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लौंग में है कई बीमारियों को भगाने की ताकत

आयुर्वेद में लौंग का काफी महत्व है। लौंग को कई रोगों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि यह एक तरह का मसाला है, जो भारतीय भोजन में काफी प्रयोग की जाती है। अगर रोजाना लौंग का सेवन किया जाए तो यह कई तरह की बीमारियों को दूर करती है।

लौंग में मौजूद यूजेनॉल साइनस और दांद दर्द जैसी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को दूर करने में सहयोग करता है। सर्दी जुकाम होने पर लौंग खाने या फिर इसकी चाय पीने से भी फायदा मिलता है। लौंग मुंह और सांस की बदबू को दूर करती है। लौंग को चूसने से खांसी की समस्या नहीं रहती। जब तक मुंह में लौंग है, खासी नहीं आ सकती।

लौंग के तेल की कुछ बूंदों को साफ कपड़े या रूमाल पर लगाकर रखें और इसको कुछ समय के अंतराल पर सूंघने से जुकाम की दिक्कत नहीं रहती। नाक बंद होने की समस्या से भी छुटकारा मिल जाता है। लौंग को पिसकर हलके गर्म पानी में मिला लें। इसको पीने से जी मचलने और ज्यादा प्यास लगने की समस्या नहीं होती। 

लौंग को पीसकर इसका लेप सिर में लगाने से सिरदर्द दूर हो जाता है। इसका तेल भी सिर में लगा सकते हैं, आराम मिलेगा। गर्म तवे पर लौंग को भूनने के बाद पीस लें। पीसी हुई लौंग को शहद में मिलाकर चाटने से काली खांसी में आराम मिलता है। पीसी हुई लौंग में मिश्री मिलाकर शरबत बना लें। यह शरबत पीने से हृदय की जलन मिट जाती है। इसके अलावा लौंग के और भी बहुत सारे फायदे हैं। 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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