अध्ययनः जंगल की आग से प्रभावित हो सकता है सौर ऊर्जा का उत्पादन
एरीज, नैनीताल और यूनान स्थित एनओए के शोधकर्ताओं ने किया अध्ययन
इस स्टडी के अनुसार, पश्चिमी / मध्य हिमालय और पूर्वोत्तर राज्यों के पर्वतीय इलाकों में प्राकृतिक और मानवजनित कारणों से भारत को हर साल बड़े पैमाने पर जंगल की आग का सामना करना पड़ता है। उत्तराखंड राज्य में 2021 में बड़े पैमाने पर जंगल की आग के कारण लगभग 1300 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल गया था।
भारतीय वन सर्वेक्षण 2019 की रिपोर्ट के आधार पर कहा गया है, देशभर में 2004 से 2017 तक कुल 277,758 वन फायर प्वाइंट दर्ज किए गए और 2.56 लाख हेक्टेयर भूमि इन जंगल की आग से प्रभावित हुई।
नवंबर 2020 से जून 2021 तक ओडिशा (51,968), मध्य प्रदेश (47,795), छत्तीसगढ़ (38,106), महाराष्ट्र (34,025), झारखंड (21,713), उत्तराखंड (21,497), आंध्र प्रदेश (19,328),तेलंगाना (18,237), मिजोरम (12,864), असम (10,718), और मणिपुर (10,475) में बड़ी संख्या में जंगल की आग की सूचना मिली थी।
सर्दियों के महीनों (यानी, जनवरी-फरवरी 2021) के दौरान सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र पूर्वोत्तर भारत, मध्य भारत, भारत के पूर्वी तट और मध्य भारतीय हिमालय रहे। हालांकि, मार्च-अप्रैल 2021 के दौरान, सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र देश के उत्तरी भाग थे।
जंगल की आग के प्राकृतिक कारणों में बिजली, सूखे बांस का घर्षण, पेड़ों के तने और लुढ़कते पत्थर हैं। इन स्रोतों के अलावा, अनुकूल वायुमंडलीय परिस्थितियों, जैसे उच्च वायुमंडलीय तापमान और कम आर्द्रता से जंगल में आग लगने की आशंका अधिक होती है। भारत का उत्तरी भाग ज्यादातर बायोमास जलने से प्रभावित है। यह देखा गया है कि अधिकांश खोजे गए स्पॉट हिमालयी क्षेत्र भारत-गंगा के मैदान और देश के मध्य भाग में हैं। देखें – पूरी रिपोर्ट
इंटरनेशनल पीयर-रिव्यूड जर्नल रिमोट सेंसिंग में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है। पता चला है कि अध्ययन अवधि (जनवरी से अप्रैल 2021) के दौरान एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ वैल्यू 1.8 तक थी, जिस दौरान बड़े पैमाने पर जंगल की आग की घटनाओं के कारण एक क्षैतिज सतह पर कुल सौर विकिरण में कमी आई और सूर्य से बिना बिखरे हुए शून्य से 45 फीसदी तक सौर विकिरण प्राप्त हुई।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता करीब 40 गीगावाट(40 GW) है। अध्ययन अवधि जनवरी से अप्रैल 2021 में कुल सौर ऊर्जा उत्पादन 650 किलोवाट-घंटा प्रति वर्ग मीटर पाया गया था। इससे करीब 79.5 मिलियन (7.95 करोड़) रुपये का राजस्व मिला था। शोध के अनुसार, जनवरी और फरवरी की शुरुआत में तथा अप्रैल के अंत में ऊर्जा उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई थी, जिसके लिए कहीं न कहीं जंगलों में लगी आग भी जिम्मेदार थी।
अध्ययन अवधि के दौरान बादलों के कारण ऊर्जा उत्पादन में 116 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर का नुकसान हुआ था, वहीं एयरोसोल की उपस्थिति में यह लगभग 63 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर थी। एयरोसोल की उपस्थिति के कारण 80 लाख रुपये का नुकसान हुआ था, वहीं बादलों की वजह से होने वाला नुकसान करीब 1.4 करोड़ रुपये था।
हाल ही में, भारत जैसे विकासशील देशों में सौर ऊर्जा उत्पादन का व्यापक रूप से उपयोग किया गया है, जिनके पास विभिन्न स्रोतों से पर्याप्त सौर संसाधन हैं। हालांकि, बादल, एरोसोल और प्रदूषण जैसे कई कारक सौर किरणित ऊर्जा मान को सीमित करते हैं, जिससे फोटोवोल्टिक और केंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्र प्रतिष्ठानों के कार्य-निष्पादन के लिए समस्याएं पैदा होती हैं।
एआरआईईएस के वैज्ञानिक डॉ. उमेश चंद्र दुमका ने अनुसंधान का नेतृत्व किया। इस शोध से क्षेत्र में सौर ऊर्जा उत्पादन पर एरोसोल और बादलों के प्रभाव की व्यापक जांच-पड़ताल मिली। वर्तमान अध्ययन के निष्कर्ष से देश स्तर पर ऊर्जा प्रबंधन और योजना पर जंगल की आग के प्रभाव के बारे में निर्णय लेने वालों के बीच काफी जागरूकता बढ़ेगी। इसके अलावा, यह शोध जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को कम करने की प्रक्रियाओं और नीतियों एवं सतत विकास पर इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों का समर्थन कर सकता है।
जनवरी से अप्रैल 2021 के दौरान उत्पादित सौर ऊर्जा पर एरोसोल, धूल और बादल के प्रभावों का वित्तीय विश्लेषण। प्रभाव को दैनिक औसत और कुल ऊर्जा हानि, वित्तीय नुकसान और सौर ऊर्जा क्षमता के संदर्भ में निर्धारित किया गया था।