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शिक्षक और परियों की दुनिया

एक शिक्षक को क्लास में पढ़ाते समय नींद आ जाती थी। वह बच्चों को क्लास वर्क सौंपकर कुर्सी पर बैठे बैठे खर्राटें भरने लगते। बच्चों ने उनसे पूछ लिया,सर आप तो क्लास में ही सो जाते हैं। शिक्षक ने कहा, बेटा कौन कहता है कि मैं सो जाता हूं। बच्चे बोले- हमने तो आपको सोते हुए देखा है। रोज आप क्लास में सो जाते हो। शिक्षक ने जवाब दिया- बच्चों, आपको ऐसा लगता है कि मैं सो रहा हूं। मैं तो आपके लिए बहुत सारी जानकारियां इकट्ठी करने के लिए परियों की दुनिया में चला जाता हूं। बच्चों ने कहा, ठीक है सर, आप हमारा कितना ख्याल रखते हैं।

गर्मियों में एक दिन में शिक्षक ने क्लास रूम में प्रवेश किया, तो कुछ छात्र बैंच पर सिर रखकर सोते हुए मिले। शिक्षक ने छड़ी उठाई और कहा, यहां पढ़ने आते हो या सोने के लिए। बच्चों ने कहा, सर हम आपको ढूंढने के लिए परियों की दुनिया में गए थे। हमें वहां बहुत सारी परियां मिलीं। हमने उनसे पूछा कि क्या आपने हमारे शिक्षक को देखा है। इस पर उन्होंने कहा, आपके शिक्षक को हम नहीं जानतीं। वो यहां कभी नहीं आए। बच्चों का जवाब सुनने के बाद शिक्षक ने भविष्य में पूरी कोशिश की कि क्लासरूम में झपकियां न लें।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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