कैंडिल वाली परी से पिता का वादा
एक व्यक्ति था, जो अपनी बेटी को बहुत स्नेह करता था। उसकी बेटी गंभीर रूप से बीमार हो गई। बेटी को अच्छे से अच्छे डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन उसके स्वास्थ्य में कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वह बहुत दुखी था। उसने बेटी के इलाज के लिए वह सभी प्रयास किए, जो बेहतर से बेहतर हो सकते थे। लेकिन बेटी को बचा नहीं सका।
बेटी के गम में वह सदमे में आ गया। उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। उसके चेहरे से हंसी गायब हो गई। वह अपने घनिष्ट मित्रों से भी दूर होने लगा। किसी से बात भी नहीं करता था। अकेले ही रहता। उसके जीवन पर निराशा हावी हो गई। बेटी के गम में उसकी आंखों में अक्सर आंसू रहते।
एक रात सपने में उसने खुद को स्वर्ग की सैर पर पाया। वहां छोटी-छोटी परियां कैंडल लेकर मार्च कर रही थीं। एक बड़े सिंहासन पर परियों की रानी बैठी थीं और छोटी परियां कैंडल लेकर उनके सामने से होकर जा रही थीं। लंबी लाइन थी परियों की। एक परी को छोड़कर सभी की कैंडिल जल रही थीं। वह बुझी हुई कैंडिल लेकर चल रही परी के पास पहुंच गया। यह परी उसकी बेटी थी, जो उससे अलविदा हो चुकी थी।
उसने उससे पूछा, आपकी कैंडिल क्यों नहीं जल रही है। इस छोटी परी ने जवाब दिया, पापा यह आपके आंसुओं से बुझ गई है। अगर आप नहीं रोओगे और खुश रहोगे तो मेरी कैंडिल भी जल जाएगी और रोशनी फैलाएगी। आप मुझसे वादा करो कि फिर कभी नहीं रोओगे और खुद पर निराशा को हावी नहीं होने दोगे। यह कहकर यह छोटी परी कैंडिल मार्च करती हुई आगे चली गई।
उसका सपना टूट गया। उसने तय कर लिया कि अब वह अकेले नहीं रहेगा। निराशा को खुद पर हावी नहीं होने देगा और जीवन में उम्मीदों को बनाए रखने के लिए बेटी की कैंडिल को बुझने नहीं देगा। हमेशा खुश रहेगा और दूसरों के जीवन में भी खुशियां लाने का काम करेगा। अभ वह परी बन चुकी बेटी से किए वादे को पूरा कर रहा है, क्योंकि वह अपने आंसुओं से उसकी कैंडिल को बुझने नहीं देना चाहता। (अनुवादित)