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नेताजी का इंटरव्यू

पड़ोस का कल्लन अब बड़ा आदमी हो गया। मुझे याद है पांचवीं के पेपरों में नकल करते पकड़ा गया था। भाई ने तभी से कसम खा ली थी कि जब तक बड़ा आदमी नहीं बन जाएगा, इस स्कूल की ओर नहीं देखेगा। दोस्त ने अपनी कसम की लाज रख ली। पेपर देने तो वो किसी स्कूल में नहीं दिखा, पर भाषण देने जरूर पहुंचता है।

शहर के हर प्रोग्राम में वो चीफ गेस्ट है। कहता है- पैसा बहुत है, लगवा दो, जहां लगवाना, पर मुझे चीप घेस्ट (चीफ गेस्ट) बनवा देना। हां, पीछे जो कपड़ा लगता है न, मेरा फोटो लगना चाहिए उस पर।

एक दिन उससे मुलाकात हो गई। उसने तुरंत पहचान लिया। बोला- तुम्हें बहुत दिन से याद कर रहा था। मैंने कहा, मुझे याद कर रहे थे। वो बोला- तुम्हें, याद नहीं कर सकता क्या। मैंने कहा, क्यों नहीं, तुम मेरे पुराने दोस्त हो। पांचवीं तक साथ पढ़े हैं।

बिना शर्म बोल उठा- पढ़ा तो तुमने था, मैं तो यूं ही आता था स्कूल। मैंने बोला, दोस्त तुम जाना पहचाना नाम हो गए। सारे शहर की दीवारें और खंभे तुम्हारे काम आ गए। जलवे तो तुम्हारे ही हैं।

वो बोला, जलवे तो तुम्हारे भी हैं, जिसकी चाहे चढ़ा दो, जिसकी चाहे उतार दो। मैंने कहा, समझा नहीं। बोला, मैं समझाता हूं। तुम मेरे बारे में लिख दो कुछ भी अच्छा, जो तुम्हें पसंद हो।

मैंने पूछा, अच्छा…। क्या अच्छा, तुम ही बता दो। कहने लगा, जैसे कि मैं शहर में कई संगठनों का सणक्षक (संरक्षक) हूं। चुनाव की तैयारी कर रहा हूं। सेवा में हर समय खड़ा रहता हूं। मैंने कहा, और कुछ, जो अच्छा तुमको याद हो।

बोला- इंटरवयू (इंटरव्यू), तुमको लिखना है। कुछ भी, अच्छा लिख डालो, मुझे तो बचपन से जानते हो। मैंने जवाब दिया- याद नहीं आ रहा कुछ। कहने लगा, क्या मजाक करते हो यार।

बहुत जिद करने लगा, तो मैंने कहा, कल इंटरव्यू लूंगा। सभी सवालों के सही जवाब देना। बाकि मैं देख लूंगा। वह मान गया। सुबह नौ बजे घर पर तैयार मिला।

मेरा पहला सवाल- कहां तक पढ़े हो।

कल्लन- बचपन से ही समाज की चिंता सताने लगी थी, इसलिए स्कूल छोड़कर जनसेवा में लग गया। पांचवी में था, तब से जनता की सेवा में लगा हूं।

सवाल- आपका व्यवसाय क्या है।

कल्लन- समाज सेवा और क्या हो सकता है।

सवाल- समाजसेवा से घर परिवार और शान ओ शौकत के खर्चे कैसे चलते हैं।

कल्लन- समझे नहीं, समाजसेवा में लोगों के हाथ पैर थोड़े ही दबाते हैं, उनकी संपत्ति को भी तो…, अब कोई हमारे पास आ गया सुरक्षा मांगने, तो उसकी मदद नहीं करेंगे क्या। घर आए कुत्ते को भी बिना कुछ दिए नहीं भगाते, वो तो आदमी है…।

सवाल- आपका का कार्य क्षेत्र क्या है।

कल्लन- वो क्या होता है।

आप और किन इलाकों में समाजसेवा करते हैं। मेरा मतलब, आपको फैमस करने वाले आपके समर्थक किन क्षेत्रों में रहते हैं।

कल्लन- नदी किनारे किनारे चलते जाओ, सारा इलाका अपना है। कहो तो पूरी नदी और गांव हमारे ही हैं। बहुत परेशान हो गए थे हमारे समर्थक। कामधंधा दिला दिया उनको।

