AnalysisBlog LiveFeatured

अखबारों में खबर नहीं लिख पाने वाले भी करते हैं समीक्षा

  • डेस्क पर प्रेशर में कार्य करने की क्षमता बढ़ती है,अधिकतर मौकों पर आत्मविश्वास कम हो जाता है

अभी तक आपके साथ अखबारों में रिपोर्टिंग से किन क्षमताओं में वृद्धि हो सकती है , का जिक्र कर रहा था। अब आपको बताता हूं डेस्क पर काम करने के दौरान आप समय के प्रेशर में कार्य करना सीखते हैं, लेकिन अधिकतर मौकों पर कार्य को लेकर आत्मविश्वास में कमी आती है। मैं यह बात उन्हीं लोगों के संदर्भ में कर रहा हूं, जो मेहनत और पूरी तन्मयता के साथ अपना कार्य करते हैं। परिक्रमा करने वाले तो यहां भी पूरा आनंद उठाते हैं।

आत्मविश्वास कैसे कम होता है और किन मौकों पर और इसमें किनकी भूमिका होती है, पर चर्चा करते हैं। डेस्क के साथ शाम से लेकर देर रात तक खबरों के संपादन, पेज बनवाने और अपनी ड्यूटी से संबंधित कई कार्य पूरे करते हैं। सुबह होते ही उनके कार्यों में रिपोर्टिंग टीम औऱ बड़े अधिकारियों के स्तर पर कमियां निकाली जाती हैं। रिपोर्टर्स को ज्यादातर अपनी खबरों को लेकर खुशी या निराशा होती है, लेकिन जिनका इनसे कोई वास्ता नहीं होता, वो क्यों निराशा व्यक्त करने बैठ जाते हैं।

कई मौकों पर प्रबंधन या सर्कुलेशन से जुड़े लोग यह कहते हैं कि अखबार अच्छा नहीं लग रहा। इनमें से कुछ लोग बिना पढ़े और बिना समझें केवल लंबाई को देखकर अंदाजा लगा लेते हैं कि यह खबर अच्छी है, यह खराब। उनके लिए चार कॉलम की खबर बड़ी है और एक कॉलम की बहुत छोटी, जबकि उनको यह नहीं मालूम कि उनके अखबार ने खबर को उसकी हैसियत के हिसाब से बिल्कुल ठीक लगाया है।

यह ठीक भी है कि अखबार की समीक्षा होनी चाहिए, लेकिन समीक्षा तो उसी को करनी चाहिए, जिसको खबरों, संपादन से लेकर पेज के आउट, फोटो क्रापिंग और प्लेसमेंट का ज्ञान हो। मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हूं, अखबारों में अधिकतर वरिष्ठ लोग, जो पेजों के लेआउट में तमाम कमियां निकालकर उस पर नीले-लाल पेन से निशान लगाते हैं, उनमें से कई को ठीक उन्हीं समयबद्धता और परिस्थितियों में पेज तैयार करने को दिए जाएं तो दावे के साथ कह सकता हूं कि स्वयं तो बहुत दूर की बात किसी से पेज बनवा भी दें, तो मान जाऊंगा।

दूसरे दिन प्रिंटेड न्यूजपेपर में कमियां निकालने में वो भी शामिल होते हैं, जिनके सामने अखबार तैयार हो रहा था। डेस्क के साथी, सभी के पास एक-एक ड्राफ्ट प्रिंट चेक कराने के लिए दौड़ रहे थे। पेज बनाने के बाद ए 3 साइज के प्रिंट निकालकर सीनियर्स, जैसे संपादक, समाचार संपादक, डेस्क इंचार्ज और किसी सीनियर के सामने रखे जाते हैं कि इनमें कोई कमी हो तो बता दो।

संपादक पेज पर केवल हेडिंग या कोई खास पैकेज या खबरों, लेआउट पर नजर डालकर वापस कर देते हैं। इससे डेस्क को तसल्ली हो जाती है कि बॉस ने पेज देख लिया, हालांकि संपादक हर हेडिंग चेक नहीं करते। समाचार संपादक, डेस्क इंचार्ज और अन्य वरिष्ठ पूरी तरह पेज पर नजर डालते हैं।

