उत्तराखंड में कीवी की बागवानी से लाखों कमाने का मौका, विशेषज्ञ डॉ. कुकसाल से जानिए हर जानकारी
कीवी के पौधे एक लिंगी होते हैं, जिसमें मादा और नर फूल अलग-अलग पौधों पर आते हैं
डॉ. राजेन्द्र कुकसाल
9456590999
लेखक कृषि एवं औद्यानिकी विशेषज्ञ हैं
कीवी स्वादिष्ट और पौष्टिक फल है। तैयार फल तुड़ाई के बाद काफी समय तक सुरक्षित रह सकते हैं। कीवी फलों से जैम,जैली, स्क्वैश व जूस भी बनाया जा सकता है। इस फल को जंगली जानवर कम नुकसान पहुंचाते हैं। कीवी फल की इन्हीं विशेषताओं के कारण राज्य को कीवी प्रदेश बनाने की चर्चाएं हो रही हैं। राज्य के कुछ प्रगतिशील उद्यानपतियों ने इस दिशा में प्रयास भी शुरू किए हैं।
मध्यम पर्वतीय क्षेत्र (1200 से 2000 मीटर तक की ऊंचाई ) जहां ग्रीष्मकालीन तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहींं रहता हो, तेज हवाएं चलती हों तथा पाला नहीं पड़ता हो, कीवी उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं।
जो क्षेत्र सेब के लिए गर्म हैं तथा नींबू प्रजातीय फल लोकाट और लीची के लिए ठंडे होते हैं, वहां कीवी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
अच्छी गुणवत्ता वाले पौधों का नहीं मिल पाना, तकनीकी जानकारी का अभाव तथा उचित विपणन व्यवस्था नहीं होने के कारण कीवी उत्पादन राज्य में व्यवसायिक रूप नहीं ले पा रहा है।
राज्य के अधिकतर प्रगतिशील कृषक कीवी की अच्छी गुणवत्ता वाली पौधों के लिए डॉ. वाई. एस. परमार औद्यानिक एवं वानिकी, विश्व विद्यालय नौणी, सोलन, हिमाचल प्रदेश से हासिल करते हैं।
राज्य में कीवी फल पौध उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। योजनाओं में इनका समुचित उपयोग कर राज्य के उद्यानपतियों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास होने चाहिए।
कहां से और कैसे आया कीवी
कीवी फल (चायनीज गूजबैरी) की उत्पत्ति चीन से है। पिछले कुछ दशकों से ये फल विश्वभर में अत्यन्त लोकप्रिय हो गया है।
न्यूजीलैंड इस फल के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि इस देश ने कीवी फल को व्यावसायिक रूप दिया इसका उत्पादन व निर्यात न्यूजीलैंड में बहुत अधिक है।
कीवी फल भारत में 1960 में सर्वप्रथम बंगलौर में लगाया गया था, लेकिन बंगलौर की जलवायु में पर्याप्त शीतकाल ( चिलिंग ) नहीं मिल पाने के कारण सफलता नहीं मिली।
वर्ष 1963 में राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो (NBPGR) क्षेत्रीय संस्थान के शिमला स्थित केन्द्र फागली में कीवी की सात प्रजातियों के पौधे आयतित कर लगाए गए, जहां पर कीवी के इन पौधों से सफल उत्पादन प्राप्त किया गया।
उत्तराखंड में वर्ष 1984- 85 में भारत इटली फल विकास परियोजना के तहत राजकीय उद्यान मगरा टिहरी गढ़वाल में इटली के वैज्ञानिकों की देखरेख में इटली से आयतित कीवी की विभिन्न प्रजातियों के 100 पौधों का रोपण किया गया, जिनसे कीवी का अच्छा उत्पादन आज भी प्राप्त हो रहा है।
वर्ष 1991-92 मेंं तत्कालीन उद्यान निदेशक डॉ. डीएस राठौर ने राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन केंद्र, फागली शिमला, हिमाचल प्रदेश से कीवी की विभिन्न प्रजातियों के पौधे मंगाकर प्रयोग के लिए, राज्य के विभिन्न उद्यान शोध केंद्रों यथा चौबटिया रानीखेत, चकराता (देहरादून) ,गैना/अंचोली ( पिथौरागढ़) , डुंडा (उत्तरकाशी)आदि स्थानों में लगवाए, जिनसे उत्साहवर्धक कीवी की उपज प्राप्त हुई।
राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो (NBPGR) क्षेत्रीय केंद्र, निगलाट ,भवाली नैनीताल में भी 1991 – 92 से कीवी उत्पादन पर शोधकार्य हो रहे हैं। यह केन्द्र सीमित संख्या में कीवी फल पौधों का उत्पादन भी करता है। इस केन्द्र के सहयोग से भवाली के आसपास के क्षेत्रों में कीवी के कुछ बाग भी विकसित हुए हैं।
