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कहानीः ये किसकी पूंछ लगाकर कूद रहे बंदर

अफ्रीका में बिना पूंछ वाला एक जीव पाया जाता है, जिसका नाम डैसी (Dassie) है। इसकी पूंछ क्यों नहीं है, इसका जवाब एक लोककथा से मिलेगा, जो अक्सर सुनाई जाती रही है। बहुत पुरानी बात है, जंगल का राजा शेर ही एक मात्र ऐसा जानवर था, जिसकी पूंछ थी। शेर ने सोचा, क्यों न सभी जानवरों के लिए पूंछ का इंतजाम किया जाए। उसने जानवरों के लिए पूंछ का इंतजाम किया।

जब सभी जानवरों के लिए पूंछ तैयार हो गईं, तो उसने पहले अपनी प्रजातियों के जीवों को पूंछ लेने के लिए अपनी गुफा पर  बुलाया। इसके बाद अन्य जानवरों को बुलाया गया। शेर ने डैसी ( चूहे की तरह दिखने वाला जीव) के लिए बहुत आकर्षक पूंछ बनाई थी। बंदर भी पूंछ लेने के लिए शेर की गुफा की ओर रवाना हुआ।

बंदर ने रास्ते में मिले डैसी से पूछा, क्या तुम पूंछ लेने नहीं जा रहे हो। बहुत आलसी जीव डैसी ने बंदर से कहा, नहीं मैं नहीं जा पा रहा हूं। क्या तुम मेरी पूंछ लेकर आ सकते हो। बंदर ने कहा, ठीक है दोस्त। मैं तुम्हारी पूंछ ले आऊंगा।

शेर की गुफा में आकर सभी जानवर अपनी-अपनी पूंछ लगवा रहे थे, जिस पर जो पूंछ फिट हो रही थी, लगा रहा था। शेर ने डैसी का नाम पुकारा तो बंदर ने कहा, डैसी ने मुझे अपनी पूंछ ले जाने को कहा है। शेर ने कहा, डैसी बहुत आलसी है, ठीक है तुम उसकी पूंछ ले जा सकते हो। मैंने उसके लिए बहुत शानदार पूंछ बनाई है। बंदर ने अपनी पूंछ फिट कराई और डैसी के घर की ओर रवाना हो गया।

बंदर ने रास्ते में सोचा कि डैसी की पूंछ तो काफी अच्छी लग रही है। मैं उसकी पूंछ लगा लेता हूं। बंदर ने तुरंत अपनी पूंछ हटाई और डैसी की पूंछ लगा ली। उधर, डैसी ने बंदर का काफी इंतजार किया, लेकिन जब बंदर नहीं पहुंचा तो वह निराश हो गया। आलसी होने की वजह से वह बंदर के पास अपनी पूंछ लेने नहीं गया। डैसी ने सोचा कि पूंछ नहीं थी, तब भी वह रह ही रहा था। आज भी डैसी के पास पूंछ नहीं है। वहीं बंदर उसके लिए बनाई शानदार पूंछ लेकर उछल कूद मचा रहा है।

 

 

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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