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असुरक्षित बच्चों की देखभाल व सुरक्षा में जिलाधिकारियों को अतिरिक्त अधिकार

नई दिल्ली। किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन करने के लिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 {The Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Amendment Bill, 2021}, को 28 जुलाई, 2021 को राज्यसभा में पारित किया गया। सरकार ने इस वर्ष के बजट सत्र में इस बिल को संसद में पेश किया था। लोकसभा में इसे 24 मार्च 2021 को ही पारित कर दिया गया था।

विधेयक पेश करते समय केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जूबिन इरानी ने व्यवस्था में व्याप्त कमियों के आलोक में असुरक्षित बच्चों की देखभाल व सुरक्षा की जिम्मेदारी जिलाधिकारियों को सौंपने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सभी मुद्दों से ऊपर उठकर बच्चों की मूलभूत आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने के लिए संसद की प्रतिबद्धता को दोहराया।

इन संशोधनों में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट सहित जिला मजिस्ट्रेट को जेजे अधिनियम की धारा 61 के तहत गोद लेने के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत करना शामिल है, ताकि मामलों का त्वरित निपटान होना सुनिश्चित किया जा सके और जवाबदेही बढ़ाई जा सके।

अधिनियम के तहत जिलाधिकारियों को इसके सुचारू कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के साथ-साथ संकट की स्थिति में बच्चों के पक्ष में समन्वित प्रयास करने के लिए और अधिक अधिकार दिए गए हैं।

अधिनियम के संशोधित प्रावधानों के अनुसार, किसी भी बाल देखभाल संस्थान को जिला मजिस्ट्रेट की सिफारिशों पर विचार करने के बाद ही पंजीकृत किया जाएगा।

जिला मजिस्ट्रेट स्वतंत्र रूप से जिला बाल संरक्षण इकाइयों, बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्डों, विशेष किशोर पुलिस इकाइयों, बाल देखभाल संस्थानों आदि के कामकाज का मूल्यांकन करेंगे।

सीडब्ल्यूसी (चाइल्ड वेलफेयर कमेटी) सदस्यों की नियुक्ति के लिए पात्रता मानकों को फिर से परिभाषित किया गया है।

सीडब्ल्यूसी सदस्यों की अयोग्यता के मानदंड भी यह सुनिश्चित करने के लिए पेश किए गए हैं कि, केवल आवश्यक योग्यता और सत्यनिष्ठा के साथ गुणवत्तापूर्ण सेवा प्रदान करने में सक्षम व्यक्तियों को ही सीडब्ल्यूसी में नियुक्त किया जाए।

फिलहाल कानून के तहत तीन तरह के अपराधों (हल्के, गंभीर, घृणित) को परिभाषित किया गया है। जिनका बच्चों के मामले में कानून से संबंधी किसी उल्लंघन पर विचार करते समय संदर्भित किया जाता है।

हालांकि यह देखा गया है कि कुछ ऐसे अपराध होते हैं, जो ऊपर बताए गई श्रेणियों में शामिल नहीं हो पाते हैं। यह निर्णय लिया गया है कि जिन अपराधों में अधिकतम सजा 7 वर्ष से अधिक कारावास है, लेकिन कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं की गई है या 7 वर्ष से कम की न्यूनतम सजा प्रदान की गई है, उन्हें इस अधिनियम के तहत गंभीर अपराध माना जाएगा।

अधिनियम के कई प्रावधानों के क्रियान्वन में आने वाली कठिनाइयों को इसमें संबोधित किया गया है। इसके तहत किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के विभिन्न प्रावधानों की व्याख्या में उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए संशोधन किए गए हैं।

साथ ही अधिनियम में शामिल किए गए कुछ प्रावधानों के इस्तेमाल की संभावनाओं को स्पष्ट किया गया है।- PIB

 

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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