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दशकों पुराना ड्रामे वाला गांव, जहां रामलीला के दमदार कलाकार बसते हैं

देहरादून के बड़ासी में पांचवी बार की रामलीला की तैयारियां चल रही हैं

बड़ासी गांव। राजेश पांडेय

दशकों साल पुराना ड्रामे वाला गांव बड़ासी, जहां लगातार पांचवी बार रामलीला होने वाली है। इन दिनो मंचन की तैयारियां चल रही हैं। वैसे तो यहां रामलीला का इतिहास बहुत पुराना है, चार साल पहले एक बार फिर से शुरू हुई रामलीला उस सिलसिले का ही हिस्सा है, जो लगभग 26 साल पहले टूट गया था। उत्तराखंडभर में रामलीला के मंच पर विभिन्न किरदारों को जीवंत करने वाले अमीचंद भारती, जो अब हमारे बीच में नहीं हैं, को बड़ासी में रामलीला मंचन को पुनर्जीवित करने का श्रेय जाता है।

यहां तक कि कोविड संक्रमण के दौर में, जब भीड़ इकट्ठा होने पर रोक लगी थी, तब प्रशासन की अनुमति लेकर मात्र तीन घंटे में संपूर्ण रामलीला को मंचित किया गया। यह अपने आप में एक रिकार्ड रहा है। अमीचंद भारती ने रामलीला में ही नहीं बल्कि थियेटर जगत में भी बहुत सारे पात्रों को जीवंत किया है, पर उनकी रावण की दमदार भूमिका को हमेशा याद किया जाता रहेगा।

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इस साल 2023 में, बड़ासी में श्री आदर्श रामलीला कमेटी की रामलीला मंचन की तैयारियां जोरों पर हैं। 27 सितम्बर से अभिनय का अभ्यास शुरू हो गया है, जो चार अक्तूबर तक चलेगा। वैसे तो यहां, सभी मंझे हुए कलाकार हैं, इनमें से कई लोगों का अनुभव चार दशक तक का है।

स्वर्गीय अमीचंद भारती के पुत्र उपदेश भारती और गणेश भारती, जो भगवान श्रीराम और श्री लक्ष्मण की भूमिका अदा करते हैं, के साथ अन्य सभी कलाकार बड़ी संजीदगी से अभिनय का अभ्यास कर रहे हैं। संरक्षक दयाल सिंह सोलंकी और पूरण सिंह की देखरेख और चरण सिंह के निर्देशन में यह अभ्यास चल रहा है।

बड़ासी गांव में रामलीला मंचन की तैयारियों में शामिल बाल कलाकार। फोटो- सार्थक पांडेय

शुक्रवार रात के आठ बजे हैं। सोशल एक्टीविस्ट मोहित उनियाल के साथ हम बड़ासी गांव पहुंचे। मौसम थोड़ा ठंडा था। यहां सामाजिक कार्यकर्ता रेणु चुनारा के आवास पर श्री रामलीला मंचन की तैयारियों के लिए बड़ी संख्या में बच्चे, महिलाएं, युवा और बुजुर्ग मौजूद हैं।

गीत गाते हुए अभिनय करने वाले कलाकारों को गणेश चंद भारती हारमोनियम और चरण सिंह तबले पर संगत दे रहे हैं। यह रिहर्सल भगवान श्री राम दरबार और अमीचंद भारती जी की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्ज्वलित करके उनको साक्षी मानकर की जा रही है।

11 साल की उम्र से ड्रामा कर रहा, घर में डंडे भी खाएः दयाल सिंह सोलंकी

संरक्षक दयाल सिंह सोलंकी, जो कि 76 वर्ष के हैं, बताते हैं, ” मैं 11 साल की उम्र से अमीचंद के सानिध्य में ड्रामों में भाग ले रहा हूं। रामलीला तो बहुत बाद में शुरू हुई। हम रायपुर, बड़ासी, रानीपोखरी और भी न जाने कितनी जगहों पर ड्रामा करने जाते थे। मैं रात रातभर घर से बाहर रहता था। कई बार तो देर रात को घर पहुंचने पर डंडों से पिटाई भी खाई है, पर मैंने ड्रामा और रामलीला मंचन का साथ नहीं छोड़ा।”

