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तक धिनाधिनः कहां से आए अक्षर, इनको किसने बनाया

अनुशासन और जिज्ञासा शिक्षा प्राप्त करने की प्रमुख आवश्यकता हैं। आगामी नवंबर माह में श्री दर्शन संस्कृत महाविद्यालय अपनी शताब्दी मनाएगा। महाविद्यालय ने अपने छात्रों को अनुशासित बनाया है और ज्ञान हासिल करने की जिज्ञासा उनको खास बना रही है। एक छात्र का सवाल था कि वायुमंडल में इतनी सारी गैसें हैं, लेकिन मनुष्य आक्सीजन ही क्यों ग्रहण करता है। एक और सवाल, अक्षर कहां से आए, इनको किसने बनाया। विचारों को कैसे रोका जा सकता है। ऐसी ही कई जिज्ञासाएं प्रस्तुत की गईं, जिनमें से कई के जवाब दिए गए और कुछ के विस्तार के साथ जवाब देने के लिए समय मांगा गया। संस्कृत का अध्ययन करने वाले अन्य क्षेत्रों में भी बेहतर प्रदर्शन करते हैं, ऐसा हमने तक धिनाधिन के दसवें पड़ाव पर अनुभव किया।

शनिवार शाम श्री दर्शन संस्कृत महाविद्यालय में तक धिनाधिन कार्यक्रम तय किया गया। रविवार सुबह आठ बजे डोईवाला से वाया ढालवाला, कैलाश गेट, मुनिकी रेती श्री दर्शन संस्कृत महाविद्यालय पहुंचे। हमारे साथ थे- गुरुकुल प्ले स्कूल के संस्थापक व सीनियर काउंसलर हेमचंद्र रियाल, मानवभारती स्कूल के शिक्षक व सिविल सेवा परीक्षा विशेषज्ञ अभिषेक वर्मा। तक धिनाधिन कहानियां सुनाने के साथ करिअर काउंसलिंग और मोटिवेशन पर भी फोकस कर रहा है।

रामझूला से ठीक पहले बायीं ओर स्थित महाविद्यालय भवन से गंगा दर्शन होते हैं। गर्मियों में गंगा में रंगबिरंगी राफ्ट और नदी पार करातीं नावें आकर्षक नजारा पेश करती हैं। यहां शांत और ठंडी हवाएं झुलसाती गर्मी से राहत दिला रही हैं। मन करता है कि सुबह और शाम महाविद्यालय के आंगन में बैठकर गंगा के अविरल प्रवाह को देखता रहूं, क्योंकि ऐसा करना मुझे सुकून ही नहीं देगा, बल्कि कुछ अभिनव करने के लिए प्रेरित भी करेगा। काफी अच्छा महसूस कर रहा था।

सुबह नौ बजे तक हम महाविद्यालय में थे। यहां कक्षा छह से उत्तर मध्यमा (12वीं) तक के डेढ़ सौ से अधिक छात्र महाविद्यालय परिसर में ही रहते हैं। इनके साथ ही करीब सौ से अधिक छात्र शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण करते हैं, जो बाहर रहते हैं। यहां उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश सहित कई राज्यों से आए छात्र हैं। महाविद्यालय में व्यवस्थापक अनूप रावत जी से मुलाकात हुई, जिन्होंने छात्रों को तक धिनाधिन कार्यक्रम में शामिल होने को कहा।

कुछ ही समय में तक धिनाधिन की शुरुआत हुई। छात्रों को तक धिना धिन कार्यक्रम के बारे में बताया गया। हमने सवाल किया, पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता। यह काल्पनिक सवाल है, जो अक्सर छात्रों के बीच दोहराया जाता है। हमें ऐसा महसूस हुआ कि छात्र हमसे इस सवाल की अपेक्षा नहीं कर रहे थे। हमें लगा कि छात्रों ने हमारे इस सवाल को बचकाना करार दिया है। ऐसा इसलिए महसूस हुआ, क्योंकि दो तीन बार पूछने पर भी कोई जवाब नहीं मिला था। अचानक एक छात्र ने हाथ उठाया और कहा, पेड़ के पैर नहीं होते।