राज्य में कीवी बागवानी की सफलता को देखते हुए कई उद्यानपतियों ने बागवानी बोर्ड और उद्यान विभाग की सहायता से कीवी के बाग विकसित किए हैं।
उद्यान पंडित कुन्दन सिंह पंवार ने 1998 में राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड देहरादून का पहला कीवी प्रोजेक्ट, पाव नैनबाग जनपद टिहरी गढ़वाल में लगाया।
नाबार्ड के सहयोग से ग्राम्या ने जनपद बागेश्वर के शामा और उसके आसपास के गांवों के कृषक कीवी का अच्छा उत्पादन कर रहे हैं।
पौष्टिकता से भरपूर
कीवी फल अत्यन्त स्वादिष्ट एवं पौष्टिक है। इस फल में विटामिन सी काफी अधिक मात्रा में होता है तथा इसके अतिरिक्त इस फल में विटामिन बी, फास्फोरस, पोटेशियम व कैल्शियम तत्व भी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। डेंगू बुखार होने पर कीवी खाने की सलाह दी जाती है।
जलवायु
कीवी एक पर्णपाती ( पतझड़ ) पौधा है। तथा इसे लगभग 600 – 800 Rapid cooling hour सुषुप्तावस्था को तोड़ने के लिए चाहिए। राज्य में यह मध्यवर्ती क्षेत्रों में 1200 से 2000 मीटर की उँचाई तक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
कीवी में फूल अप्रैल माह में आते हैं और उस समय पाले का प्रकोप फल बनने में बाधक होता है। अतः जिन क्षेत्रों में पाले की समस्या है, वहां इस फल की बागबानी सफलतापूर्वक नहीं हो सकती। वो क्षेत्र जिनका तापमान गर्मियों में 35 डिग्री से कम रहता है तथा तेज हवाएं चलती हों, लगाने के लिए उपयुक्त हैं। कीवी के लिए सूखे महीनों मई-जून और सितम्बर- अक्टूबर में सिंचाई का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए।
भूमि का चुनाव एवं मृदा परीक्षण
जीवांशयुक्त बलुई दोमट भूमि, जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो, सर्वोत्तम रहती है।
जिस भूमि में कीवी का उद्यान लगाना है, उस भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य कराएं, जिससे मृदा में जैविक कार्बन , पी .एच. मान और चयनित भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके।
अच्छी उपज के लिए मिट्टी में जैविक/जीवांश कार्बन 0.8 तक होना चाहिए, किन्तु अधिकतर स्थानों में यह बामुश्किल 0.25 – 0.35 प्रतिशत ही पाया जाता है।
कार्बन पदार्थ कृषि के लिए बहुत लाभकारी है, क्योंकि यह भूमि को सामान्य बनाए रखता है। यह मिट्टी को ऊसर, बंजर, अम्लीय या क्षारीय होने से बचाता है। जमीन में इसकी मात्रा अधिक होने से मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक ताकत बढ़ जाती है तथा इसकी संरचना भी बेहतर हो जाती है।
यदि भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा कम हो तो जंगल की ऊपरी सतह की मिट्टी ,गोबर/ कम्पोस्ट खाद व जीवामृत का प्रयोग करें।
पी.एच. मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता का एक पैमाना है, यह पौधों की पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है। यदि मिट्टी का पी.एच. मान कम (अम्लीय) है, तो मिट्टी में चूना मिलाएं। यदि मिट्टी का पी.एच. मान अधिक (क्षारीय) है, तो मिट्टी में कैल्शियम सल्फेट,(जिप्सम) का प्रयोग करें।
भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है तथा हानिकारक जीवाणुओ /फंगस में बढ़ोतरी होती है। साथ ही, मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कीवी के लिए 6.5 पीएच मान वाली भूमि उपयुक्त रहती है।
कीवी की किस्में
कीवी फल मे नर और मादा दो प्रकार की किस्में होती हैं। एलीसन, मुतवा एवं तमूरी नर किस्में हैं। एवोट, एलीसन, ब्रूनो, हैवर्ड एवं मोन्टी मुख्य मादा किस्में हैं। इनमें हैवर्ड न्यूजीलैंड की सबसे अधिक उन्नत किस्म है। एलीसन व मोन्टी जिसकी मिठास सबसे अधिक है उपयुक्त पाई गई है।
रेखांकन एवं पौधरोपण
