देहरादून। अगर हम अपने सेल फोन की बात करें, तो यह भी तो एक रोबोट है, जिसमें हम अपनी सुविधा के अनुसार इस्तेमाल और कंट्रोल करते हैं। कंप्यूटर, प्रिंटर, कार, बाइक और भी न जाने कितने यंत्र तंत्र हैं, जिनको हम रोजाना देखते हैं, इस्तेमाल करते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि ये भी रोबोटों की एक किस्म है। कहने का मतलब यह है कि हम रोबोटिक लाइफ से पूरी तरह जुड़े हैं। साइंस जैसे – जैसे तरक्की करता जाएगा, यह रोबोटिक दुनिया से हमारा नाता गहराता जाएगा। लेकिन बहुत सारे लोग और खासकर बच्चे अभी इस बात से वाकिफ नहीं हैं।
तकनीकी तरक्की के दौर में रोबोट अब जाना पहचाना नाम है। अधिकतर लोग खासकर बच्चे और युवा समझते हैं कि रोबोट अब वो काम कर सकेंगे, जो हम करते आए हैं। मेडिकल हो या एजुकेशन या रियल एस्टेट या फिर हमारे रोजमर्रा के काम, साइंस ने इन सब में रोबोट की एंट्री करा दी। तभी तो रोज सुनने औऱ पढ़ने को मिल जाता है कि उस कंट्री में रोबोट गश्त लगा रहे हैं या ट्रैफिक संभाल रहे हैं।
रोबोट की एक अलग सी दुनिया बसती जा रही है, जो पूरी तरह से अभी तक तो इंसानी कंट्रोल में है और इसका पूरा ताना बाना इलैक्ट्रोनिक्स, इलैक्ट्रिकल, मैकेनिकल और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित है। आम तौर पर रोबोट शब्द सुनते ही एक आकार उभरकर सामने आता है, जो लौह मानव जैसा दिखता है।
हम समझते हैं कि रोबोट यही है और आने वाले समय में हमारी कल्पना के अनुसार यह हर शहर की सड़कों, घरों और गलियों में भी दिख जाएंगे। हालांकि अभी यह कुछ विकसित देशों में देखे जा सकते हैं। अगर हम साइंस के नजरिये से रोबोट के बारे में जानना चाहते हैं तो सबसे पहले हमको रोबोट की परिभाषा पर फोकस करना होगा।
मानवभारती स्कूल में टिंकरिंग लैब के प्रभारी डॉ. गौरवमणि खनाल गुरुवार को बच्चों को बता रहे हैं कि रोबोट वो उपकरण है, जिसको मनुष्य ने प्रोग्राम करके खुद के कंट्रोल में रखा है। यह केवल मशीनभर है। साइंस के अनुसार, एक रोबोट में कुछ कार्य विशेष को करने की क्षमता होनी चाहिए।
यह क्षमता उसमें कैसे फीड की जाए या वो कैसे जाने कि उसको क्या करना है। इसके लिए दो चीजों की जरूरत होती है। एक तो बुद्धि, जो बताए कि क्या करना है। दूसरा तत्व- एक सिस्टम, जो बुद्धि से समन्वय स्थापित करते हुए उसके अनुसार स्वयं को संचालित करे।
माइक्रो इलैक्ट्रोनिक्स में इंग्लैंड की लिवरपूल जोन मोर्स यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री और यूनिवर्सिटी ऑफ रोम तोरवर्गाता से इलैक्ट्रानिक्स में डॉक्टरेट डॉ. खनाल बताते हैं कि अगर हम अपने शरीर का उदाहरण लें, तो हमारी बुद्धि के पास पांच सेंस आर्गन, जो उसको बाहरी दुनिया से जोड़े रखते हैं और बुद्धि इनसे जो भी सूचनाएं मिलती हैं, उसके अनुसार शरीर के अंगों को आदेशित करती है।
इसी तरीके से रोबोट में भी बुद्धि डेवलप करनी पड़ती है, जो उसकी खास प्रोग्रामिंग से होता है। इस रोबोटिक बुद्धि को बाहरी दुनिया से जोड़ने के लिए जो इलेक्ट्रोनिक्स(आर्टीफिशियल) सेंसेस इस्तेमाल किए जाते हैं, जिसको साइंस की भाषा में सेंसर्स कहा जाता है। हर तरह के सेंसर आज मौजूद हैं। चाहें वो गंध के लिए हों या स्वाद या फिर ताप के लिए हों।
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डॉ. खनाल ने सरल संवाद में उनके सवालों से जवाब दिए। एक बच्चे का सवाल था कि अलग-अलग काम करने वाले सेंसर्स को बनाने का तरीका क्या है। क्या ये एक ही तरह के मैटिरियल से बनाए जा सकते हैं।
क्या एक विशेष काम करने वाले सेंसर को किसी दूसरे काम के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इनकी प्रोग्रामिंग कैसे होती है। क्या इन सेंसर्स को मनुष्य के किसी खराब अंग को बदलने में यूज कर सकते हैं। इस कार्यशाला में बच्चों ने अलग-अलग सेंसर को एक सर्किट से जोड़कर रियल टाइम एप्लीकेशन तैयार किए, जिसमें लाइट डिपेंडेंट सेंसर्स को यूज करके एलईडी को संचालित करना सीखा।
इसमें अंधेरा होने पर एलईडी अंधेरा होने पर स्वतः ऑन हो जाती है और उजाला होने पर ऑफ। इस तरीके से इन्फ्रा रेड सेंसर्स को यूज करके डीसी मोटर को कंट्रोल किया। अब अटल टिंकरिंग लैब में आने वाले दिनों में और भी तरीकों के सेंसर्स डेवलप करना और उनको यूज करके नये डिवाइस और एप्लीकेशन बनाने का काम शुरू होगा।