दूसरे ने कहा, वह मिट्टी से जकड़ा होता है। किसी ने पूछा, क्या पेड़ घूमने जा सकता है। सवाल- जवाब का यह सिलसिला देर तक चला। एक छात्र ने कहा, पेड़ घूमने जाता तो मिट्टी को जड़ों से हटना पड़ता। भू क्षरण को रोकने के लिए पेड़ घूमने नहीं जाता। एक अन्य ने कहा, फल कौन देता, छाया कहां से लाते। छात्र अंकुश जोशी ने स्पष्ट किया कि पेड़ घूमने जाता तो आक्सीजन नहीं मिल पाती। बस फिर क्या था, तालियों की आवाज से सभागार गूंज उठा। छात्रों ने हमसे कहा, पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता, इसकी कहानी सुनाओ। क्योंकि सवाल पूछने से पहले ही हमने वादा किया था कि इस सवाल पर कहानी सुनाएंगे। हमने पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता, कहानी सुनाई, जिसका तालियों से स्वागत किया गया।

अब कहानी, कविताएं सुनाने की बारी थी छात्रों की। कक्षा 11 के छात्र भास्कर चतुर्वेदी ने स्वरचित कविता कलम सुनाई, जिसके बोल हैं- कलम है, जीवन का सार। भाषा का है, यह आधार।  गगन सेमवाल ने दूध बतासा कहानी सुनाई और संदेश दिया कि किसी का उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। यह कहानी एक बच्चे की है, जो भगवान को चिट्ठी लिखकर गुहार लगाता है कि उसके लिए दूध बतासे की व्यवस्था कर दो, क्योंकि उसकी मां उसको दूध बतासा खिलाने में असमर्थ है। पोस्टमैन उसकी चिट्ठी को पढ़ लेता है और बच्चे के लिए दूध बतासे की व्यवस्था करता है। बच्चे की अस्वस्थ मां की मृत्यु के बाद भी पोस्टमैन बच्चे के भोजन की व्यवस्था करता है, ठीक उस तरह जैसे कि एक पिता अपने बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं।

कक्षा 11 के धीरज सुयाल ने वाद्य यंत्रों पर गढ़वाली गीत तेरी पीड़ा मां….तथा जतिन पैन्यूली ने गीत जौ जस देई दैणा होई जै… सुनाया। कक्षा छह के नंद राम मैठाणी ने श्लोक वाचन किया। मनीष नौटियाल ने देहरादून में अपने निवास सिल्ला गांव का वर्णन किया। अंकुश जोशी ने ध्वनि और पंछी मुक्त गगन के शीर्षक पर कविता सुनाई।

सीनियर काउंसलर रियाल जी ने छात्रों से संस्कृत शब्द पर चर्चा करते हुए कहा कि संस्कार शब्द भी संस्कृत से आया है। समाज में संस्कृत भाषा का योगदान अतुलनीय है। संस्कृत शिक्षा पाने वाले छात्र हर क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, ऐसा सिद्ध हो चुका है। जीवन में स्वयं को कम नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि हर बच्चा प्रतिभावान होता है। जरूरत है प्रतिभा को समझने और मार्गदर्शन की। आपमें से कोई खेलकूद में बेहतर है, कोई भाषा साहित्य में, कोई गणित में अच्छा है और कोई संगीत में। आपको अपनी प्रतिभा को समझना है और उस दिशा में लगन और मेहनत से कार्य कीजिए, एक दिन सफलता का आसमां छू लेंगे। रियाल जी ने बच्चों को रचनात्मक और अभिनव सोचने के लिए प्रेरित किया।

सिविल सर्विस परीक्षा एक्सपर्ट अभिषेक वर्मा ने छात्रों को परीक्षा की तैयारियों के समय क्या करें और क्या न करें, के बारे में बताया। 12वीं के छात्र शुभम नौटियाल ने उनसे एनडीए ( नेशनल डिफेंस एकेडमी) की परीक्षा की तैयारी के बारे में पूछा। शुभम को एनडीए की लिखित परीक्षा में सफलता के बाद एसएसबी के सात राउंड की विस्तार से जानकारी दी गई। स्क्रीनिंग पर चर्चा करते हुए अभिषेक वर्मा ने बताया कि प्रतियोगियों को एक शब्द दिया जाता है, जिस पर उनको बोलना होता है। मान लीजिए वह शब्द ब्लैक है, क्या आपमें से कोई ब्लैक पर विचार व्यक्त करेगा। एक छात्र ने कहा, ब्लैक का मतलब काला या अंधेरा। रात में अंधेरा होता है। ब्लैक एक रंग है। अभिषेक वर्मा ने बच्चों की सराहना करते हुए कहा, वाह.. आप लोग पूरे मनोयोग से प्रयास करेंगे तो परीक्षा में सफलता मिल जाएगी। हमने बच्चों को अंधेरा बड़ा या उजाला, कहानी के जरिये ब्लैक को समझाने को कोशिश की।

कृष्णा बधानी ने पूछा कि इतिहास की खोज किसने की। अभिषेक वर्मा ने सवाल में कुछ सुधार करते हुए कहा, आप पूछिए इतिहास लेखन किसने शुरू किया। इतिहास खोजा नहीं, बल्कि रचा जाता है। आप भी इतिहास रच सकते हैं। स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख घटनाएं इतिहास में दर्ज हो गई। दुनियाभर में हुई क्रांतियां इतिहास में दर्ज हो गईं। आप कुछ ऐसा करते हैं, जिसे आने वाली कई पीढ़ियों को सुनाया या पढ़ाया जाए, तो आपने इतिहास रच दिया, जिस पर वर्षों बाद भी बात हो। उन्होंने बताया कि सबसे पहले इतिहास लेखन हेरोडॉट्स ने किया, जिनको फादर ऑफ हिस्ट्री के नाम से जाना जाता है। इसी तरह अभिषेक वर्मा ने बहुत सारे सवालों के जवाब दिए और समझाए।

आप भी जानिये छात्रों ने क्या सवाल किए- आपके पास इनके जवाब हैं तो कृपया लिखिए। कक्षा सात के सूरज पंत पूछते हैं- 1. नाव की खोज किसने की। 2. ड्रेगन को किसने पाला। 3. अक्षरों की खोज किसने की।

कृष्णा बधानी ने जानना चाहा कि 1. अंतरिक्ष की खोज किसने की। 2. हिस्ट्री की खोज किसने की।

क्लास 12 के शुभम नौटियाल का सवाल था कि 1. पहले अंडा आया या मुर्गी। 2. एनडीए और एफकैट क्या है।

अवनीश चंद्र पूछते हैं कि 1. दिमाग में आ रहे विचारों को कैसे रोका जा सकता है।

सुमित बहुगुणा ने पूछा कि 1. गंगा के पानी में इतनी गंदगी होने के बाद भी कीड़े क्यों नहीं होते।

गगन सेमवाल का सवाल है कि 1. लोभ का पिता कौन है।

सूरज पैन्यूली की जिज्ञासा है कि 1. मनुष्य की रचना किसने की।

भास्कर चतुर्वेदी पूछते हैं- 1. वायु मंडल में बहुत सी गैसें पाई जाती हैं, परन्तु मनुष्य आक्सीजन ही क्यों लेता है। 2. ब्लैक होल क्या है।

पंकज मैठाणी ने पूछा कि- 1. ट्रेन किसने बनाई औऱ उसके मन में ट्रेन बनाने का विचार क्यों आया।

जतिन पैन्यूली ने जानना चाहा कि ओजोन क्षरण क्यों हो रहा है, इसको हम कैसे रोक सकते हैं।

प्राचार्य डॉ. राधा मोहन देव ने बच्चों को आशीर्वचन देते हुए कहा, हर पल कुछ सीखने की जिज्ञासा होनी चाहिए। तक धिना धिन कार्यक्रम बालकों में जिज्ञासा उत्पन्न कराता है, जो सीखने के लिए जरूरी है। अंत में बच्चों ने शांति पाठ किया।

तक धिना धिन कार्यक्रम में कक्षा छह के मयंक शर्मा, आयुष बिजल्वाण, विशाल भट्ट, केशव गैरोला, आदित्यराज पांडे, नितिन कपरवान, आदित्य बिजल्वाण, विकास बहुगुणा, कक्षा सात के मनीष नौटियाल, सौरभ बेलवाल, आयुष जुयाल, सूरज पंत, कक्षा आठ के नितिन उनियाल, आदेश पैन्यूली, अभिषेक उनियाल, अंशुल भट्ट, ऋतिक सेमवाल, विशु शर्मा, पंकज मैठाणी, जयकृष्ण मैठाणी, नवल किशोर, अंकुश जोशी, कक्षा नौ के प्रवीन गौड़, आदित्य नैनवाल, जतिन पैन्यूली, अंकित जोशी, कक्षा दस के हिमांशु सेमवाल, सूरज सती, जगमोहन जुयाल, कक्षा 11 के भास्कर चतुर्वेदी, देवेश सती तथा उत्तर मध्यमा द्वितीय वर्ष 12वीं के सूरज पैन्यूली, अनुराग खंडूड़ी, अर्जुन शर्मा, विमलेश बहुगुणा, सुशील जोशी, अभिषेक थपलियाल, गगन सेमवाल, सुमित बहुगुणा, अवनीश चंद्र, आशुतोष शर्मा, विपुल पोखरियाल, कृष्णा बधानी, शुभम नौटियाल शामिल रहे।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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