पौध लगाने से पहले खेत में रेखांकन करें। कीवी के पौधे 6 x 4 मीटर यानी लाइन से लाइन की दूरी चार मीटर तथा लाइन में पौध से पौध की दूरी 6 मीटर रखें।
पौधे लगाने के एक माह पहले 1x1x1 मीटर आकार के गड्ढे खोदकर खुला छोड़ देना चाहिए, ताकि सूर्य की तेज गर्मी से कीड़े मकोड़े मर जाएं।
गड्ढा खोदते समय पहले ऊपर की छह इंच तक की मिट्टी खोदकर अलग रख लेते हैं। इस मिट्टी में जीवांश अधिक मात्रा में होता है। गड्ढे भरते समय इस मिट्टी को पूरे गड्ढे की मिट्टी के साथ मिला देते हैं। इसके पश्चात एक भाग अच्छी सड़े गोबर की खाद या कम्पोस्ट, जिसमें ट्रायकोडर्मा मिला हुआ हो, को भी मिट्टी में मिलाकर गड्ढों को जमीन की सतह से लगभग 20 से 25 सेमी ऊंचाई तक भर देना चाहिए, ताकि पौध लगाने से पूर्व गड्ढों की मिट्टी ठीक से बैठकर जमीन की सतह तक आ जाए।
पौधों को शीतकाल में यानी दिसंबर जनवरी या बसन्त के शुरू में लगाया जाता है।
पौधों को भरे हुए गड्ढों के बीच में लगाएं। पौधे के चारों ओर की मिट्टी भलीभांति दबाएं। पौध लगाने पर सिंचाई अवश्य करें।
कीवी के पौधे एक लिंगी होते हैं, जिसमें मादा और नर फूल अलग-अलग पौधों पर आते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि मादा पौधों की एक निश्चित संख्या के बीच में परागण के लिए एक नर पौधा भी लगा हो, इसके लिए 1:6, 1:8 या 1:9 के अनुपात से पौधों को लगाना चाहिए।
नर ओर मादा पौधों की रोपण योजना
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मादा पौधा -O
नर पौधा -X
देखभाल
पोषण – कीवी फल के पौधों की वृद्धि और उत्पादन उर्वरकों की सही मात्रा पर निर्भर करता है।
सिंचाई- सूखे महीनों मई-जून और सितम्बर अक्टूबर में सिंचाई का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए। अगर इस समय सिंचाई नहीं होगी तो पौधों की वृद्धि तथा उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है।
यह भी देखें-
सीधाई और काट छांट
कीवी की लताओं को सीधा रखने की आवश्यकता होती है। लताऔं को सीधा रखने का अभिप्राय पौधों को आधार और आकार प्रदान करना है।
शुरू में पौधों को लकड़ी के डंडों के सहारे ऊपर चलाते हैं ,यदि लताएं डंडे पर लिपटती हैं तो उन्हें छुड़ाकर सीधा करें तथा सुतली से बांधकर ऊपर चढ़ाएं।
पौधों की सीधाई टी-बार ,ट्रेलिस, या परगोला विधि के अनुसार की जाती है।
पहले वर्ष पौधे को लगभग भूमि से 30 सेमी की ऊंचाई से काटा जाता है, तथा बाद में एक ही शाख को ट्रेलिस पर चढ़ा दिया जाता है।
इस मुख्य शाखा में से दो शाखाएं निकाली जाती हैं, जिन पर दो फीट की दूरी पर अनेक शाखाओं को तारों पर फैला देते हैं। इस प्रकार की विधि 4-5 साल तक करनी पड़ती है और उस के बाद पौधे फल देने लगता है।
तारों पर फैली हुई शाखाओं को तीसरी व छठीं आंख तक काटते हैं और इन ही शाखाओं पर जो शाखाएं निकली हैं, उन्ही पर फल लगते हैं।
ज्यादा फल लेने के लिए पौधों की परगोला विधि से सीधाई करनी चाहिए, इससे फल धूप तथा पक्षियों से खराब नहीं होते।
फूल खिलने पर परागण का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, जितना अच्छा परागण होगा, फल में उतने अधिक बीज बनेंगे। अधिक बीज बनेंगे तो फल का आकार भी बड़ा होगा।
कीवी में परागण हवा या मधुमक्खियों द्वारा होता है, आवश्यकता होने पर मैनुअली परागण करना होता है। फूल खिलने पर क्षेत्र विशेष में रासायनिक कीटनाशक दवा का छिड़काव न करें।
फलों की तोड़ाई उपज व विपणन
अच्छी उपज के लिए कीवी के पौधों को 5 वर्ष का समय लगता है, व्यावसायिक उपज में 8-10 वर्ष का समय लग जाता हैं। एक लता से 50-60 किलोग्राम फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
फलों को सही परिपक्व स्थिति पर ही तोड़ना चाहिए, जो अक्टूबर-नवम्बर में आती है।
परिपक्व होने पर कीवी फल के आवरण तथा गूदे के रंग में कोई परिवर्तन नहीं आता है, जिससे फल के परिपक्व होने का अनुमान आसानी से नहीं लग पाता।
