एक दिन पहाड़ का….
- जितेंद्र अंथवाल
- लेखक वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड के विभिन्न मुद्दों के जानकार हैं
विगत रोज लच्छीवाला जाने का अवसर मिला। लच्छीवाला यूं तो पिकनिक स्पॉट के तौर पर पिछले वर्षों में एकाध बार जाना हुआ, मगर इस बार यहां जाने का मकसद पहाड़ को-उसकी संस्कृति-उसके समाज को, सहेजी गयी धरोहरों के जरिए जानने-समझने की कोशिश थी। यह भी इत्तेफाक रहा कि लच्छीवाला के बाद रास्ते में इसी तरह के दो और अवसर मिले।
दरअसल, लच्छीवाला पिकनिक स्पॉट को पिछले अगस्त में ‘लच्छीवाला नेचर पार्क’ के तौर पर विकसित किया गया है। आमतौर पर वन विभाग के जो नेचर पार्क होते हैं, लच्छीवाला उससे कुछ अलग है। यहां ‘धरोहर’ नाम से एक संग्रहालय बनाया गया है, जो इसका खास आकर्षण है। इस संग्रहालय में उत्तराखंड की संस्कृति-समाज, यहां के लोकजीवन से जुड़ी तकरीबन हर प्रमुख चीजों को संग्रहित किया गया है। इनमें लुप्तप्राय बर्तन, लोकवाद्य, कृषि उपकरण, मुखौटे, कलाकृतियां, ऐतिहासिक अवसरों के चित्र, अखबारी कतरने, परम्परागत वस्त्र-आभूषण, नृत्य, सैकड़ों किस्म के पारंपरिक बीज आदि शामिल हैं।
इसके अलावा, टिहरी के भारतीय संघ में विलय, दलाई लामा के पहले-पहल मसूरी आगमन, पुराने दौर में बद्रीनाथ यात्रा, 50 के दशक में आईएमए की पासिंग आउट परेड, आज़ादी से पूर्व झंडा मेला जैसी घटनाओं की संक्षिप्त डॉक्यूमेंट्री निरन्तर स्क्रीन पर उभरती रहती हैं।
खासबात यह है कि समूचे पहाड़ को भावी पीढ़ी के लिए एक ही छत के नीचे सहेजने का यह काम वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी पीके पात्रो के जुनून और वरिष्ठ पत्रकार राजू गुसाईं के प्रयासों से सम्भव हुआ है। संग्रहालय में पुरानी डॉक्यूमेंट्री से लेकर पहाड़ के कोने-कोने से सामान जुटाने तक राजू ने काफी भगदौड़ की। बच्चों को वन्य जीवन के बारे में अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए भी यहां बहुत कुछ है।
राजू काफी समय से मुझे अपने इस प्रयास के दीदार करवाने ले जाना चाह रहा था। आखिरकार, यह सम्भव हुआ विगत रोज। मैं जाने लगा, तो छोटा बालक श्रीयांश भी साथ हो लिया। राजू ने लोक संस्कृति के मर्मज्ञ गणेश कुगशाल गणि को भी लच्छीवाला ही बुलवा लिया। लच्छीवाला नेचर पार्क के प्रभारी चंडी प्रसाद उनियाल बताते हैं कि 17 अगस्त को पार्क आमजन के लिए खोल गया था। तब से अब तक करीब 70 हजार लोग यहां आ चुके हैं और 50 लाख से ज्यादा की आय हो चुकी है।
बहरहाल, लच्छीवाला से निकले ही थे कि हिमालयन हॉस्पिटल के पीआरओ और पेन इंडिया फाउंडेशन के प्रमुख अनूप रावत का संदेश मिला। उन्होंने फाउंडेशन की ओर से हिंदी के साथ ही लोकभाषा गढ़वाली में ‘बारामासा’ नाम से जारी कैलेंडर की प्रति भेंट करनी थी। इसमें तारीखों का अलावा उत्तराखंड की 12 प्रमुख हस्तियों के गढ़वाली व हिंदी में परिचय भी दिया गया है। लोकभाषा के संरक्षण और प्रसार के लिए प्रकाशित इस गढ़वाली कैलेंडर की प्रति जौलीग्रांट में अनूप से प्राप्त की।
हरिद्वार रोड पर राजेश्वरी नर्सरी के नजदीक स्थित कपिल डोभाल दम्पति का ‘बुढदादी’ रेस्टोरेंट है। यह महज रेस्टोरेंट नहीं, बल्कि पहाड़ के उस परम्परागत ‘लोक स्वाद’ के संरक्षण के प्रयास का केंद्र है, जो हमसे पहले वाली पीढ़ी भी करीब-करीब भूलने के कगार पर है। वापसी में कुछ पल वहां रुककर ‘ढींढका’, ‘बारनाजा’ आदि की संक्षिप्त खरीद की, ताकि हम सब के दादा-दादी के जमाने के विलुप्त होते स्वाद को महसूस किया जा सके।
पीके पात्रो और राजू गुसाईं से लेकर अनूप रावत और डोभाल दंपति तक उन सभी के प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिए हमें भी आगे आना चाहिए, जो पिछली पीढ़ी के पहाड़ को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए सहेज रहे हैं…।