दो साल पहले क्रैशर लगा दिया था हमने गांव में। दिनरात काम कर रहे लोग। सबका धंधा चल रहा है उससे। वो क्या कहते हैं, रोजगार दे दिया हमने सबको।

सवाल- तो आप नदी खोदने को रोजगार बताते हो।

कल्लन- किसी का क्या जाता है। नदी ही तो खोदी है, वैसे भी सारा रेत बजरी बहकर अगले जिले में चला जाता। पानी के साथ सब बह जाता है। हमने इकट्ठा कर लिया तो क्या कसूर कर दिया। डेढ़ सौ परिवारों के रोटी पानी का जुगाड़ कर दिया हमने। वो भी घर के पास।

ये सभी तो हमने ही बसाए थे नदी किनारे। इनको कामधंधा देना भी हमारा फर्ज बनता है या नहीं। हमने उनको मौका दिया है, धोखा नहीं। अपने जिले का जो फायदा किया, वो नहीं दिखता किसी को। पढ़े लिखे साब लोगों का भी घर चला रहे हैं हम। थोड़ा सा हमने ले लिया तो अपराध हो गया क्या।

सवाल- आपके इलाके में नशाखोरी बढ़ी है। इसको रोकने के लिए कोई प्लान बनाया है आपने।

कल्लन- नहीं, यह सरकार और पुलिस का काम है। एक मामले में हमने सरकार को सहयोग देने का फैसला किया है, वो हम कर रहे हैं, बाकि के नशे से हमारा कुछ लेना देना नहीं है।

सवाल- सरकार को सहयोग कर रहे हैं कैसे।

कल्लन- सरकार ठेके बांट रही थी, हमने एक- दो ले लिए। तुम्हारी भाभी के नाम पर। तुम्हारी दुआ से अच्छे चल रहे हैं दोनों। गांव दूर दूर तक हो गए। ज्यादा दूर से नहीं आने वालों को घर पर भिजवा रहे हैं हम।

जितनी ज्यादा बिकेगी, फायदा तो सरकार का भी होगा। भला कौन दुकानदार होगा, जो अपने खर्चे पर घर तक सरकारी माल की डिलीवरी करेगा। सरकार का फायदा भी हो गया और जनसेवा अलग से। बड़ा पुण्य लग रहा है भाई।

सवाल- पढ़ाई छोड़कर कहां चले गए थे आप।

कल्लन- तुम तो जानते ही हो, पढ़ाई लिखाई में हमारा कछु मन नहीं था। वैसे भी स्कूल नहीं जाने की कसम खा ली थी। जिद्दी तो हम पहले से ही हैं। नाना के घर चले गए थे कामधंधे के लिए।

वहीं से नदी छानने का धंधा सीख लिया। वहां के लौंडे बड़े बदमाश टाइप के रहे। कहने लगे कातूस भरकर चलो। हमने साफ कह दिया, बिना कातूस के मारेंगे साले को….। हुनर तो बचपन से ही है। आज तक बिना कातूस के मार रहे हैं ….।

सवाल- बिना कारतूस के मार रहे हो, मैं कुछ समझा नहीं।

कल्लन- समझना भी मत। समझ जाते तो मेरा इंटरवयू नहीं लेते होते। सड़क छाप हो, सड़क छाप ही रहना। तुम इंटरवयू लो यार….। इन कातूस, वातूस से तुम्हें क्या लेना। वो हमारा काम है…. हम पर ही छोड़ दो।

सवाल- आने वाले समय में आपका प्लान।

कल्लन- पलान, वलान क्या… इलेक्शन लड़ना है। तुम बताओ लड़ लें।

मैं मना कर दूंगा तो क्या नहीं लड़ोगे।

कल्लन- लड़ेंगे तो जरूर, तुमसे केवल पूछ रहे हैं। पैसे की चिंता नहीं है।

सवाल- काहे का इलेक्शन लड़ोगे। नगर पंचायत का, ग्राम पंचायत का, विधान सभा का या फिर लोकसभा का।

कल्लन- हाथ तो सब में आजमाऊंगा। जिसमें जीत मिल जाए। तुम्हारी भाभी है न, उसकी भी तैयारी करा रहा हूं।

आपने काफी बेहतर प्लान बनाया है।

कल्लन- पलान बनाने में बचपन से दिमाग चलता है हमारा। अगर तेज नहीं होते तो तुमको घर बुलाकर इंटरवयू दे रहे होते। वो भी फ्री में।

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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