लालची डॉगी और पानी में परछाई
किसी शहर में रहने वाला एक डॉगी बहुत लालची था। एक दिन मीट की दुकान से मीट का टुकड़ा लेकर दौड़ लिया। वह स्वयं पर बड़ा गर्व महसूस कर रहा था। वह सोच रहा था कि शहर के किसी डॉगी को इतना बड़ा टुकड़ा कभी नहीं मिला होगा। दौड़ता हुआ वह नदी किनारे पहुंचा और इत्मीनान से मीट खाना शुरू किया। अभी उसने खाना शुरू ही किया था कि नजर पानी पर पड़ गई।
वह देख रहा था कि उसकी तरह का एक और बड़ा डॉगी भी उसके बराबर मीट खा रहा है। वह यह अंदाजा नहीं लगा पा रहा था कि वह पानी में अपना प्रतिबिंब देख रहा है, क्योंकि वह तो अभिमान में यह सोच रहा था कि शहर में किसी डॉगी को ऐसा अवसर कभी नहीं मिला और न ही मिलेगा। उसने सोचा क्यों न इस डॉगी से उसका खाना छीन लिया जाए। वह तो खुद को बहुत बहादुर जो समझ रहा था।
बिना कुछ सोचे समझे वह पानी में दिख रहे डॉगी पर झपट गया। पानी में गिरने पर ही उसे अपनी भूल का अहसास हुआ कि यह तो उसकी परछाई थी। डॉगी पर झपटने के चक्कर में उसके मुंह में फंसा मीट का टुकड़ा भी पानी में गिरकर बह गया। उसे अपनी गलती महसूस हुई कि लालच में इंसान हो या जानवर, अपना अच्छा बुरा नहीं समझ पाता। (अनुवादित)