FeaturedTalent @ Tak Dhinaa DhinTK DHINAA DHIN

तक धिनाधिनः क्या बनकर चला था, ये क्या हो रहा हूं’

चखुलीज फॉक टेल्स के दीप डोभाल से एक मुलाकात

मैं तो खेतों की मेढ़ों पर दौड़ते हुए स्कूल जाता था। अब खेतों में गेहूं, धान और गन्ना की जगह बड़े बड़े मकान उग गए हैं, वो भी स्थाई रूप से। हालांकि उस समय के एकाध पेड़ खड़े हैं, जो सिर्फ और सिर्फ यही चाहते हैं कि हम इंसान पहले की तरह आज भी स्वच्छ हवा में सांस लेते रहें। यह बात इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि स्वतंत्रता दिवस पर मानवभारती प्रस्तुति तक धिनाधिन की टीम एक ऐसी जगह पर थी, जहां दूर दूर तक हरियाली है। हालांकि यह साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कंक्रीट इस हरियाली को कब लील लेगा।

जब हमने 37 साल के सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट दीप डोभाल से मुलाकात का समय तय किया, तब हमें इतना मालूम था कि दीप चखुलीज फॉक टेल्स के प्रणेता हैं। वो लोक कला, संस्कृति को आगे बढ़ाने के संकल्प को पूरा करने में जुटे हैं। दीप रचनाकार हैं, यह भी हमें मालूम था। आज जब हम उनसे मिले तो पता चला कि संयोग से आज ही के दिन एक साल पहले उन्होंने ए जर्नी विद्आउट मनी की शुरुआत की थी, जो 200 दिन की थी। उन्होंने पूरी यात्रा बिना पैसे के पूरी की थी।

15 अगस्त 2018 से मार्च 2019 तक दीप ने उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों का भ्रमण किया था, वो भी बिना पैसे के। आधी यात्रा पैदल और आधी गाड़ियों में लिफ्ट लेकर पूरी की। उनके पास जीने के लिए जरूरी कुछ सामान था। कई मुसीबतों का सामना किया पर यात्रा को जारी रखा। कहते हैं कि हम खुद को संसाधनहीन नहीं कह सकते, क्योंकि संभावनाओं की कमी नहीं है। पहल की जरूरत है, कल भी हमारा था, आज भी हमारा है और कल भी हमारा होगा।

हमने इस युवा टीम से अठूरवाला क्षेत्र में उनके प्रोडक्शन हाउस में मुलाकात की। पूछने पर दीप बताते हैं कि सिविल इंजीनियरिंग सीखने के लिए पढ़ी है, नौकरी पाने के लिए नहीं। हालांकि उन्होंने कुछ समय बतौर इंजीनियरिंग सलाहकार सेवाएं दीं, लेकिन नौकरी को अलविदा कह दिया है। पहाड़ और यहां की लोक संस्कृति व बच्चों के लिए कुछ करना चाहते हैं, इसलिए उनके लिए चखुलीज फॉक टेल्स की शुरुआत की।

दीप पहाड़ के गांवों में जाकर लोगों को यूकेलेले ( वाद्य यंत्र) पर गीत और किस्से सुनाते हैं। वो उनके साथ पहाड़ के अनुभवों और संभावनाओं पर बात करते हैं। उन्होंने हमें भी यूकेलेले की धुन पर प्रख्यात गायक बॉब डिलन का गीत सुनाया। उनका कहना है कि ज्ञान और विचारों में अविरलता होनी चाहिए, नहीं तो ये किसी काम के नहीं। हमारा उद्देश्य एक दूसरे से सीखना है, विचारों को व्यवहारिकता में लाना है। मैं सीखने की चाह में बच्चों से भी मिलता हूं और युवाओं और बुजुर्गों से भी। हम बच्चों से भी बहुत कुछ सीखते हैं।

पिछले साल 15 अगस्त को पौड़ी जिले के देवीखेत से शुरू घुमक्कड़ी का जिक्र करते हुए बताते हैं कि यात्रा इसी साल मार्च में ऋषिकेश में पूरी हुई। अब नेपाल घुमक्कड़ी की योजना है। यात्रा के समय उनके पास एक टैंट, स्लीपिंग बैग, मोबाइल फ़ोन, चार्जर, दो डेटा केबल, इयरफोन, दो डायरी, दो बैकअप ड्राइव, 2 पेनड्राइव, पावर बैंक, लाइटर, टूथब्रश और यूकेलेले था। यूकेलेले एक तरह का वाद्य यंत्र है, जिसकी मधुर ध्वनि यात्रा के दौरान दीप को सुकून और शांति के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहीं।

उन्होंने रास्ते में कुछ न कुछ काम किया और बदले में खाना मांगा। देवीखेत से कोटद्वार, रामनगर, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, देहरादून के चकराता सहित 11 जिलों का भ्रमण किया। हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर में नहीं जा सके। दाड़ी बहुत बढ़ गई थी। चकराता के पास एक पूर्व सैनिक ने उन पर संदेह जताया और कमरे में बंद कर दियाथा। कहते हैं कि बड़ी मुश्किल से उनको समझा पाया।

यहां अठूरवाला स्थित रिकार्डिंग स्टूडियो में गीतों, किस्सों, कहानियों की रिकार्डिंग की जाती है। कोई बच्चा यदि गीत गाता है, लेकिन धन की कमी की वजह से रिकार्डिंग नहीं करा पा रहा है, तो चखुलीज के रिकार्डिंग रूम में उसका निशुल्क स्वागत है। दीप कहते हैं कि हम उसको गाइड भी करेंगे, क्योंकि हम टैलेंट को आगे बढ़ता देखना चाहते हैं। चखुली की टीम अपने खर्चों के लिए वेब डिजाइनिंग, डिजीटल मार्केटिंग, वीडियो, ऑडियो रिकार्डिंग, ट्रैवलिंग, एडवेंचर टूर पर काम करती है।

टीम में शामिल 29 साल के अनिल तिवारी और उन्हीं के हमउम्र बद्री तिवारी का कहना है कि आने वाले समय में हम पर्वतीय क्षेत्रों में रहकर वहां के बच्चों के लिए कुछ अभिनव करने का प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में बालिका रितिका तिवारी ने दीप डोभाल के निर्देशन में चखुलीज के स्टूडियो में ‘हे दग्ड्या बौडिकी औलु मी, बाटु रै जग्वल्णि.., यूं निभैक हौर सौं खौलु मि, आस रै तू पाल्णि..’ गीत रिकार्ड किया। यह गीत दीप ने लिखा है।

बातचीत में वो अपनी रचना – ‘आखिर ये क्या है ? दे तरजुमा…, ये क्या हो रहा है ? दे तरजुमा.., कहां पहुचना है, कहां खो रहा हूं.., क्या बनकर चला था, ये क्या हो रहा हूं’ ? सुनाते हैं, वो भी स्टूडियो में रिकार्ड की गई। उन्होंने ‘कलम नि बिंगदी हाथ नि समझदा, जु बिचार मन म चा, ज्यु कु ज्युमै ह्यूं जमी जांदू, नि बगुदु उमाल जु मन म चा …’ जैसी कई रचनाओं का सृजन किया है।

तक धिनाधिन की टीम को उन्होंने एग्रीकलचर पर किए जा रहे कार्यों को भी दिखाया। वो बिना मिट्टी के सब्जियों की खेती की हाइड्रोपोनिक फार्मिंग पर काम कर रहे हैं। इसमें पानी में पोषक तत्व फास्फोरस, नाइट्रोजन आदि डालकर बिना मिट्टी फार्मिंग की जाती है। उनकी टीम भवनों में वर्टिकल फार्मिंग पर जोर देती है। भूमि की कमी की स्थिति में सब्जियां उगाने का यह कारगर तरीका है।

हमने भी चखुलीज फॉक टेल्स की टीम को तक धिनाधिन की कहानियां सुनाईं, जिनमें तितली से दोस्ती, इंगलिश की जंगल जर्नी, साहसी नन्हा पौधा और मिट्टी, ब्रांडेड बेबी प्रमुख रहीं। तितली से दोस्ती के माध्यम से बताने की कोशिश की गई कि ज्ञान को साझा किया जाना चाहिए, न कि थोपना।

यह टीम स्कूलों में जाकर बच्चों के बीच कुछ अभिनव और रचनात्मक पहल करना चाहती है। इसमें तक धिनाधिन की ओर से भी सहयोग का वादा किया गया। चखुलीज फॉक टेल्स के स्टूडियो में बच्चों का स्वागत है, कुछ सीखने के लिए, कुछ सिखाने के लिए और कुछ नया करने के लिए। दीप, अनिल और बद्री से मुलाकात के बाद हम लौट आए अपने अगले पड़ाव की तैयारी के लिए। इस मुलाकात को कवरेज किया मानवभारती स्कूल के क्लास 9 के छात्र सार्थक पांडेय ने। फिर मिलेंगे… तब तक के लिए बहुत सारी खुशियों और शुभकामनाओं का तक धिनाधिन 

ई बुक के लिए इस विज्ञापन पर क्लिक करें

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker