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अफ्रीकी लोककथाः दिन में क्यों नहीं उड़ता चमगादड़

क्या आप जानते हैं कि चमगादड़ रात को ही शिकार पर क्यों निकलते हैं। इसकी भले ही कोई अन्य वजह क्यों न हो, लेकिन इसके पीछे अफ्रीकी कहानी कुछ इस तरह है- झाड़ियों में रहने वाला एक चूहा और चमगादड़ गहरे दोस्त थे। वो खाना भी एक साथ खाते थे, लेकिन चमगादड़ अपने दोस्त चूहे से चिढ़ता था। हालांकि चमगादड़ ने कभी अपनी मंशा जाहिर नहीं होने दी। लेकिन चूहा उसका सम्मान करता था और उसकी बातों को सही मानता था। एक दिन चूहे ने कहा, दोस्त- तुम सूप बहुत अच्छा बनाते हो, क्या बात है। तुम इतना जायकेदार सूप कैसे बना लेते हो। क्या मुझे इसकी रैसिपी बताओगे, मैं अपनी पत्नी को इतना स्वादिष्ट सूप पिलाना चाहूंगा।

चमगादड़ ने अपनी तारीफ सुनी और खुशी से फूले नहीं समाया। उसने कहा, दोस्त- जायकेदार सूप बनाने के लिए मुझे स्वयं को तकलीफ पहुंचानी पड़ती है। मैं उबलते हुए पानी में कूद जाता हूं। मैं स्वयं को उबालता हूं। मेरा मांस स्वादिष्ट है, जिस वजह से सूप जायकेदार बनता है। तुम भी ऐसा करके स्वादिष्ट सूप बना सकते हो। चमगादड़ ने चूहे के सामने सूप बनाने का डेमो किया। पहले से उबला हुआ पानी लाकर चूहे से कहा, देखो इस गर्म पानी में मैं स्वयं को उबालूंगा। यह कहकर चमगादड़ पानी में कूदा और बाहर निकल आया। थोड़ी देर में पहले से ही तैयार सूप उसके सामने पेश कर दिया। चूहे को चमगादड़ की बात पर विश्वास हो गया।

चूहा घर पहुंचा और अपनी पत्नी से कहा, आज मैं ऐसा स्वादिष्ट सूप तैयार करूंगा कि तुम बहुत खुश हो जाओगी। चूहे ने कहा, तुम सूप बनाने के लिए पानी उबालो। चूहिया ने पानी उबलने के लिए रख दिया और रसोई से बाहर आ गई। चूहे ने मौका पाया और उबलते हुए पानी में कूद गया। काफी दर्द होने के बाद भी वह उबलते पानी से बाहर नहीं निकला, क्योंकि चमगादड़ ने उससे कहा था स्वादिष्ट सूप बनाने के लिए स्वयं को तकलीफ पहुंचानी पड़ती है।

पानी में झुलसने से चूहे की मृत्यु हो गई। चूहिया वापस रसोई में पहुंची तो उसने चूहे को मरा हुआ पाया। गुस्से में उसने राजा के सामने गुहार लगाई। राजा ने पूरा किस्सा सुना और चमगादड़ को जेल में डालने के आदेश दे दिए। राजा का हुक्म सुनकर वहां रहने वाले हर किसी जीव ने चमगादड़ की तलाश शुरू कर दी। कहा जाता है कि कैद में जाने के डर से चमगादड़ ने दिन में बाहर निकलना बंद कर दिया। तब से चमगादड़ रात को ही शिकार के लिए निकलता है। – अफ्रीकी लोक कथा (अनुवादित)

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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