Featuredhealth

क्लीनिकल ट्रायलः कम हो सकता है कैंसर के इलाज में खर्चा

विश्व स्वास्थ्य दिवस सात अप्रैल पर एम्स ऋषिकेश ने दी विशेष जानकारी

विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार कैंसर दुनियाभर में मौत का प्रमुख कारण है। कैंसर के मरीजों की मृत्यु की एक महत्वपूर्ण वजह कारगर व सस्ते उपचार की कमी है। भारत जैसे विकासशील देशों में हृदय के बाद कैंसर रोग बहुत बड़ी समस्या है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि क्लीनिकल ट्रायल भारत सहित अन्य देशों में कैंसर के निदान और उपचार की लागत को कम करने में मदद कर सकता है।

AIIMS Rishikesh के अनुसार, किसी दवा के निर्माण से लेकर क्लीनिकल ट्रायल (Clinical Trial) की पूरी प्रक्रिया में औसतन 10 से 12 साल लगते हैं। बताया गया कि प्री- क्लीनिकल अध्ययन यह तय करने के लिए होता है कि कोई दवा क्लीनिकल ट्रायल के लिए तैयार है या नहीं। इस अवस्था में ट्रायल मनुष्यों में नहीं होता है, इसमें व्यापक पूर्व क्लीनिक अध्ययन शामिल है- जैसे प्रारम्भिक प्रभावकारिता ,विषाक्तता, शरीर के भीतर दवा की गति एवं गतिविधि और सुरक्षा जानकारी। इसके अंतर्गत इन विट्रो (टेस्ट ट्यूब या सेल कल्चर) और इन विवो( पशु जैसे चूहों आदि) पर प्रयोगों में दवा की व्यापक खुराक का परीक्षण किया जाता है।

क्लीनिकल ट्रायल के चरण

चरण 1- मानव में प्रथम बार परीक्षणः क्लीनिकल ट्रायल अध्ययन में स्वस्थ मानव प्रतिभागियों की एक छोटी संख्या को शामिल किया जाता है। इस प्रक्रिया में मुख्यरूप से एक दवा की सुरक्षा, सहनशीलता और दवा की मात्रा का आकलन किया जाता है।

चरण 2- परीक्षण के द्वितीय चरण में प्रतिभागियों के अपेक्षाकृत बड़े समूह पर दवा की सुरक्षा, सहनशीलता दवा की मात्रा के साथ-साथ प्रभावकारिता का आकलन किया जाता है।

चरण 3- परीक्षण के तृतीय चरण में रोगियों की एक बड़ी संख्या में दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता की जांच के साथ-साथ दवा के समग्र लाभ, जोखिम का मूल्यांकन किया जाता है। यह ट्रायल का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इस चरण के सफल होने पर दवा / इलाज आम मरीजों के लिए उपलब्ध हो सकता है। खास बात यह है कि महज 25 से 30 प्रतिशत ट्रायल्स ही प्रथम चरण से तीसरे चरण तक पहुंच पाते हैं।

क्या है क्लीनिकल ट्रायल
अनुसंधान के माध्यम से विकसित नई चिकित्सा पद्धतियों के सामान्य प्रयोग से पूर्व इनके प्रभाव व दुष्प्रभावों का अध्ययन करने के लिए क्लीनिकल ट्रायल किया गया,जो कि शोध क्लीनिकल ट्रायल कहलाता है। क्लीनिकल ट्रायल मानव स्वयंसेवकों पर किए जाने वाले प्रयोग होते हैं। जिनमें दवाओं या नई सर्जिकल कार्यविधियों की मदद से रोगों की रोकथाम करने, उनका पता लगाने या उपचार करने के तरीके शामिल होते हैं।

क्लीनिकल ट्रायल को सरल शब्दों में ऐसे समझिए- 
1. नई दवा का इंसानों पर असर चेक करने का तरीका।
2. अस्पताल की निगरानी में दवाइयों का असर चेक किया जाता है।
3. किसी नई चिकित्सा पद्धति का परीक्षण इंसानों पर किया जाता है।

