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कालीमाटी गांव में होली के गीतों की परंपरा सौ साल से भी ज्यादा पुरानी

गांव के युवा और बच्चे बुजुर्गों से मिली गीतों की विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं

डोईवाला। 13 मार्च, 2025

रायपुर ब्लॉक का बेहद सुंदर गांव कालीमाटी अपनी परंपराओं को मजबूती से आगे बढ़ा रहा है। यहां की होली के गीतों को गाने का रिवाज वर्षों पुराना है। ग्रामीण कहते हैं, उनको भी नहीं मालूम, शायद अंग्रेजों के जमाने से गांव में होली के गीतों को गाते हुए घर घर जाकर होली मनाने की परंपरा है। वक्त बदल रहा है, पर इस गांव के बच्चे अपने बुजुर्गों से मिली इस विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं। बड़ों के साथ बैठकर बच्चे भी गीतों को याद कर रहे हैं, ढपली की लय ताल सीख रहे हैं।

देहरादून से लगभग 20 किमी. दूर पहाड़ों की तलहटी पर बसा कालीमाटी गांव। दूर दूर तक दिखते खेत, जिनमें गेहूं लहलहा रहा है। पहाड़ों पर बसे गांवों के घरों में जलते बल्ब दूर से दीयों की बंदनबार से दिखते हैं। लौटती सर्दियों की शाम खेतों के बीच स्थित श्रीभुईया देवता जी के मंदिर परिसर में ग्रामीण, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, होली के गीतों का अभ्यास कर रहे हैं। बच्चे ढपली बजाते हुए गीत गा रहे हैं। गांव में होली पर्व से कुछ दिन पहले से ही गीतों को लयबद्ध गाने का अभ्यास शुरू हो जाता है।

मंदिर परिसर में यहां गणेश मनवाल, मुकेश मनवाल, सक्षम मनवाल, आदित्य कंडारी, अमन, रोहित मनवाल, विनोद कुमार, विजय कठैत होली के गीत गाते मिले।

करीब 60 साल के रंगमंच के कलाकार रघुवीर सिंह बताते हैं, हम श्री रामायण, श्रीकृष्ण लीला के प्रसंगों, पौराणिक कथाओं के प्रसंगों पर गीत गाते हैं। हमें नहीं मालूम कि होली के गीतों की यह परंपरा गांव में कब से चल रही है। उन्होंने अपने बचपन में बुजुर्गों को गांव में होली के गीत गाते हुए सुना था। अब आप हिसाब लगा लो, यह परंपरा कब से चल रही है। यह तो अंग्रेजों के जमाने से होगी, मेरा ऐसा अनुमान है।

मंदिर में अभ्यास के दौरान हमें ढपली पर अभ्यास करते विनोद मिले, जो रघुवीर सिंह के भाई हैं। विनोद बताते हैं, हमारे गांव की यह परंपरा बहुत पुरानी है। हम होलिका पूजन के बाद घर-घर संगीत के पूरे साजोसामान के साथ जाते हैं, वहां एक-एक गीत या लाइन सुनाते हैं।

ग्रामीण मुकेश मनवाल बताते हैं, होली के दिन हम गांव से बाहर नहीं जाते, अपने गांव में ही होली खेलते हैं। गीतों से हमारा पुराना नाता है। होली के गीतों की शुरुआत, अपने ग्राम देवता श्री भुईया देवता जी की प्रार्थना से होती है।

रघुवीर बताते हैं, पहले हम कभी किसी के घर, कभी किसी के घर जाकर होली के गीतों की रिहर्सल करते थे। एक समय ऐसा भी था, जब हम जहां होलिका का ध्वज होता था, वहीं सड़क पर या मैदान पर बैठक रिहर्सल करते थे। कोई भी परिस्थिति हो, हमने अभ्यास नहीं छोड़ा। होली मनाने के अपने परंपरागत तरीके को नहीं छोड़ा। आज हम श्री भुईया देवता जी के मंदिर परिसर में अभ्यास कर रहे हैं।

वो बताते हैं, बच्चे भी हमें देखकर गीतों का अभ्यास करते हैं और अपनी वर्षों पुरानी परंपरा तो जीवंत किए हैं, यह अच्छी बात है।

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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