बताते हैं, “जब कभी हमें डायलॉग याद नहीं होते थे, तब अमीचंद जी हंसते हुए कहते थे, यह तो बूढ़ा तोता हो गया।” बदलते वक्त पर अपनी बात रखते हुए कहते हैं, “पहले हम विशुद्ध रूप से रामायण की चौपाइयों को ही रामलीला मंचन के समय गाते थे। बड़ासी की रामलीला में अब भी इस बात का ख्याल रखा जाता है, पर कई जगह फिल्मी धुनों को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है।”

बड़ासी गांव में रामलीला मंचन की तैयारियों के दौरान संरक्षक दयाल सिंह सोलंकी और रावण का अभिनय कर रहे दिनेश। फोटो- मोहित उनियाल

लोगों को कैसे बुलाते हैं रामलीला देखने के लिए, के जवाब में उनका कहना है, “हमारे अभिनय में ताकत है, हमारे प्रस्तुतिकरण में शक्ति है, इसलिए तो यहां लोग सर्दी के मौसम में बिस्तर छोड़कर रामलीला देखने जुटे रहते हैं। इतनी भीड़ होती है कि जगह कम पड़ जाती है। कई बार तो टैंट बढ़ाना पड़ गया।”

“ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि हमारे जितने भी कलाकार हैं, सब छंटे हुए हैं। ये छंटे हुए कलाकार बच्चों को सिखाते हैं। जब कोई होनहार सिखाएगा तो सीखने वाला भी होनहार ही होगा।”

रावण का किरदार करने वालों को भी भरपूर सम्मानः दिनेश चंद

दिनेश चंद आठ साल से रावण की भूमिका अदा कर रहे हैं। सरकारी सेवा प्रदान कर रहे दिनेश चंद लगभग 20 किमी. चलकर बालावाला से बड़ासी नियमित रूप से रात आठ बजे पहुंचकर अपने किरदार को जीने की रिहर्सल कर रहे हैं। बेहद शांत एवं सौम्य स्वभाव के दिनेश चंद, जब रावण की रिहर्सल कर रहे थे, तब उनकी ऊर्जा देखने लायक थी। एक डायलॉग सुनाने के आग्रह पर ठीक उसी अंदाज में… “मैं ही ब्रह्मा, मैं ही विष्णु, मैं ही शंकर कहलाया हूं…” सुनाते हैं।

हमने पूछा, “समाज में रावण की छवि अच्छी नहीं है, क्या प्रतिक्रिया मिलती है दर्शकों से, हंसते हुए कहते हैं, नहीं ऐसा नहीं है। रावण अच्छा था, वो विद्वान था। कुछ लोग मेरे किरदार को बुरा समझते हैं और कुछ लोग अच्छा मानते है। बात अभिनय के प्रस्तुतिकरण की है।”

देहरादून के बड़ासी गांव में श्रीरामलीला की तैयारियां करते रावण का किरदार निभाने वाले दिनेश। आप लगभग 20 किमी. दूर बालावाला से रिहर्सल करने पहुंचते हैं। फोटो- राजेश पांडेय

संरक्षक दयाल सिंह कहते हैं, “ऐसा नही है कि रावण का किरदार करने वालों को लोग अच्छा नहीं मानते। आप हमारे गुरु अमीचंद भारती जी का उदाहरण ले लीजिए, उन्होंने रावण का किरदार वर्षों जीया, पर उनका सम्मान करने वालों की कमी नहीं है। उनको रावण की भूमिका निभाने, ऊर्जा और जोश से भरपूर डायलॉग सुनाने के लिए जाना जाता है और जाना जाता रहेगा।”

