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टिहरी के इस गांव से जुड़ी है, सैकड़ों वर्ष पुराने पेड़ और मीलों लंबी नागिन की कहानी

पेड़ पर बैठने वाला कौआ नागिन को बता देता था कौन आ रहा है उसकी तरफ

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

टिहरी गढ़वाल जिला का नागणी इलाका चंबा ब्लाक का हिस्सा है। इस क्षेत्र का नाम नागणी क्यों पड़ा, इस पर एक किस्सा सुनाया जाता है। इस दंतकथा के सही होने की पुष्टि के लिए वहां एक गुफा है, जिसे नागिन की गुफा कहा जाता है। इसके पास ही कुछ हिस्सा बंजर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि नागिन के विष के प्रभाव से यहां पर वनस्पति नहीं उगती, जबकि आसपास का इलाका हराभरा है।

नागणी इलाके के बीच होकर बहने वाली हिंवल नदी ने यहां की खेतीबाड़ी को लहलहाया है। नरेंद्रनगर से वाया आगराखाल टिहरी रोड पर बसे नागणी की आर्थिकी में कृषि का बड़ा योगदान है। पर्वत श्रृंख्लाओं की तलहटी में दूर तक खेत दिखते हैं। नागणी देहरादून से वाया ऋषिकेश लगभग 90 किमी. तथा ऋषिकेश से पहले ही वाया नरेंद्रनगर बाईपास, लगभग 80 किमी. है। नागणी से चंबा 11 किमी. और इससे लगभग दस किमी. आगे बढ़कर टिहरी गढ़वाल जिला मुख्यालय पहुंच सकते हैं।

अब हम आपसे साझा करते हैं, वो दंतकथा, जिसके अनुसार इस समृद्ध इलाके का नाम नागणी पड़ा। बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता विजय जड़धारी, जिनको हम बीजों का गांधी भी कहते हैं, ने नागणी के नामकरण की कहानी साझा की। जड़धारी जी हमें नागणी सेरा में अपने खेत दिखाते हैं। उनके खेतों के पास ही है पीपल का एक पेड़, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह कितना पुराना है, इसका अनुमान किसी हो नहीं है। हो सकता है, यह पेड़ पांच सौ साल से भी ज्यादा पुराना हो।

जड़धारी जी बताते हैं, दंतकथा के अनुसार, “यह पेड़ उस विशालकाय नागिन से जुड़ा बताया जाता है, जिसके नाम पर इस क्षेत्र का नामकरण नागणी हुआ। नागिन इतनी विशाल थी, कि उसके फन यहां इस इलाके में और पूंछ वाला हिस्सा दूर चंबा में होता था। नागिन पूरे इलाके का भ्रमण करती थी। वो हिंवल नदी के पास एक पहाड़ पर बनी गुफा में रहती थी। गुफा के ऊपरी हिस्से में उसका फन होता था और निचले हिस्से में पूंछ वाला भाग, ऐसा कहा जाता रहा है।”

“सुना है, पीपल के इस पेड़ पर एक कौआ रहता था, जो किसी भी हलचल या गुफा की तरफ किसी के भी जाने की सूचना बहुत तेज आवाज में कांव-कांव करके देता था। वो नागिन को किसी भी अनहोनी से पहले सतर्क कर देता था,” जड़धारी जी बताते हैं।

उनके अनुसार, “चंबा इलाके में एक भड़ माधो धुमा रहते थे, जो बहुत बहादुर योद्धा थे। वो नागिन वाले इलाके की ओर से होकर कहीं जा रहे थे। नागिन को कौए ने सतर्क कर दिया। नागिन ने समझा कि भड़ उस पर हमला करने आ रहे हैं। उसने उन पर हमला कर दिया। दोनों में युद्ध हुआ और भड़ ने अपनी तलवार से नागिन के दो टुकड़े कर दिए। नागिन की मृत्यु हो गई। युद्ध के दौरान नागिन की फुंकार से भड़ मोधा धुमा पर विष का असर हो गया और वो बेहोश होने लगे। बताते हैं, कई दिन तक वो हिंवल नदी में बैठे रहे, जिससे उन पर विष का असर समाप्त हो गया।”

बच्चों की शिक्षा पर वर्षों से कार्य कर रहे गजेंद्र रमोला का कहना है, दंत कथाएं हमेशा से सुनी और सुनाई जाती रही हैं। इनसे संबंधित साक्ष्य भी बताए जाते रहे हैं, जिनमें- नागणी में मौजूद वर्षों पुराना पेड़ और गुफा हैं। गुफा के पास कुछ हिस्से में वनस्पति नहीं उगना बताया जाता है। यह भी बताया जाता है कि इस गुफा में आज भी दो सौ लोग एक साथ बैठ सकते हैं। हमारे पास इन कथाओं पर विश्वास करने के अलावा और कोई विकल्प भी तो नहीं है। पर, जहां तक नागिन की लंबाई और उसके आकार के बारे में कहा जाता है, उस पर थोड़ा संशय है या फिर कथा के पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ने की वजह से उसमें कुछ बदलाव हो गया होगा। यह हो सकता है कि नागिन इस इलाके से लेकर चंबा तक भ्रमण करती होगी, पर लोगों ने इसकी लंबाई यहां से चंबा तक का अनुमान लगाया होगा।

वहीं, नागणी स्थित राजकीय इंटर कालेज में हिन्दी के प्रवक्ता जगदीश ग्रामीण बताते हैं, हिंवल नदी के दोनों ओर बसा नागणी इलाका कृषि के लिए प्रसिद्ध है। अनाज एवं सब्जियों का उत्पादन इस क्षेत्र को समृद्ध बनाता है। यहां काफी संख्या में स्थानीय लोगों ने कृषि भूमि को नेपाल से आए श्रमिकों को उपलब्ध कराया है। वो खेतों में खूब मेहनत कर रहे हैं। नागणी के नामकरण पर प्रवक्ता जगदीश ग्रामीण बताते हैं, इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में नाग नागिन रहते थे, इसलिए यहां का नाम नागणी पड़ा। विशालकाय नागिन की कहानी उन्होंने भी सुनी है। हालांकि वो गुफा तक नहीं पहुंचे हैं, पर लोग बताते हैं कि गुफा काफी बड़ी है।

हम भी उस गुफा तक नहीं पहुंचे, पर नागणी के नामकरण की कहानी सुनकर गुफा तक जाने की इच्छा बढ़ गई है। कुछ समय बाद, आपको गुफा और आसपास के इलाके से रू-ब-रू कराएंगे।

हमसे संपर्क कर सकते हैं-

यूट्यूब चैनल- डुगडुगी

फेसबुक- राजेश पांडेय

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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