भगवान गणेश को मंगलमूर्ति कहा जाता है। इनकी उपासना से सारे विघ्न और बाधाएं दूर हो जाती हैं।
संतान, शिक्षा और भाग्य के लिए भगवान गणेश की उपासना सबसे उत्तम है।गणपति की उपासना से कुंडली के अशुभ योग भी नष्ट हो जाते हैं। प्रथम पूज्य गणेश को खुश करने के लिए विशेष रूप से दूब, फूल, लड्डू और मोदक चढ़ाने का विधान है लेकिन भोलेनाथ के पुत्र की कृपा केवल पत्ते अर्पित करके भी पाई जा सकती है।
हर पत्ते का अलग रंग और अलग खुशबू होती है। इनके रंग और गंध अलग-अलग ग्रहों से जुड़े होते हैं।
यही पत्ते अलग-अलग मंत्रों के साथ श्री गणेश को चढ़ाए जाते हैं।
खास तरीके से गणपति को अलग-अलग पत्ते अर्पित करने से मनवांछित फल मिलता है।
बुधवार या चतुर्थी को श्री गणेश को पत्ते अर्पित करें। सुबह नहाकर गणपति के सामने घी का दीपक जलाएं।
फिर उन्हें मोदक का भोग लगाएं। अपनी मनोकामना के अनुसार मंत्रों के साथ अलग-अलग पत्ते गणपति को अर्पित करें।
एक बार में कम से नौ पत्ते चढ़ाएं, 108 पत्ते भी अर्पित कर सकते हैं। कौन से मंत्र के साथ कौन सा पत्ता अर्पित करें :
उच्च पद प्राप्ति के लिए – ’गणाधीशाय नम:’ कहकर भंगरैया का पत्ता अर्पित करें।
संतान प्राप्ति के लिए – ’उमापुत्राय नम:’ कहकर बेल पत्र चढ़ाएं।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए – ’लम्बोदराय नम:’ कहकर बेर का पत्ता अर्पित करें।
कार्य की बाधा दूर करने के लिए – ’वक्रतुण्डाय नम:’ कहकर सेम का पत्ता अर्पित करें।
मान-सम्मान, यश की प्राप्ति के लिए – ’चतुर्होत्रे नम:’ कहकर तेजपत्ता चढ़ाएं।
नौकरी के लिए – ’विकटाय नम:’ कहकर कनेर का पत्ता चढ़ाएं।
व्यवसाय में लाभ के लिए – ’सिद्धिविनायकाय नम:’ कहकर केतकी का पत्ता अर्पित करें।
आर्थिक लाभ के लिए – ’विनायकाय नम:’ कहकर आक का पत्ता चढ़ाएं।
हृदय रोग में लाभ के लिए – ’कपिलाय नमः’ कहकर अर्जुन का पत्ता अर्पित करें।
शनि की पीड़ा को शांत करने के लिए – ’सुमुखाय नमः’ कहकर शमी का पत्ता अर्पित करें।