मैंने उनसे अपने बचपन का जिक्र करते हुए कहा, “हम बच्चे रावण की आवाज को सुनने के लिए रामलीला देखने जाते थे। वहां बैठने के लिए घर से बोरी लेकर जाते थे। रामलीला देखते हुए मूंगफली का स्वाद चखते थे। बहुत शानदार थे वो दिन।”

दिनेश एक वाकया साझा करते हैं, “जब रायपुर की रामलीला में रावण का किरदार कर रहे थे। मंच पर प्रवेश करते समय फिसलकर गिर गए, उनकी कलाई में फ्रैक्चर आ गया। बताते हैं, किसी तरह दर्द में, उन्होंने उस दिन अभिनय किया।”

रामलीला की प्राचीन विधाएं सीखी हैं अमीचंद जी से

उपदेश चंद भारती, श्रीराम लीला में भगवान श्रीराम का अभिनय करते हैं। उपदेश हमें, देहरादून में जब कभी रामलीला मंचन शुरू हुआ था, तब प्रस्तुत की जाने वाली चौपाई सुनाते हैं। वो बताते हैं, “इसको खड़ी चौपाई कहा जाता है। हम बड़ासी की रामलीला में इस चौपाई को संगीतबद्ध गाते हैं। जब हम छोटे थे, तब निर्देशक चरण सिंह जी से इस चौपाई को जाना था।”

बड़ासी गांव के रामलीला मंचन में उपदेश चंद भारती भगवान श्री राम का अभिनय करते हैं। फोटो- मोहित उनियाल

कहते हैं, “पिता अमीचंद भारती जी ने हमें चौपाइयों को स्वरबद्ध करना सिखाया है। उनके सानिध्य में हमें रामलीला से जुड़ी गहन बातों को जानने का मौका मिला। हमारे लिए यह गर्व की बात है, आज भी कोई दर्शक हमें रामलीला से जुड़ी किसी प्राचीन विधा या चौपाई के बारे में फरमाइश करता है तो हमारे जेहन में वो बात आ जाती है।”

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16 साल का था, तब माता सीता का रोल किया थाः सोहन लाल

जब हम रिहर्सल स्थल पर पहुंचे, उस समय भगवान श्रीराम को राज्याभिषेक की मुनादी की जा रही थी। मंथरा की भूमिका का अभ्यास कर रहे सोहन लाल और मुनादी करने वाले व्यक्ति के बीच संवाद चल रहा था। इसके बाद कैकेयी की भूमिका निभा रहे सर्वेश और मंथरा की भूमिका में सोहन लाल के बीच गहन वार्तालाप होता है। दोनों पात्र अपने किरदारों में खो गए थे। अभिनय के दौरान सर्वेश धिक्कारते हुए सोहन लाल को धक्का देते हैं, सोहन जमीन पर गिर जाते हैं।

बड़ासी गांव में रामलीला मंचन की तैयारी करते सोहन लाल। सोहन लाल मंथरा की भूमिका निभाएंगे। फोटो- मोहित उनियाल

अमीचंद भारती जी के छोटे भाई करीब 52 साल के सोहन लाल कहते हैं, “मैं 16 साल का था, जब बड़े भाई अमीचंद जी ने मुझे माता सीता की भूमिका के लिए तैयार किया था।  हम जो भी भूमिका मंचित करते हैं, वो प्रभु श्रीराम को साक्षी मानकर करते हैं। हमारी ऊर्जा का स्रोत तो वो ही हैं।”

बड़ासी के कलाकार हर जगह छाए हैंः सर्वेश

कैकेयी का किरदार निभाने वाले सर्वेश ने श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण जी, भरत जी की भूमिका निभाई। कहते हैं, “हमारा समाज, परिवेश, सकारात्मक माहौल हमें कुछ अच्छा करने लिए प्रेरित करते हैं। हमारे गांव बड़ासी में रामलीला मंचन की परंपरा ने हमें सकारात्मक ऊर्जा दी है।”

