जब आप किसी की तारीफ करते हैं तो यह बात सौ फीसदी सही है कि आपने उनके कामकाज और व्यवहार को बहुत नजदीक से देखा है। जिस शख्स के बारे में बात की जा रही है, वो अपने प्रोफेशन के हर टास्क को पूरे जुनून और जोश के साथ पूरा करते हैं। यह वो व्यक्तित्व है, जो हर वक्त ऊर्जा से भरपूर है। यह उत्साह उनमें इसलिए भी है, क्योंकि वो अपने प्रोफेशन में जीते हैं।
यहां बात हो रही है सीनियर फोटो जर्नलिस्ट तुषार राय की, जो कहते हैं कि मुझे तो फोटो की भूख रहती है, इससे मुझे एनर्जी मिलती है। वो चाहते हैं कि उनकी फोटो जर्नलिज्म हर उस व्यक्ति के चेहरे पर खुशी लाए, जो चुनौतियों का सामना करता है, जो समस्याओं से लड़ता है और जो तमाम जिंदगियों में खुशियों के रंग भरना चाहता है और साथ ही, जो संभावनाओं पर बात करता है।
डुगडुगी ने तुषार राय से बात की, उनसे बातचीत के कुछ प्रमुख अंश-
मोबाइल पर कैमरे ने फोटो जर्नलिज्म को हिला दिया है। अखबारों में फोटो जर्नलिस्ट की संख्या घट रही है, पर बड़े अखबारों में फोटो जर्नलिस्ट अपने न्यूज सेंस की बदौलत स्थान बनाए हैं। डिजीटल जर्नलिज्म में फोटो जर्नलिस्ट सबसे आगे हैं। वो यूट्यूब और पोर्टल्स के लिए काम कर रहे हैं। फोटो जर्नलिज्म में बहुत संभावनाएं हैं, पर न्यूज सेंस प्रमुख आवश्यकता है।
जर्नलिज्म के शुरुआती दौर में मेरे पास सोनी का फ्लॉपी वाला कैमरा होता था। बाद में डिजीटल कैमरा आया। 2004 में इसकी कीमत लगभग 35 हजार रुपये थी। मेरे पास यह कैमरा था और इसकी वजह से मुझे एक अखबार में बतौर फोटो जर्नलिस्ट जॉब मिली।
एक फोटो जर्नलिस्ट को न्यूज सेंस वाला होने के साथ ही विषय की समझ और अच्छे व्यवहार वाला होना चाहिए। कवरेज के दौरान आपके आचरण से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। फोटो जर्नलिस्ट को परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेने वाला होना चाहिए। उनके संपर्क मजबूत होने चाहिए।
फोटो जर्नलिज्म आपको बहुत पहचान दिलाती है। जिनके पास कैमरा होता है लोग उनको ही सब कुछ समझते हैं। किसी भी सूचना के लिए सबसे पहले फोन फोटो जर्नलिस्ट के पास ही आता है। आपके संपर्क तभी मजबूत होते हैं, जब आप फील्ड में पूरी ऊर्जा के साथ सक्रिय होते हैं।
एक बार की बात है, जब संपर्कों एवं सूझबूझ से जान बची। बिहार के किसी गांव में गोलीबारी हो रही थी, जिसको कवर कर रहा था। वहां एक तरफ से ग्रामीण और दूसरी तरफ से एक बदमाश गोलियां चला रहा था। मैं भी किसी सुरक्षित जगह पर खड़ा होकर फोटो ले रहा था। अचानक किसी ग्रामीण की मुझ पर नजर पड़ गई। कुछ ही देर में कुछ गांववालों ने मुझे घेर लिया। लेकिन उनमें से कुछ मुझे पहचानते थे। उनकी मदद की वजह से मेरे साथ कोई अनहोनी नहीं हुई।
पर, गांववालों ने कहा, सभी फोटो हटा दो। जब गांववाले मेरी तरफ बढ़ रहे थे, तभी मैंने कैमरे से कार्ड निकालकर छिपा लिया था। मैंने ग्रामीणों से कहा, देखो इस कैमरे में रील नहीं है। उन्होंने कैमरा चेक किया। जब उनको रील नहीं दिखी तो कैमरा वापस कर दिया। मेरे कहने का मतलब है कि कई बार फोटो जर्नलिस्ट के सामने विपरीत परिस्थितियां आ जाती हैं, आपको बड़ी सूझबूझ, अच्छे व्यवहार और धैर्य के साथ सामना करना चाहिए।
फोटो जर्नलिस्ट के लिए रिलेक्स कहां हैं, उनके लिए हर वक्त अलर्ट रहना जरूरी है। उनके साथ तो संघर्ष ही संघर्ष है।
वैसे से तुषार राय के बहुत फोटोग्राफ वायरल हुए हैं, पर वो प्रमुख रूप से तीन फोटोग्राफ का जिक्र करते हैं, जिनमें से एक है- बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सरकारी अस्पताल का फोटो, जिसमें मरीजों के बेड पर श्वान बैठे हैं। यह फोटोग्राफ बहुत चर्चित रहा। सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ। बिहार के प्रमुख नेताओं ने भी इस फोटो को ट्वीट किया।
दूसरे फोटो के बारे में बताते हैं कि यह मुजफ्फरपुर जिले के नारायणपुर अनंत का है, जहां सीमेंट क्लिंकर की वजह से बीमारी फैल रही थी। दैनिक भास्कर ने प्रमुखता से फोटो प्रकाशित किया और व्यापक कवरेज दी।
तीसरी फोटो, लखनऊ की है, जो जागरण आई नेक्स्ट में प्रकाशित हुई थी। यह फोटो एक महिला कर्मचारी की है, जो चुनाव ड्यूटी में तैनात हैं और मतदान कराने के लिए बैलट बॉक्स (Ballot box) लेकर जा रही हैं। इस फोटो को बहुत ख्याति मिली। आज भी ये फोटो सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर देखी जा सकती है। इस फोटो के आधार पर कई आर्टिकल लिखे गए।
कोरोना संक्रमण के समय तुषार राय ने जान को जोखिम में डालकर जर्नलिज्म की। उनके फोटोग्राफ ने अस्पतालों में पीड़ितों की स्थिति को उजागर किया। तुषार कहते हैं कि फील्ड में जाए बिना आप न तो रिपोर्टिंग में सर्वश्रेष्ठ नहीं कर सकते।
यह बात रिपोर्टर और फोटो जर्नलिस्ट दोनों पर लागू होती है। फील्ड में जाना तो पड़ेगा, थोड़ा बहुत रिस्क भी उठाना पड़ता है, क्योंकि यह मजबूरी है, पर कोरोना संक्रमण के दौर में आपको अपना बहुत ख्याल रखना होगा। इसलिए सजग रहें, क्योंकि यह आपके लिए, आपके परिवार के लिए बहुत आवश्यक है।
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