कीवी फलों की परिपक्वता फलों के वाह्य आवरण के बाल (रोओं) से किया जा सकता है। परिपक्व फलों के रोए हाथ फेरने पर आसानी से फल से अलग हो जाते हैं।
परिपक्व ठोस रूप में पैक किए गए कीवी के फलों को कमरे के तापमान में खाने योग्य मुलायम अवस्था में आने में लगभग 20 दिन का समय लगता है। इस अवधि में विपणन कार्य को आसानी से किया जा सकता है।
जिस समय कीवी फल तैयार होता है, उन दिनो बाजार में ताजे फलों के अभाव के कारण किसान काफी आर्थिक लाभ उठा सकते हैं।
इसे शीतगृहों में चार महीने तक आसानी से सुरक्षित रखा जा सकता है। फलों को दूर भेजने में भी कोई हानि नही होती, क्योंकि कीवी के फल अधिक टिकाऊ हैं। कमरे के तापमान पर इसे एक माह तक रखा जा सकता है। इन्ही कारणों से बाजार में इसको लम्बे समय तक बेचकर अधिक लाभ कमाया जा सकता है। इसके विपणन के लिए गत्ते के 3 से 5 किलो के डिब्बे प्रयोग में लाने चाहिए।
विदेशी पर्यटकों में अधिक लोकप्रिय होने के कारण दिल्ली व अन्य बड़े शहरों मे इसे आसानी से अच्छे दामों पर बेचा जा सकता है।
उत्तराखंड में कीवी फल उत्पादन का भविष्य दिखाई देता है। जनपद बागेश्वर व कुछ अन्य स्थानों में कीवी उत्पादन के उत्साहवर्धक परिणाम सामने आ रहे हैं।
बागेश्वर जनपद का शामा क्षेत्र भगवान सिंह कोरंगा व अन्य बागवानों के विगत कई वर्षों के प्रयास से कीवी हब के रूप में विकसित हो रहा है।
इस वर्ष (2024-25) में इसकी बिक्री एक करोड़ से पार पहुंच गई है। अब तक 700 कुंतल कीवी निर्यात हो गया है। बागेश्वर जनपद के 200 से अधिक किसान इस कारोबार से जुड़े हैं। राज्य के अन्य जनपदों में अधिकतर बागवान तकनीकी जानकारी के अभाव व स्थानीय बाजार में कीवी फलौ के उचित दाम न मिल पाने तथा उचित विपणन व्यवस्था न होने के कारण आज भी कीवी फल उत्पादन को व्यवसायिक रूप नहीं दे पा रहे हैं।
राज्य सेक्टर के अन्तर्गत उद्यान विभाग ने वर्ष 2022-23 से कीवी मिशन योजना शुरू की है, जिसके अन्तर्गत कृषकों को 80% अनुदान का प्रावधान रखा गया है। दस नाली (0.20 हेक्टेयर) भूमि पर कीवी का बाग लगाने के लिए कुल खर्चा पांच लाख यानी सरकार किसानों को चार लाख अस्सी हज़ार रुपए का अनुदान देगी। शेष एक लाख बीस हजार रुपये कृषक अंश होगा। कीवी प्रदेश बनाने की दिशा में सरकार की सकारात्मक पहल है।
उत्तराखंड में कीवी फल पौध उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। कई कृषक इस दिशा में प्रयास भी कर रहे हैं। योजनाओं में इनका समुचित उपयोग कर राज्य के उद्यानपतियों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास होने चाहिए।
कीवी फल पौध एवं उत्पादन के सम्बन्ध में जानकारी के लिए सम्पर्क कर सकते हैं-
1 राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो क्षेत्रीय केंद्र निगलाट भवाली नैनीताल।
0594222002
0594220020
2. सम्बन्धित जिले के जिला उद्यान अधिकारी।
3. डॉ. दिनेश चौरसिया फार्म मैनेजर, कृषि विज्ञान केन्द्र मटेला अल्मोड़ा।
7351255604
94119 23603
4. भगवान सिंह कोरंगा,शामा बागेश्वर
9756511688
9411315778
5. उद्यान पंडित कुन्दन सिंह पंवार- 9411313306
6. अनूप पटवाल, पौड़ी गढ़वाल
8802072233
7. छोटे साइज के कीवी फलों की बिक्री हेतु बीरवान सिंह रावत से सम्पर्क कर सकते हैं। रावत जी की अपनी प्रोसेसिंग यूनिट है।
9412961331
9816046628
8 राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड देहरादून
राजीव
8958533737
कीवी उत्पादन के लिए प्रोजेक्ट बनाने तथा अनुदान लेने हेतु राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड से भी सम्पर्क कर सकते हैं। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड उद्यान विभाग के सहयोग से 40% तक का अनुदान देता है।
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