क्लीनिकल ट्रायल के लिए गाइडलाइंस
1. सबसे पहले अस्पताल को क्लीनिकल एथिकल कमेटी से अनुमति लेनी होती है।
2. कमेटी में चिकित्सा सेवी सहित कुछ अन्य लोग भी शामिल होते हैं।
3. जिस व्यक्ति पर दवा का ट्रायल किया जाना है, वह उस बीमारी से संबंधित मरीज होना चाहिए।
4. जिन पर ट्रायल किया जाता है, उन्हें उस दवा से संबंधित पूरी जानकारी दी जानी आवश्यक है।
5. जिन लोगों पर ट्रायल किया जाना है उन्हें उनकी भाषा में इस संदर्भ में समझाया जाना चाहिए।
6. ट्रायल से पहले चिकित्सक कंपनी के अधिकारी को संबंधित मरीज को उस दशा के बारे में सारी जानकारी देनी होती है।
7. इस काउंसलिंग की पूरी वीडियोग्राफी भी की जाती है।
8. यदि मरीज उसके लिए तैयार होता है, उसी स्थिति में ही उस पर दवा का ट्रायल किया जा सकता है।

क्या कैंसर के किसी उपचार की उत्पत्ति हुई है। यह कुछ प्रकार के कैंसर में सम्भावित इलाज का आधार है। हम मौखिक टैबलेट फॉर्म उपचार सहित दवाओं के साथ वर्षों में दीर्घकालिक कैंसर कंट्रोल की उम्मीद कर सकते हैं, जिसे केवल एक परीक्षण के रूप में शुरू किया गया था।

स्टेज- 4 के कैंसर में जहां कुछ साल पहले कोई उम्मीद नहीं थी, अब हम मरीजों के वर्षों तक जीवित रहने की उम्मीद कर सकते हैं। जो केवल दवाओं के परीक्षण के कारण ही संभव हो पाया है। दवाओं, सर्जरी, रेडियोथेरेपी आदि के अलावा सभी प्रकार के कैंसर का उपचार केवल क्लीनिकल ट्रायल के रूप में शुरू होता है।

विशेषज्ञ चिकित्सकों का मानना है कि कैंसर क्लीनिकल ट्रायल से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने की तत्काल आवश्यकता है। यह कैंसर ग्रसित अवस्था में जीवित रहने में मदद और सुधार के लिए है, महज प्रयोग नहीं है। सभी क्लीनिकल ट्रायल्स को अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय एजेंसियों जैसे एफडीए, ईएमए, सीडीएससीओ आदि की निगरानी में सख्ती से नियंत्रित किया जाता है।
नामांकन के बाद मरीजों को परीक्षण के दौरान कुछ भी गलत होने पर अंतर्राष्ट्रीय मानक के आधार पर नि:शुल्क उपचार तथा बीमा क्षतिपूर्ति कवरेज मिलता है।
भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग के माध्यम से क्लीनिकल ट्रायल नेटवर्क की उत्पत्ति का समर्थन किया गया। ऐसी ही एक डीबीटी प्रायोजित पहल में ऑन्कोलॉजी/ कैंसर परीक्षण नेटवर्क की स्थापना है। इस बायोसिमिलर अनुसंधान को बढ़ावा देने से देश में सस्ती कैंसर देखभाल उपलब्ध होगी। यह देश में महंगी और इम्युनोथेरेपी दवाओं की लागत में कमी करेगा, जिनकी लागत प्रति माह लाखों रुपये है। इसलिए इन दवाओं को केवल कुछ ही लोग वहन कर पाते हैं।

ऐसे डीबीटी वित्तपोषित कैंसर अनुसंधान नेटवर्क में से एक एनओसीआई भारत में ऑन्कोलॉजी क्लीनिकल ट्रायल का नेटवर्क है, जो देश के छह मेडिकल संस्थानों का कैंसर क्लीनिकल परीक्षण नेटवर्क है, इनमें एम्स ऋषिकेश, जिपमर पुडुचेरी, एसयूएम भुवनेश्वर, सीएमसी लुधियाना ,अमला अस्पताल,केरल और मीनाक्षी मिशन अस्पताल मदुरै शामिल हैं। यह नेटवर्क पूरे भारत में फैला हुआ है, जिसमें राष्ट्रीय महत्व के निजी और सरकारी संस्थान शामिल हैं। यह उत्तराखंड के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

जानकारों का कहना है कि यह नेटवर्क अंतर्राष्ट्रीय मानक कैंसर देखभाल अनुसंधान, बहुकेंद्र परीक्षणों के लिए दरवाजे खोलेगा। इसका नेतृत्व एम्स ऋषिकेश के मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. अमित सहरावत कर रहे हैं। भविष्य में यह नेटवर्क स्थापित मानक के रूप में कार्य करेगा और इसी तरह के कार्य के लिए अन्य लोगों को पहल करने के लिए प्रेरित करेगा। चिकित्सा ऑन्कोलॉजी विभाग एम्स ऋषिकेश ने कैंसर, कैंसर देखभाल, क्लीनिकल ट्रायलों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भविष्य में कई कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button