कोलकाता। थ्री इडियट्स देखकर आप महसूस कर रहे होंगे कि बच्चों को उनकी नैसर्गिक प्रतिभा और रूचि के अनुसार करिअर चुनने दिया जाए। इस फिल्म में ‘बाबा रणछोड़दास’ (रैंचो) अपने दोस्तों को अजीब सलाह देता है, कुछ वैसी ही बात रियल लाइफ के रैंचो सोनम वांगचुक ने कही है।
उन्होंने कहा माता-पिता को उनके बच्चों को फेल भी होने देना चाहिए। थ्री ईडियट्स फिल्म का नायक रैंचो का किरदार सोनम वांगचुक पर ही आधारित है। कोलकाता में सीआईआई ईस्टर्न रीजन और यंग इंडिन्स के कार्यक्रम में वांगचुक ने ऐसी सलाह दी, जो पैरंट्स को बहुत ही अजीब लगी। उन्होंने कहा, ‘पैरंट्स को अपने बच्चों की असफलता पर भड़कना नहीं चाहिए।’
इंजीनियर से शिक्षा सुधारक बने वांगचुक चाहते हैं कि लोग बच्चों को शिशु की तरह समझें, जो अभी हाथ और पैर के सहारे चलता है और पैरों पर खड़ा होने से पहले लड़खड़ाता है। इसमें आश्चर्य नहीं है कि असफलता ही उनकी सफलताओं की कहानी कहती है। वांगचुक ने 1988 में लद्दाख में शिक्षा के क्षेत्र में एक आंदोलन शुरू किया।
उन्होंने उन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया जिन्हें उन्होंने खराब शिक्षा व्यवस्था की वजह से फेल हुआ माना। लेह से 70 किलोमीटर दूर स्थित गांव में जन्मे वांगचुक ने कहा, ‘मेरी मां ने मुझे मातृभाषा में सिखाया। अगर आप अपनी मातृभाषा को ठीक से समझते हैं तो दूसरी भाषाएं भी आसानी से सीखी जा सकती हैं। इसीलिए मैं दस भाषाएं जानता हूं।’
आजकल वांगचुक हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स के निर्माण में व्यस्त हैं। यह पहाड़ों पर विकास के लिए एक विश्वविद्यालय होगा। उन्होंने कहा, ‘लद्दाख में कक्षा दस में 95 प्रतिशत बच्चे फेल हो जाते थे। मैंने उन्हें असफल नहीं माना। मेरे लिए वे असफल नहीं थे, बल्कि वे उन बच्चों से अच्छे थे, जो इस खराब शिक्षा व्यवस्था में भी केवल पास होकर काम चला रहे थे।’
वांगचुक के इलाके में पिछले दो दशक में फेल होने वाले बच्चों में 25 प्रतिशत की कमी आई है। वांगचुक उन प्रतिभाशाली बच्चों के सपने पूरा करने में जुटे हैं, जिन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल पाता है। वह उनके सपनों को हवा देने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उन्होंने शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में हाल के दिनों में उल्लेखनीय काम किया है।
पिछले 20 वर्षों से वह दूसरों के लिए पूरी तरह समर्पित होकर का काम कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिए एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीएमओएल) नाम का संगठन बनाया है। जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ मिलकर उन्होंने लद्दाख के स्कूलों में पाठ्यक्रम को यहां की स्थानीय भाषा में करने का काम किया।
1994 में उन्होंने स्कूलों से बाहर कर दिए गए कुछ छात्रों को इकट्ठा करके 1,000 युवाओं का संगठन बनाया और उनकी मदद से एक ऐसा स्कूल बनाया, जो छात्र ही चलाते हैं और पूरी तरह सौर ऊर्जा से युक्त है। वांगचुक चाहते हैं कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में बदलाव हो। उनका मानना है कि किताबों से ज्यादा छात्र को प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए।