कोविड महामारी ने प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या और बढ़ा दी
वैज्ञानिक जर्नल Environmental Sciences & Technology (‘पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी’) का अनुमान है कि विश्व स्तर पर, महामारी के दौरान हर महीने 1.29 खरब फ़ेस मास्क और 65 अरब ‘इस्तेमाल करके फेंकने वाले-दस्तानों’ का उपयोग किया जा रहा है। अफ़सोस की बात यह है, इनमें से ज़्यादातर कूड़े में जाकर प्राकृतिक वातावरण प्रदूषित कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र समाचार में प्रकाशित विश्व बैंक की क्षेत्रीय एकीकरण मामलों की निदेशिका सेसली फ्रूमेन, दक्षिण एशियाई सतत विकास के क्षेत्रीय निदेशक जॉन रूमे और पवन पाटिल के ब्लॉग में यह जानकारी दी गई है।
बताया गया कि कोविड-19 ने प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या और बढ़ा दी है, जिसमें एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की बढ़ती मांग और ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन प्रणालियों पर दबाव के साथ-साथ, स्वच्छता की चिन्ताओं और कच्चे प्लास्टिक माल की कम क़ीमतों के कारण, एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक में वृद्धि हुई है।
ब्लाग के अनुसार, प्लास्टिक के अनुमानतः 5.2 खरब टुकड़े पहले से ही महासागर को प्रदूषित कर रहे हैं, और इस मात्रा में प्रत्येक वर्ष, 80 लाख टन की बढ़ोत्तरी होती है। इस समस्या से निपटने के लिये दक्षिण एशियाई देशों ने साथ मिलकर इसका समाधान करने की ठानी है। इसके लिए विश्व बैंक ने समर्थन के लिए हामी भरी है।
कहा गया है कि प्लास्टिक प्रदूषण हर जगह है – हवा, जिसमें हम साँस लेते हैं, एवरेस्ट पर्वत चोटी पर हिमनद बर्फ़ में, पीने के पानी में और उन मछलियों में, जो हमारे भोजन का हिस्सा बनती हैं. इसके पर्यावरण, जैव विविधता, आजीविका और यहाँ तक कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भारी परिणाम होते हैं।
कोविड महामारी से पहले, हिन्द महासागर का औसतन एक वर्ग मील का इलाक़ा, 46 हज़ार से अधिक प्लास्टिक टुकड़ों (2 लाख 69 हज़ार टन) से प्रदूषित था।
अनुमान है कि 5.2 खरब प्लास्टिक के टुकड़े पहले से ही हमारे महासागर को प्रदूषित कर रहे हैं, जिसमें हर साल अतिरिक्त 80 लाख टन और मिल जाते हैं – यानि हर मिनट – प्लास्टिक के कचरे से भरे ट्रक के बराबर।
दक्षिण एशिया की नदियाँ प्लास्टिक प्रदूषण के लिए पहाड़ों से समुद्र तक प्रवाहित करती हैं। इसी कारण दक्षिण एशिया की तीन पर्वतीय अर्थव्यवस्थाएँ और पाँच महासागरीय अर्थव्यवस्थाएँ, इसके निदान के लिए एकजुट हैं।
ब्लाग में दक्षिण एशियाई देशों के लिए इस मुद्दे पर सहयोग करने के पाँच मुख्य कारक बताए गए हैं, जिनके अनुसार-
सबसे पहले, पूरे दक्षिण एशिया में प्लास्टिक प्रदूषण ख़तरनाक स्तर पर पहुँच गया है और अब इसे नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। खुले स्थानों में प्लास्टिक कचरा फेंकने के मामले में दक्षिण एशिया दुनिया में सबसे आगे है। दक्षिण एशिया में 33 करोड़ 40 लाख मीट्रिक टन में से, क़रीब 75 फीसदी अपशिष्ट, खुले स्थानों में फेंक दिया जाता है।
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विश्व बैंक की ‘व्हाट ए वेस्ट 2.0’ रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक दक्षिण एशिया का कुप्रबन्धित कचरा दोगुना हो जाएगा। यह दुनिया के सभी क्षेत्रों की तुलना में, सबसे तेज़ी से अपशिष्ट और प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ने का उदाहरण होगा।
दूसरा, प्लास्टिक प्रदूषण, पूरे एशिया में और विश्वभर में पर्यावरणीय चिन्ता के शीर्ष तीन विषयों में से सबसे ऊपर है। प्लास्टिक, पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधन-आधारित पेट्रोकैमिकल से बना एक आधुनिक आविष्कार है, जो हमारी वायु को प्रदूषित कर रहा है। यह भूमि पर फैलता जा रहा है, शहरी नालों और प्रमुख नदियों में रुकावटें पैदा कर रहा है और समुद्रों में फेंका जा रहा है।
