डिजिटल खतरों से बचाने को जॉब्स ने बच्चों को नही दिलाया था आईपैड
वाशिंगटन
किताब के जरिए किया खुलासा
वाशिंगटन एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स ने अपने बच्चों को स्मार्ट फोन का इस्तेमाल नही करने देते थे। साल 2010 में जब स्टीव ने आईपैड लॉन्च किया था, तब उन्होंने इसके एक-डेढ़ घंटे के इस्तेमाल के फायदों के बारे में जानकारी दी थी। लेकिन अपने बच्चों को इससे दूर रखा। क्योंकि वह इनके ‘डिजिटल खतरों’ से वाकिफ थे। यह खुलासा एक नई किताब ‘इररेजिस्टिबल : वाई वी कान्ट स्टॉप चेकिंग, स्प्रॉलिंग, क्लिकिंग एंड वाचिंग’ में किया गया है, जिसे न्यूयार्प यूनिवर्सिटी के स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में मार्केटिंग के सहायक प्राध्यापक एडम अल्टर ने लिखा है। सोशल मीडिया और दूसरे अन्य ऑनलाइन कार्यो के लिए स्मार्टफोन और अन्य उपकरणों के बारे में अल्टर का साफ मानना है कि मानवीय व्यवहार इसका बुरी तरह ‘लती’ हो जाता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इससे न केवल सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित होती है, बल्कि यह व्यव्ति के सामाजिक सरोकारों तथा कार्य क्षमता को भी बुरी तरीके से प्रभावित करता है। उन्होने लिखा है कि मानवीय इतिहास में अब तक इंसान जिन व्यसनों का शिकार होता रहा है, उनमें आज डिजिटल लत के लिए पर्यावरण व परिस्थितियां बेहद अनुकूल हैं। 1960 के दशक में हमारे समक्ष सिगरेट, शराब व मादक पदार्थो के लत लगने की चुनौती थी, जो बेहद खर्चीली व आम तौर पर पहुंच के बाहर थी। उनके अनुसार साल 2010 के दशक में भी लत की ऐसी ही परिस्थितियां फेसबुक, इंस्टाग्राफ, पोर्न साइट्स, ईमेल, ऑनलाइन शॉपिंग के रूप में हमारे समक्ष आईं, जिसकी सूची बहुत लंबी है। इतनी लंबी जितनी आज तक के मानव समाज में कभी देखने को नहीं मिली।
लेखक अल्टर ने एक एप के डेवेलपर से जुटाए आंकड़ों के आधार पर बताया है कि अधिकांश लोगों की नींद इससे काफी हद तक प्रभावित होती है,सोने की वजाय वे स्मार्टफोन पर अपने समय का लगभग एक चौथाई हिस्सा बिताते हैं। यह एक सप्ताह में करीब 100 घंटे या पूरे जीवनकाल के संदर्भ में देखा जाए तो औसतन ’11 साल’ होता है। उन्होंने अपनी पुस्तक में माइप्रोसॉफ्ट कनाडा द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण का भी जिप्र किया, जिसके अनुसार 46 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे स्मार्टफोन के बगैर नहीं रह सकते।