उत्तराखंड के इन गांवों में अब बच्चे नहीं रहते, खेत बंजर हो गए और मकान खंडहर
स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार घटती जा रही है, कई स्कूल बंद होने के कगार पर
- मुकेश प्रसाद बहुगुणा की फेसबुक वॉल से साभार
कल हमने धूमधाम से प्रवेशोत्सव मनाया था। तीन बच्चों ने प्रवेश लिया, तो सोचा आज साथियों के साथ पास के गाँवों में घूमघाम लिया जाए, ताकि पता तो चले कि बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं।<
दस वर्ष पहले यहाँ आया था,तब से ,जब भी समय मिलता है ,गाँवों में घूम आता हूँ। दस वर्ष पहले हमारे स्कूल में 165 विद्यार्थी थे। वर्ष दर वर्ष,तमाम धूमधाम के बावजूद , संख्या घटती ही जा रही है। पिछले सत्र में 90 बच्चे थे , इस बार 65 हो सकते हैं I सबसे पास के गाँव का प्राथमिक स्कूल बंद हुए चार वर्ष हो गए, बाकी गाँवों में भी जल्दी ही बंद हो जाएंगे ,ऐसी उम्मीद है। जिन गाँवों में कभी जीवन खिलखिलाता था, आँगन भरे रहते थे, खेतों –बगीचों में हरियाली हुआ करती थी, वे अब बेजान –रूखे होते जा रहे हैं।
जब भी जाता हूँ ,किसी एक और मकान में नया ताला लगा पाता हूँ, जिन मकानों में जंक लगे पुराने ताले हैं ,उनकी दीवारों की दरार चौड़ी होती नजर आती है । दरकती छत कुछ और नीचे खिसक जाती है I पिछले वर्ष पास के गाँव में एक मृत्यु हुई ,तो अर्थी को कन्धा देने के लिए कोई जवान मौजूद न थाI
हर गाँव में,हर बार ही एक नया शिलापट नजर आता है, जनप्रतिनिधि द्वारा किए गए विकास कार्य का इतिहास बताने के लिए। बेशुमार ग्राम –ब्लाक –जिला –राज्य –राष्ट्रीय विकास योजनाओं के बावजूद गाँव खंडहर कैसे हो गए, कोई नहीं जानता, वार्ड से लेकर ब्लाक –जनपद – विधानसभा –संसद तक एकमात्र जुझारू संघर्षशील –ईमानदार – विकास के लिए समर्पित जनप्रतिनिधियों की भरी पूरी फ़ौज होने के बाद भी अगर खेत-खलिहान उजड़ रहे हैं ,तो इसका कारण किसी को नहीं पता।
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किसी को नहीं पता अंतिम आदमी के विकास के लिए चौबीस घंटे काम करने वाले ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों के होने के बावजूद गाँव का अंतिम व्यक्ति कब कैसे और क्यों गाँव छोड़ गया ?
मैं अक्सर स्कूल में अपने साथियों को कहता हूँ कि ढाई –तीन वर्ष बाद जब मैं रिटायर होऊंगा तो मेरी विदाई के लिए शाल खरीदते समय आठ दस ताले भी खरीद लेना। स्कूल बंद करते समय लगाने के लिए और अपने रिटायर होने के लिए कोई और विभाग तलाश कर लेना।इस बात पर अगर किसी को हँसी आती है, तो समझ लीजिए कि हंसने वाला दुनिया का सबसे क्रूर इंसान है…।
कहानियों में पढ़ा था कि किसी समय राजा लोग अपने राज्य की जनता का हाल जानने के लिए वेश बदल कर घूमा करते थे। हाल जानते ही वेश त्याग कर अपने असली रूप में आ जाते थे I अब अगर लोकतंत्र के राजा वेश बदल कर इन गाँवों में आएं ,तो यकीन करिए वे जिन्दगी भर अपना असली चेहरा खुद भी देखना पसंद नहीं करेंगे। देखते ही आईने दरक जाएंगे, शीशे चटख जाएंगे।
शेष …अगले वर्ष धूमधाम से प्रवेशोत्सव मनाने के बाद।
- लेखक मुकेश प्रसाद बहुगुणा, राजकीय इंटर कालेज मुंडनेश्वर, जिला पौड़ी गढ़वाल में वरिष्ठ अध्यापक हैं। यह लेख मिरचौड़ा एवं सांगुड़ा गांव के हालात को बताता है। शिक्षक इन गांवों के बच्चों को विद्यालय में प्रवेश दिलाने के लिए गए थे।