और जुझारूपन भी होना चाहिए। यह ठीक उसी तरह है, जैसे नौ की टेबल तक पहुंचने के लिए दो से लेकर आठ तक की टेबल का अभ्यास करना जरूरी है।

यदि आप क्रमबद्ध तरीके से कोई कार्य नियमित अभ्यास के साथ करोगे तो उससे जुड़े कठिन हिस्सों पर भी सफलता हासिल कर सकोगे। यानि गुणा और भाग से पहले आपको टेबल, जोड़ और घटाव के सवालों की प्रैक्टिस करनी जरूरी होती है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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