अब दूसरे दिन प्रकाशित अखबार की समीक्षा करते हुए गलतियां ढूंढने में ज्यादा दिलचस्पी ली जाती है। कोई कहता है हेडिंग सही नहीं लगी। कोई कहता है हेडिंग कंडेन्शड है। फोटो तो फोल्ड पर लगा दी। फोटो सही तरह क्राप नहीं हुई, नैगेटिव स्पेस जा रहा है। मत लगाते यह फोटो, जरूरी थी लगानी। पूरे पेज को छह लेयर में बना दिया। ज्यादा से ज्यादा पांच लेयर में बना देते। खाली पेज था, फ्लायर औऱ बॉटम तो लगाने चाहिए थे। संक्षिप्त के कॉलम में 12 लाइन की खबर लगा दी।

सिंगल तो दिख ही नहीं रहीं इसमें। डीसी (डबल कॉलम) के नीचे डीसी, टीसी (थ्री कॉलम) के नीचे टीसी लगा दी। ये हेडिंग तो फ्लायर का है ही नहीं। सेकेंड लीड कहां है, तीसरी लेयर में लगा दी। हेडिंग में यहां पर बिंदी नहीं लगी, दो मात्रा आनी थीं, एक ही लगाई। लगता है खबर को बिना पढ़े लगा दिया। वाक्य रीपिट हो रहे हैं। खबर समझ में नहीं आ रही। कितनी गलतियां हैं मैटर में। कैच वर्ड सही नहीं है। इसमें वैल्यू एडिशन लगा सकते थे। कैप्सन सही नहीं लगायाा। चार कॉलम की फोटो को दो कॉलम में लगाकर खत्म कर दिया।

इतनी बड़ी खबर में प्वाइंटर एक ही लगाया। फोटो तो सही से लगा दिया होता। यह फोटो तो पेज से बाहर जा रहा है। यह खबर फ्लायर क्यों लगा दी। इस दो कॉलम की खबर को इतनी हाइट क्यों दे दी। पेज देहरादून का है और खबरें ऋषिकेश और विकासनगर की भरी हैं। इस पेज पर क्राइम की खबरें क्यों लगा दीं। मत्था तक चेक कर लिया जाता है। खाली पेज पर एक पैकेज लगाया जा सकता था। यहां तो खबर को विज्ञापन से चिपका दिया। बॉटम की हाइट बहुत कम हो गई।

कई बार तो बड़े अधिकारी पेज को कूड़ा तक करार दे देते हैं। बुरा लगता है डेस्क को, जब दूसरे दिन उनकी मेहनत पर सवाल उठाए जाते हैं। तब ज्यादा दुख होता है, जब स्वयं चार लाइन की खबर सही से नहीं लिख पाने वाले किसी खबर के संपादन की समीक्षा करते हैं। आप मुझसे पूछेंगे कि अखबार में काम करने वाले चार लाइन की खबर कैसे नहीं लिख पाते। यह तो गलत कह रहे हो। मैं आपसे फिर कहूंगा, आपको यह सवाल पूछना चाहिए। मेरे पास आपके सवाल का जवाब है।

आप डेस्क पर उन्हीं लोगों को खबर लिखने में सक्षम पाओगे, जो अपने पेजों के लिए खबरें संपादित करते हैं, कुछ खास रिपोर्ट पर काम करते हैं, फोन पर नोट करके खबरों को लिखते हैं, कुछ रिपोर्ट को ट्रांसलेट करते हैं, अलग-अलग स्टेशनों से आई खबरों को कम्पाइल करते हैं, सपाट खबरों से वैल्यू एडिशन तैयार करते हैं, खबरों से आंकड़ें निकालकर ग्राफिक तैयार कराते हैं।

