कांग्रेस में नहीं मिलेगी एंट्री तो क्या नया दल बनाएंगे हरक सिंह?
दबाव की राजनीति से भाजपा को असहज करने वाले हरक सिंह ने 30 सीटों पर बताया था अपना प्रभाव
देहरादून। राजनीतिक दलों और विधानसभा सीटों को बदलने का रिकार्ड बनाने वाले हरक सिंह रावत की राजनीति में अब, पहले से बहुत ज्यादा फर्क आ गया है। वो यह कि भाजपा से कांग्रेस और कांग्रेस से भाजपा में आने – जाने वाले कदावर नेता हरक सिंह को बर्खास्तगी के 24 घंटे बाद भी, कांग्रेस से न तो कोई ऑफर आया और न ही वहां उनकी एंट्री को आसान माना जा रहा है। उनको कांग्रेस में जाने के लिए बात करनी पड़ रही है, जबकि पहले मीडिया में यह समझा या समझाया जा रहा था कि कांग्रेस में उनका इंतजार हो रहा है।
भाजपा से निष्कासित पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने मीडिया से बातचीत में कहा, मैंने आज सुबह कांग्रेस में बात की है, वो जल्द ही अपना निर्णय देंगे। उनके फैसले के आधार पर, मैं अपना निर्णय लूंगा। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बयान पर अपनी बात रखते हुए कहा, वो मेरे बड़े भाई हैं। मैं उनसे सौ बार माफी मांग सकता हूं। मैं उत्तराखंड का विकास चाहता हूं।
I talked to them (Congress) this morning, they will let me know their decision soon & I will make my decisions based on that: Expelled Uttarakhand BJP Minister Harak Singh Rawat pic.twitter.com/kRiCHpIQs2
— ANI (@ANI) January 18, 2022
सवाल यह उठता है कि अगर हरक सिंह को कांग्रेस में एंट्री नहीं मिलती है तो क्या वो अपना दल बनाकर चुनाव लड़ेंगे या फिर निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। क्योंकि रावत पूर्व में राज्य की कई सीटों पर अपने प्रभाव का दावा कर चुके हैं।
आखिर क्या वजह है, जिन हरक सिंह को कुछ माह पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद, यह कहा जा रहा था कि राज्य में चुनाव की कमान उनको मिलने वाली हैं और भाजपा उन पर बड़ा दांव खेलने वाली है, को अचानक बर्खास्त करने की नौबत आ गई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, बर्खास्तगी की वजह बार-बार असहज स्थिति होना बता रहे हैं।
2016 में हरीश रावत की सरकार को संकट में डालकर भाजपा में शामिल होने वाले हरक सिंह रावत अब पुनः घर वापसी के लिए इच्छुक हैं। वो यह भी कहते हैं कि मैं कांग्रेस में ही जाऊंगा और किसी पार्टी में नहीं जाऊंगा और बिना शामिल हुए भी मैं कांग्रेस के लिए काम करूंगा।
कोटद्वार के अलावा किसी और सीट पर चुनाव लड़ने और 30 सीटों पर प्रभाव का दावा करने वाले हरक सिंह रावत को भाजपा ने ठुकरा दिया और कांग्रेस ने फिलहाल उनके लिए दरवाजे बंद कर रखे हैं। यह इस बात के संकेत हैं कि चुनाव के समय में कोई भी दल दबाव की राजनीति से असहज नहीं होना चाहता, भले ही कोई नेता कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो।
एक बात और, हरक सिंह खुद को खबरों में रखना चाहते हैं और मीडिया को टूल बनाकर दबाव की राजनीति करते रहे हैं। कुछ माह पहले की एक खबर से आसानी से इस बात को समझा जा सकता है, हरक सिंह और कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह के एक विमान से दिल्ली जाने की सूचना इतनी तेजी से वायरल हुई कि माना जाने लगा कि यशपाल आर्य के बाद हरक सिंह कांग्रेस में वापसी कर रहे हैं, पर बाद में उतनी ही तेजी से यह खबर फुस्स भी हो गई। हरक सिंह चाहते थे कि उनके कांग्रेस में जाने की खबरें जितना तेजी से फैलेंगी, उतना ही भाजपा पर दबाव बनेगा और टिकटों के बंटवारे में उनका दखल होगा।
उन्होंने तो मीडिया में यह तक कहा था कि उनका प्रभाव राज्य की करीब 30 सीटों पर है। इस बयान से उन्होंने उत्तराखंड की राजनीति में खुद को सबसे कदावर नेता करार देकर भाजपा और कांग्रेस दोनों पर ही दबाव बनाने का प्रयास किया था। मीडिया ने उनके इस दावे को इसलिए पुख्ता मान लिया था, क्योंकि हरक सिंह अलग-अलग सीटों से जीतते रहे हैं।
इसके बाद, अपने आवास में कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह से मुलाकात के वीडियो को वायरल करके एक बार फिर हरीश रावत के उस बयान का जवाब दिया, जिसमें उन्होंने 2016 में उनकी सरकार गिराने वालों को बिना माफी कांग्रेस में एंट्री नहीं होने देने की बात कही थी। कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह के साथ उनकी मित्रता उस समय खबरों में ज्यादा थी, जब हरीश रावत के साथ जुबानी जंग चल रही थी।
हरक सिंह भाजपा में रहते हुए उस डोईवाला सीट पर चुनाव लड़ने की इच्छा जता रहे थे, जिस पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत वर्तमान विधायक हैं। इसी वजह से त्रिवेंद्र सिंह से उनकी जुबानी जंग तेज हो गई थी। हरक सिंह ने अपने कार्यकाल को निराशाजनक बताकर भाजपा सरकार को असहज कर दिया। उनका कहना था, सबसे कम काम वो इस सरकार में कर पाए। वन विभाग में जो भी काम किए, वो केंद्र की मदद से कर पाए। कोटद्वार मेडिकल कालेज के लिए त्रिवेंद्र रावत के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा।
कुछ दिन पहले, मीडिया में उनके इस्तीफे की खबर का तेजी से फैलना और फिर उनकी ओर से रियल टाइम पुष्टि नहीं होने को क्या माना चाहिए था। क्या उस समय हरक सिंह को सोशल मीडिया पर एक लाइन लिखकर, इस तरह की खबरों को आगे बढ़ने से नहीं रोकना चाहिए था। वजह साफ थी कि हरक सिंह रावत चाहते थे कि चुनाव से पहले उनके राजनीतिक फैसलों को लेकर अटकलों वाली खबरें तेजी से फैलें, जिससे सियासी घमासान जैसे हालात पैदा हो जाएं।
इस बार मीडिया में सुर्खियां बनने का जो काम हरक सिंह नहीं कर पाए, भाजपा ने कर दिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उनको अचानक कैबिनेट मंत्री पद से हटा दिया और भाजपा ने उनको पार्टी से निष्कासित कर दिया। उनकी यह खबर मीडिया में सुर्खियां बनी। इससे ज्यादा उनके लिए दो दिन बाद भी कांग्रेस के दरवाजे बंद होने की खबर सुर्खियों में हैं।
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