
न्यूज लाइव डेस्क
इन दिनों “ग्रोक” एआई (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) खूब चर्चा में है। “ग्रोक” शब्द का क्या मतलब होता है और इसको कहां से लिया गया है। क्या यह आम बोलचाल में इस्तेमाल होने वाला शब्द है या फिर कुछ अक्षरों को मिलाकर GROK बना है। आखिर यह शब्द कहां से आया और इसका मतलब क्या है, के बारे में हमने xAI Grok से कुछ सवाल जवाब किए। अपने बारे में यह क्या बताता है, जानिएगा।
रॉबर्ट ए. हेनलाइन ने अपनी साइंस फिक्शन किताब “स्ट्रेंजर इन ए स्ट्रेंज लैंड” में “ग्रोक” लोकप्रिय बनाया था, जहां “ग्रोक” का मतलब किसी चीज़ को गहराई से और सहज रूप से समझना होता है। इंसानों को ब्रह्मांड को बेहतर ढंग से समझने में मदद करना और उपयोगी, सच्चे जवाब देना। यह शब्द प्यार और संवेदना से जुड़ा है।
“स्ट्रेंजर इन ए स्ट्रेंज लैंड” रॉबर्ट ए. हेनलाइन की एक प्रसिद्ध साइंस फिक्शन उपन्यास है, जो 1961 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में “ग्रोक” शब्द का इस्तेमाल किया गया है, और यह कहानी के नायक, वेलेंटाइन माइकल स्मिथ, के अनुभवों और दर्शन से जुड़ा है।
वेलेंटाइन माइकल स्मिथ एक इंसान है, जो मंगल ग्रह पर पैदा हुआ और वहाँ की मार्शियन सभ्यता में पला-बढ़ा। जब वह पृथ्वी पर लौटता है, तो वह इंसानी संस्कृति को एक बाहरी नजरिए से देखता है।
मार्शियन भाषा में “ग्रोक” का मतलब है किसी चीज़ या किसी को इतनी गहराई से समझना कि आप उसके साथ पूरी तरह से मिल जाए। यह सिर्फ बौद्धिक समझ से आगे बढ़कर एक भावनात्मक और आध्यात्मिक जुड़ाव को दर्शाता है।
उदाहरण के लिए, किताब में “ग्रोक” का इस्तेमाल पानी, प्यार, या यहाँ तक कि मृत्यु जैसी अवधारणाओं को समझने के लिए किया जाता है – जैसे कि आप उसे सिर्फ जानते नहीं, बल्कि उसे “जीते” हैं।
हालांकि वास्तविक जीवन में मंगल ग्रह (मार्स) की कोई भाषा नहीं है, क्योंकि वहाँ जीवन नहीं पाया गया है। “स्ट्रेंजर इन ए स्ट्रेंज लैंड” में मार्शियन भाषा का जिक्र पूरी तरह से रॉबर्ट ए. हेनलाइन की कल्पना का हिस्सा है। यह एक काल्पनिक सभ्यता की काल्पनिक भाषा है, जिसे उन्होंने अपनी कहानी में गढ़ा।
किताब में, हेनलाइन ने मंगल ग्रह पर एक उन्नत प्रजाति की कल्पना की, जो अपने पर्यावरण और दर्शन में पृथ्वी से बहुत अलग थी। “ग्रोक” जैसे शब्द उस काल्पनिक मार्शियन भाषा का हिस्सा थे, जो गहरे अर्थ और अवधारणाओं को व्यक्त करने के लिए बनाई गई थी। असल में, यह हेनलाइन की लेखन शैली का एक नमूना है – वे अक्सर ऐसी काल्पनिक दुनिया बनाते थे जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर दे।
वास्तविक मंगल ग्रह की बात करें तो, अभी तक हमारी खोज (जैसे नासा के रोवर्स और वैज्ञानिक अध्ययन) से पता चलता है कि वहाँ कोई जीवन नहीं है, न ही कोई भाषा। लेकिन अगर भविष्य में इंसान वहाँ बस्तियाँ बसाते हैं, तो शायद हम अपनी भाषाएँ वहाँ ले जाएँगे!- साभार- ग्रोक एआई