प्लास्टिक प्रदूषण से मानव और महासागर दोनों के स्वास्थ्य को ख़तरा है और इससे राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर प्रति वर्ष 2.5 खरब डॉलर का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यह किसी भी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के लोगों को, समान रूप से प्रभावित करता है, लेकिन ग़रीबों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव अधिक पड़ता है।
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तीसरा, प्लास्टिक प्रदूषण राष्ट्रीय समस्या के साथ-साथ सीमाओं से भी परे की समस्या होने के कारण, पर्वतीय और महासागरीय अर्थव्यवस्थाओं को एक सूत्र में पिरोती है। दक्षिण एशिया के बर्फ़ से ढके सबसे ऊँचे पहाड़ों – एवरेस्ट पर्वत चोटी से लेकर हिन्द महासागर के सबसे गहरे हिस्सों तक, माइक्रोप्लास्टिक कण बहुतायत में पाए जाते हैं।
चौथा,1980 के दशक के शुरू से ही, अच्छे मक़सद से लागू एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक को प्रतिबन्धित करने वाली नीतियाँ विफल रही हैं। इस समस्या के समाधान के लिए क़दम उठाए जा रहे हैं। दक्षिण एशियाई राष्ट्रों के न्यायालय, एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाने में विश्व स्तर पर अग्रणी रहे हैं।
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भारत के राज्य सिक्किम ने, एक वैश्विक पहल के तौर पर, सबसे पहले 1998 में प्रतिबन्ध लगाया, फिर 2002 में बांग्लादेश में, 2005 में भूटान में, 2011 में अफ़गानिस्तान, नेपाल और श्रीलंका में, 2013 में पाकिस्तान और 2016 में मालदीव में, एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाया।
फिर भी इन प्रतिबन्धों के कार्यान्वयन से वांछित परिणाम हासिल नहीं हुए – यानि एकल उपयोग प्लास्टिक के उपयोग में कमी नहीं हुई। बल्कि असल में, यह ख़तरनाक रूप से बढ़ता ही जा रहा है।
पांचवां, सभी आठ दक्षिण एशियाई देशों ने माना कि पर्यावरणीय मक़सद के साथ एक क्षेत्रीय संगठन का गठन पूरे क्षेत्र में सामंजस्य स्थापित कर सकता है।
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दक्षिण एशिया सहकारी पर्यावरण कार्यक्रम (SACEP) – एक क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना 1982 में अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की सदस्यता के साथ की गई थी और यह कोलम्बो में स्थित है।
इस संगठन ने पर्यावरणीय मुद्दों पर सभी सदस्यों को को साथ लेकर एक सक्रिय कार्यक्रम शुरू किया है, जिसमें हाल ही में, इस क्षेत्र के समुद्रों में बहने वाले प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने पर कार्रवाई शामिल है।
पिछले कई वर्षों में, SACEP, ने अपने सदस्य-देशों के साथ सक्रिय रूप से परामर्श करके, विश्व की पहली क्षेत्रीय समुद्री कचरा कार्य योजना (जो सभी महासागरीय दक्षिण एशियाई देशों द्वारा समर्थित है) और एक क्षेत्रीय ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन कार्य योजना (क्षेत्र में पहाड़ और सागर, दोनों वाले देशों के समर्थन द्वारा) तैयार की है।
Keywords- The scientific journal Environmental Sciences & Technology, World Bank’s Regional Integration Affairs Director, UN Samachar, UN News, Plastic Pollution in Ocean, Solid Waste Management System, SACEP, South Asian Association for Regional Cooperation (SAARC), South Asia Co-operative Environment Programme(SACEP), कोविड-19 महामारी से प्लास्टिक प्रदूषण, दक्षिण एशियाई देशों में प्लास्टिक प्रदूषण, सार्क देशों में कौन से देश शामिल हैं, सार्क की फुल फॉर्म क्या है, दक्षिण एशिया सहकारी पर्यावरण कार्यक्रम की स्थापना कब हुई,