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किशोर को नसीहत देते हुए पूर्व मंत्री सजवाण बोले, षड्यंत्र तो मेरे साथ हुआ

देहरादून। उत्तराखंड कांग्रेस में यहां तो गजब हो गया, नाराज नेता को समझाने और सार्वजनिक मंच पर कुछ भी कहने से पहले गहन विचार करने की नसीहत देने वाले पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण ने सोशल मीडिया पर अपने साथ षड्यंत्र होने की पीड़ा व्यक्त कर दी। और, साथ ही साथ, अपने लिए ऋषिकेश से टिकट की इच्छा भी व्यक्त कर दी।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष को सलाह देते हुए सजवाण कहते हैं, अपने खिलाफ “साजिश” और “षड्यंत्र” जैसे शब्दों का प्रयोग करके आप अपनी राजनीति में कुछ भी हासिल नहीं करेंगे। पर, पूर्व मंत्री सजवाण स्वयं के साथ, षड्यंत्र होने का जिक्र कर देते हैं। उन्होंने पार्टी में आपबीती पर खुलकर चर्चा कर डाली।
कुछ दिन से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय पार्टी नेता हरीश रावत पर उनके साथ षड्यंत्र करने का आरोप लगा रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनके बयान चर्चा में हैं।
अब कांग्रेस की पूर्व सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे शूरवीर सिंह सजवाण भी अपनी पीड़ा सोशल मीडिया पर लेकर पहुंचे हैं। सजवाण सोशल मीडिया पर उपाध्याय का नाम लिखे बिना, उनको सलाह देते हैं।
वो कहते हैं- मित्रों!, हार और जीत राजनीति के दो पहलू है। यह तो वह देश है जहाँ इंदिरा गाँधी जी और अटल बिहारी वाजपई जी जैसे सूरमा भी चुनाव हारे हैं। मैं चाहे चुनाव हारा हूँ, या जीता हूँ ,मैंने जनता का फैसला नतमस्तक होकर स्वीकार किया है, क्योंकि जनता का फैसला सर्वोपरि होता है।
मैंने अपनी गलतियों से सीखा है, उनमें सुधार किया है और आज उसी का फल है, कि मै जहाँ जाता हूँ, लोग मेरे कामों को याद करते है, और अपना आशीर्वाद देते हैं।
पूर्व मंत्री सजवाण सलाह देते हैं, मैं पार्टी के नेताओं से आग्रह करता हूँ कि सार्वजनिक मंच पर कुछ भी कहने से पहले उस पर गहन विचार करें और अपनी हार का ठीकरा दूसरों पर थोपने से पहले यह समझ लें कि सच्चाई किसी से भी छुपी नहीं है।
वो लिखते हैं, अपने खिलाफ “साजिश” और “षड्यंत्र” जैसे शब्दों का प्रयोग करके आप अपनी राजनीति में कुछ भी हासिल नहीं करेंगे, यह सब कहकर आप अपने खुद के लिए निर्णयों की जिम्मेदारी और जवाबदेही से भाग रहे हैं।
सोशल मीडिया पोस्ट पर सजवाण लिखते हैं, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष को यह सब शोभा नहीं देता। प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को अपने लिए एक सुरक्षित सीट चुनने की आजादी होती हैं, कोई उसमे हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते वो इस पद की गरिमा को समझें और सार्वजनिक मंच पर बेतुके बयान देकर अध्यक्ष के पद की गरिमा ना गिराएँ। कांग्रेस परिवार की संस्कृति के अनुरूप वरिष्ठता व श्रेष्ठता का ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
नाम लिए बगैर किशोर उपाध्याय को नसीहत देते हुए पूर्व मंत्री सजवाण अपनी पीड़ा जाहिर करना नहीं भूलते। वो कहते हैं, यह तो सब जानते हैं कि षड्यंत्र तो मेरे साथ हुआ। मैं टिहरी का एक क्षत्र नेता था, 2002 में मेरी पूरी तैयारी टिहरी विधानसभा से थी, कोई दूसरा टिकट मांगने वाला भी नहीं था।
एन वक्त पर मुझे ऋषिकेश भेजा गया, मैंने वो जहर भी पीया और मजबूती से चुनाव लड़ा। मुझे पता था कि ऋषिकेश आरएसएस का गढ़ है, 1985 से यहाँ कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी नहीं जीता था और मेरे जीतने के बाद भी आजतक यहाँ कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी जीत दर्ज नहीं करा पाया है।
मैंने ऐसी मुश्किल परिस्थिति में भी लोगों का दिल जीता और आप सभी के आशीर्वाद से जीत प्राप्त की। अन्याय महसूस करने के बावजूद मैंने कभी भी पार्टी व पार्टी नेतृत्व के बारें में किसी भी सार्वजनिक मंच पर कोई भी टिप्पणी नहीं की, बल्कि जीतने के बाद पूरे प्रदेश व खासकर ऋषिकेश के विकास में कोई कमी नहीं रहने दी। इसी का नतीजा है कि आज मैं ऋषिकेश क्षेत्र में अपने विकास कार्यों के नाम पर गर्व से कांग्रेस पार्टी के लिए वोट माँग रहा हूँ।
सजवाण सलाह देते हैं, घर के मतभेद घर में सुलझाए जाएं तो ही बेहतर है, अपने घर का झगडा पड़ोस में ले जाने पर अपनी ही बदनामी होती है।
नेता अपने निर्णयों की जिम्मेदारी लें और हार का ठीकरा दूसरों पर थोपने से बेहतर है कि आगामी चुनावों में पार्टी की मजबूती पर ध्यान दें। यह वक़्त साथ मिलकर चलने का है, आशा करता हूँ कि आपसी मतभेदों को सुलझाकर हम सभी उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर होंगे।
उनकी इस पोस्ट पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय टिप्पणी करते हैं, सम्भवत: मेरे बड़े भाई 1985 भूल गए, मेरी माँ ने कई बार PM हाउस फोन किया कि “यू छोरा छापर यख लफड़्याड़ लग्यूं, हमारा मेल्यूट मां, मरी जालू, ये कु टिकट कर दी”।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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