बड़ासी गांव के रामलीला मंचन में कैकेयी का किरदार निभाने वाले सर्वेश ने श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण जी, भरत जी की भूमिका भी निभाई है। फोटो- मोहित उनियाल

“हम चाहते हैं, कुछ ऐसा करें कि अमीचंद भारती जी के बोए वटवृक्ष के साए में आगे बढ़ते रहें। हमारे भीतर उनकी प्रेरणा का प्रभाव ही है कि हम रामलीला मंचन से कभी दूर जा ही नहीं सकते। कहीं भी रामलीला हो, चाहे हरिद्वार में ही क्यों न, हमारे गांव बड़ासी से कलाकार वहां अभिनय करने जरूर पहुंचते हैं।”

अभिनय की पाठशाला लगाते हैं गणेश भारती

गणेश भारती गांव में बच्चों की अभिनय की पाठशाला लगाते हैं। उनका कहना है,  “हमारे प्रयास है कि यह कला भावी पीढ़ियों के माध्यम से आगे बढ़ती रहे। बच्चों को श्रीराम लीला मंचन के लिए प्रशिक्षण देते हैं। सबसे पहले उनको माता सीता की सखियों की भूमिका के लिए प्रशिक्षित करते हैं। हमने भी दस वर्ष की आयु से पिता जी सखियों का अभिनय करना सीखा। जैसे-जैसे अभिनय का अनुभव होता जाता है, आप अन्य किरदारों की भूमिका में आते जाते हैं।”

बड़ासी गांव के रामलीला मंचन में गणेश चंद भारती भगवान श्री लक्ष्मण का अभिनय करते हैं। फोटो- मोहित उनियाल

गणेश हारमोनियम और तबले की जुगलबंदी पर श्रीराम लीला का एक प्रसंग सुनाते हैं, जब वनवास के दौरान मां सीता को प्यास लगती है और उनको कहीं जल नहीं मिलता। इस गीत ने सभी को भावुक कर दिया। गणेश भारती गीतों को वाद्ययंत्रों की धुनों पर सजाने के लिए जाना जाते हैं। आपका यूट्यूब चैनल संगीत भारती है।

टीम से मिलती है ऊर्जाः चरण सिंह

श्री रामलीला मंचन के निर्देशक, अभिनेता और संगीतकार चरण सिंह बताते हैं, “1978 या 79 में मैंने मां सीता की भूमिका निभाई थी। बताते हैं, उनको अपनी टीम से ऊर्जा मिलती है।”

बड़ासी गांव में रामलीला मंचन की तैयारियां कराने के दौरान तबला वादन करते निर्देशक चरण सिंह। फोटो- मोहित उनियाल

तबले पर शानदार प्रस्तुति देने वाले चरण सिंह ने उस प्रसंग को संगीतबद्ध सुनाया, जब राजा दरशथ अपने उत्तराधिकारी के चयन के बारे में विचार करते हैं।

पर्दे के पीछे महिलाएं संभालतीं हैं व्यवस्थाएंः रेणु चुनारा

रेणु चुनारा के नेतृत्व में महिलाएं रामलीला मंचन के दौरान की व्यवस्थाओं को संभालती हैं। रेणु बताती हैं, “महिलाएं रामलीला मंचन में किरदार नहीं निभातीं, पर्दे के पीछे उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। इनमें स्टोर कीपिंग, दर्शकों को नियंत्रित करना, पंडाल में शांति व्यवस्था बनाए रखना, साजसज्जा, पूजा अर्चना संबंधी सामग्रियों के इंतजाम आदि की जिम्मेदारी शामिल है। स्टोर में कलाकारों की ड्रेस, अभिनय में इस्तेमाल किए जाने वाले अस्त्र-शस्त्रों का रखरखाव, फूल मालाएं, पूजन सामग्री सहित वाद्ययंत्रों आदि को संभालकर रखना होता है। यह कम महत्वपूर्ण कार्य नहीं है। हमें महिला दर्शकों के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं जुटानी होती हैं। ”

बड़ासी गांव में रामलीला मंचन के आयोजन में मातृशक्ति की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। महिलाओं के योगदान पर बात करतीं रेणु चुनारा। फोटो- मोहित उनियाल

रेणु कहती हैं, “मंचन में व्यवस्थाएं संभालना चुनौती वाला काम है। हमारे गांव में दूर दूर से लोग रामलीला देखने आते हैं। हम चाहते हैं, मंचन शांतिपूर्ण रहे। कोई ऐसी बात न हो, जो गांव की छवि को नुकसान पहुंचाए। हम अपने गांव बड़ासी की शानदार छवि को बनाए रखना चाहते हैं, इसलिए सभी व्यवस्थाओं में जी जान से जुटे रहते हैं।”

सकारात्मकता की ओर ले जाती रामलीलाः राहुल मनवाल

बड़ासी गांव के राहुल मनवाल बताते हैं, “रामलीला मंचन युवाओं को सकारात्मकता के लिए प्रेरित करता है। युवा नशे से दूर रहें। वो कोई ऐसा कार्य न करें जो उनकी छवि को खराब करे।”

बड़ासी गांव में रामलीला मंचन की तैयारियों में सहयोग के लिए पहुंचे युवा राहुल मनवाल। फोटो- सार्थक पांडेय

” हम भगवान श्री राम के आदर्शों का जरा भी पालन कर लें, तो उनका जीवन धन्य हो जाएगा। बड़ासी गांव में श्री रामलीला का हरवर्ष बेसब्री से इंतजार रहता है।”

हर रोल को निभाने के लिए हमेशा तैयारः सुरजीत

बड़ासी गांव की रामलीला में बतौर कलाकार 2019 में जुड़े सुरजीत, उस किरदार को जीवंत करने के लिए तैयार रहते हैं, जो उनका सौंपा जाता है।

बड़ासी गांव में रामलीला मंचन से पहले अभिनय की तैयारी के लिए आए सुरजीत, उन सभी भूमिकाओं को निभाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, जो उनको सौंपी जाती हैं। फोटो- सार्थक पांडेय

“हनुमान जी, ऋषि विश्वामित्र, सुमंत, मारीच का अभिनय कर चुके सुरजीत बताते हैं, वो अपनी वरिष्ठ कलाकारों से सीखते हैं। उनका ध्येय प्रभु श्रीराम के आदर्शों को हर व्यक्ति तक पहुंचाना है। श्री रामलीला के एक प्रसंग का जिक्र करते हुए ऋषि विश्वामित्र जी और राजा दशरथ के बीच संवाद को गीत के रूप में स्वरबद्ध सुनाते हैं।”

डोईवाला से लगभग 12 किमी. दूर रात में बड़ासी गांव में श्रीराम लीला के कलाकारों से मिलने और उनकी रिहर्सल को देखने पहुंचे सोशल एक्टीविस्ट मोहित उनियाल

पर्दे के पीछे की कड़ी मेहनत को नजदीक से देखाः मोहित उनियाल

डोईवाला से लगभग 12 किमी. दूर रात में बड़ासी गांव में श्रीराम लीला के कलाकारों से मिलने और उनकी रिहर्सल को देखने के लिए पहुंचे सोशल एक्टीविस्ट मोहित उनियाल का कहना है, “उन्होंने रंगमंच पर आने से पहले पर्दे के पीछे की कड़ी मेहनत और जज्बे को नजदीक से देखा। कहते हैं, श्रीरामलीला मंचन समाज को नई दिशा देने और आदर्श संस्कारों और बेहतर माहौल की स्थापना के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।”

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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