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चींटियों के मजबूत दांतों का रहस्य पता चला

इंडिया साइंस वायर

लेक्ट्रॉनिक उपकरणों का आकार लगातार कम हो रहा है। गैजेट्स में उपयोग के लिए बेहद छोटे और जबरदस्त मजबूत उपकरण आवश्यक हैं। इसके लिए वैज्ञानिकों के एक समूह ने चींटी के दांतों को अध्ययन किया है, जो आकार में बेहद सूक्ष्म होने के बावजूद बेहद मजबूत और धारदार होते हैं।

मनुष्य के बालों से भी पतले, कीड़ों के बेहद सूक्ष्म चॉपर या दाँत मजबूत पत्तियों को पूरी ताकत से काट सकते हैं। आणविक स्तर पर इमेजिंग से पता चलता है कि छोटे जीव अपने सूक्ष्म उपकरणों को तेज करने के लिए जस्ता का उपयोग करते हैं।

अपने अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने पाया कि जिंक अणुओं की परत चींटी के दांतों को सख्त एवं धारदार औजार में बदल देती है। उनका कहना है कि समान रूप से व्यवस्थित दाँतों के जिंक अणुओं से यह संभव हो पाता है, जिससे किसी चीज़ को काटते समय जीवों के बल का समान वितरण होता है।

चींटी के दांतों की संरचना पर किए गए इस अध्ययन से जुड़े अमेरिकी ऊर्जा विभाग के पैसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेटरी के वरिष्ठ शोधकर्ता अरुण देवराज ने बताया, “समान वितरण होना, अनिवार्य रूप से, इसका एक रहस्य है।”

चींटियों के चॉपर्स “मानव त्वचा को भी आसानी से काट सकते हैं, जबकि यह कर पाना हमारे अपने दाँतों से भी मुश्किल होगा।” यह अध्ययन, हाल में शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।

यदि आपका कभी चींटियों से पाला पड़ा हो, तो आपने अनुभव किया होगा कि वे आपको कितनी तेज़ काट सकती हैं। अपने घर में भी आपने देखा होगा कि चींटी, दीमक और अन्य छोटे संधिपाद प्राणियों में लकड़ी एवं अन्य सामग्रियों की आश्चर्यजनक विविधता को चबाने की उल्लेखनीय क्षमता होती है।

इन्सान की जरूरतों के अनुसार टिकाऊ एवं उपयोगी पॉकेट-साइज़ इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण को सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक प्रकृति के रहस्यों की तह तक जाने की ऐसी कोशिशें करते रहते हैं।

यह अजीब लगना स्वाभाविक है कि बेहद छोटे जीवों के जबड़े और दांत अत्यधिक सख्त होते हैं। वास्तव में, ऐसे कीटों के जबड़े विशिष्ट प्रोटीन और पॉलीसेकेराइड पॉलीमर काइटिन के संयोजन से बने होते हैं, जो कि काइटिन माइक्रोफाइब्रिल्स उत्पादन के लिए हाइड्रोजन बॉन्ड द्वारा जुड़े होते हैं।

काइटिन सख्त होता है, और जब इसे कैल्शियम कार्बोनेट जैसी अन्य सामग्रियों के साथ मिलाया जाता है, तो झींगा और केकड़ों के खोल में पाए जाने वाले सख्त पदार्थ बन जाते हैं। इसका एक उदाहरण है कि जब आठ प्रतिशत जिंक मिलता है, तो काइटिन काफी सख्त हो जाता है, जिससे चींटी के दाँत जैसी तेज़ एवं टिकाऊ संरचनाएं बनती हैं।

ओरेगॉन विश्वविद्यालय के रॉबर्ट स्कोफिल्ड के नेतृत्व में जैव-भौतिकविदों की एक टीम चींटी के दाँतों के साथ-साथ अन्य सूक्ष्म जीव उपकरणों के प्रभावी प्रतिरोध को मापने का प्रयास कर रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे कैसे काम करते हैं, और कैसे उनकी नकल करके बड़े पैमाने पर उसकी प्रतिकृतियाँ तैयार की जा सकती हैं।

इसके लिए, वैज्ञानिक चींटी के दाँत एवं इसके जैसे अन्य जीव उपकरणों की कठोरता, लचीलेपन, घर्षण प्रतिरोध, और प्रतिरोधी प्रभाव का आकलन करते हैं।

इंडिया साइंस वायर

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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