श्री बदरीनाथ धामः लोक कल्याण के लिए साधना में बैठे हैं श्री हरि
पृथ्वी पर साक्षात भू बैकुंठ के नाम से श्री बदरीनाथ धाम की पहचान है। भारत के चारधामों में एक उत्तर हिमालय में बदरीनाथ धाम को मोक्ष का धाम भी कहा जाता है। इस धाम की विशेषता यह है कि इसे सत युग में मुक्ति प्रदा, त्रेता में योग सिद्धिदा, द्वापर में विशाला ओर कलियुग मे बदरीकाश्रम नाम से पहचान मिली है। शास्त्रों में इसकी प्रमाणिकता के लिए लिखा गया है। बदरीकाश्रम धाम को सभी धामों में प्रमुख धाम, सभी तीर्थों में उत्तम तीर्थ पुराणों में कहा गया है। इसे आठवां भू बैकुंठ भी कहा गया है। क्रांति भट्ट की रिपोर्ट।
शास्त्रों में बदरीनाथ जी के बारे में कहा गया है कि
बहूनि सन्ति तीर्थानि, दिवि भूमौ रसासु च।
बदरी सदृशं तीर्थ, न भूतं न भविष्यति।।
कहां है बदरीनाथ धाम- समुद्र सतह से साढे़ दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बदरीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। गंद मादन पर्वत श्रृंख्ला में नर नारायण के मध्य नारायण पर्वत पर भगवान बदरीविशाल विराजित हैं। इनके चरणों को धोने के लिए अलकनंदा नदी बहती है। भगवान बदरी विशाल अर्थात श्री विष्णु यहां मंदिर में पदमासन्न मुद्रा में हैं।
भगवान का विग्रह- भगवान बदरीविशाल अर्थात श्री हरि की बदरीनाथ में अद्भूत मूर्ति या विग्रह है। प्राय: भगवान विष्णु की मूर्ति क्षीर सागर में शेषनाग पर लेटे हुए अथवा शंखचक्र, पदम लिए खड़े रूप में दिखती है, लेकिन बदरीनाथ में भगवान का अद्भूत विग्रह है यहां भगवान पदमासन्न में बैठे हैं। काले शालीग्राम शीला पर भगवान की स्वंय भू मूर्ति अथवा विग्रह है। जब भगवान का श्रृंगार होता है तो छवि देखने लायक होती है। स्वर्ण सिंहासन होता है। सिर पर सोने के मुकुट भाल पर हीरे का तिलक होता है और दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित रहते हैं। साथ में भगवती लक्ष्मी, उद्वव जी, देवताओं के खजांची कुबेर जी तथा नारद जी का विग्रह होता है। इसे बद्रीश पंचायत भी कहते हैं।
मंदिर के बारे में- मंदिर का मुख्य आकर्षण भगवान का विग्रह तो है ही साथ ही विशाल सिंहद्वार मंदिर का प्रवेश द्वार है जहां पर लकड़ी की नक्काशी है। गढ़वाल के प्रसिद्ध चित्रकार मोला राम ने भी इसे अलंकृत किया है। प्रवेश द्वार को महारानी अहिल्याबाई ने भी विशाल रूप दिया।
कैसे पड़ा बदरी नाम
मान्यता है कि भगवती लक्ष्मी जो उनकी पत्नी हैं, ने भगवान श्री हरि की साधना के समय बैर के पेड़ के रूप में आकर उन्हें छाया प्रदान की, वही बैर जिसे संस्कृत में वैर का नाम दिया गया उसी से इनका नाम बदरीनाथ पड़ा।