अखबारों में कुछ लोग तो इस इंतजार में दिखाई देते हैं कि कब कोई उनके लिए खबरें लिखे, उनके लिए खबरों को कम्पाइल करे, उनको पढ़ी पढ़ाई यानी संपादित खबरें चाहिए होती हैं। इनमें से अधिकतर लोग, केवल काम बहुत का शोर मचाएंगे, अपने जूनियर्स पर रौब जमाएंगे। क्या कोई अखबार के दफ्तर में आठ घंटे ड्यूटी देने भर से पत्रकारिता करता है या पत्रकार कहलाता है।

हालांकि किसी पेज में एक साथ इतनी गलतियां नहीं होतीं। कुछ गलतियां टेक्निकल होती हैं, जिनका अंदाजा सामान्य तौर पर पाठक नहीं लगा सकते। हमारा कहना है कि जो भी गलतियां दूसरे दिन पब्लिशड न्यूज पेपर में दिखाई और गिनाईं जाती हैं, उनको ड्राफ्ट प्रिंट में क्यों नहीं ठीक करा लिया जाता। दूसरे दिन क्यों शोर मचाया जाता है।

जब पेजों में प्रतिदिन इतनी खामियां निकालकर प्रिंटेड न्यूज पेपर को नीले और लाल पेन से रंगा जाता है तो डेस्क के कुछ साथी इतने सजग हो जाते हैं कि वो अपने पेजों के ड्राफ्ट को बार-बार चेक कराते हैं। एक ही खबर को बार-बार पढ़ते हैं। एक ही हेडिंग पर बार-बार नजर डालते हैं। चेकलिस्ट पर पूरा ध्यान देते हैं। फिर भी दूसरे दिन खामियां, कभी कभार तो बेमतलब कीं।

अक्सर लेआउट को बार-बार तुड़वाया जाता है। खबरों का प्लेसमेंट बदला जाता है।खासकर, डेस्क इंचार्जों की हालत एडिशन छूटने के बाद ठीक ऐसी होती है, जैसे कई दिन तक बिना सोए तैयारी करके कोई कठिन पेपर देकर थोड़ी सी राहत हासिल की है। दूसरे दिन परिणाम आता है। कई बार परिणाम को अच्छा बताया जाता है और कई बार खराब… एकदम कूड़ा।

कई बार तो देर रात ड्यूटी करके घर लौटे डेस्क इंचार्ज को सोते हुए उठा दिया जाता है, केवल यह बताने के लिए कि वो खबर नहीं लगाई क्या। उस खबर को तो तुमने किल कर दिया। विज्ञापन वाली खबर भी नहीं लगाई। फोटो का कैप्शन गलत लगा दिया। जो फोटो बताई थी, वो लगाई ही नहीं। हेडिंग में गड़बड़ है। ये तो कुछ सामान्य से उदाहरण हैं…जो डेस्क इंचार्ज को गिनाए जाते हैं, अभी तो समीक्षा होना बाकी है।

इंचार्ज की नींद उड़ाकर तमाम गलतियां बताने वाले अधिकतर शख्स वो ही होते हैं, जो पेज का ड्राफ्ट चेक करते हैं या फिर देख लो भाई… ठीक है.. कहकर पेज चेक करने से पीछा छुड़ाते हैं। अगर संपादक की मेहरबानी है, तो डेस्क वाले भरी मीटिंग में थोड़ा बहुत सुनकर ही राहत महसूस कर लेते हैं, नहीं तो जमकर क्लास लेने के साथ स्पष्टीकरण अलग से मांगा जाता है। यह तो रोज का काम है.,. इसलिए कई लोग ड्यूटी का हिस्सा मानकर दूसरे दिन के अखबार की तैयारी में जुट जाते हैं।

ऐसे में होता क्या है.. मेहनत करके अपना बेस्ट देने के बाद भी गलतियां गिनाए जाने से आत्मविश्वास कम हो जाता है। इससे व्यक्तित्व पर असर पड़ता है। मेरे साथ भी ऐसा हुआ… मैंने जो महसूस किया था, आपसे जिक्र कर दिया। यह भी हो सकता है कि मैं ही गलतियां करता था,औरों से गलतियां नहीं होती होंगी। अच्छा, कल फिर मिलेंगे…और भी बहुत सारी जानकारियां हैं।

ई बुक के लिए इस विज्ञापन पर क्लिक करें

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker