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कहानीः जब कौआ करने लगा बाज की स्टाइल में शिकार

वसंत का सुहावना मौसम था। पहाड़ पर भेड़ों का झुंड हरी घास चर रहा था। भेड़ों के छोटे बच्चे खेलते हुए एक दूसरे के साथ मौज मस्ती कर रहे थे। इनमें सफेद रंग का घुंघराले बालों वाला एक मैमना बड़ा खूबसूरत लग रहा था। वह कभी घास के मैदान में लेट जाता और कभी कलाबाजियां लगाता। सभी भेड़ों को खुश देखकर चरवाहा काफी संतुष्ट था। उसने सोचा क्यों न कुछ देर पेड़ के नीचे लेटकर थकान दूर कर लूं।

पास ही एक पुराने पेड़ की छांव में चरवाहा लेट गया और पता ही नहीं चला कि उसको कब नींद आ गई। वह सपनों की दुनिया में चला गया। अचानक एक बाज ऊंचाई से भेड़ों के झुंड तक पहुंचा और छोटे से मैमने को उठा ले गया। अन्य भेड़ों ने मैमने का शोर सुना, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। वहीं गहरी नींद में खोए चरवाहे को इस घटना का पता नहीं चल पाया।

जिस पेड़ के नीचे चरवाहा सो रहा था, उसकी शाखा पर बैठा कौआ पूरी घटना को देख रहा था। कौए ने सोचा कि चरवाहा तो सो रहा है, क्यों न वह भी बाज की तरह किसी भी भेड़ को अपना भोजन बना ले। कब तक बासा और बदबूदार भोजन करता रहेगा। कौए ने पेड़ से उड़ान भरकर पहले झुंड का चक्कर लगाया। उसने तय कर लिया कि उसको किस भेड़ को अपना भोजन बनाना है। उसका अंदाजा था कि किसी भी भेड़ को अपनी चोंच से पकड़कर उठा लेगा और फिर घोसले में लाकर उसको खा जाएगा।

कौए स्वयं से कह रहा था कि बाज की तरह वह भी पक्षी है। जब बाज भेड़ को चोंच से पकड़कर उठा सकता है तो वह क्यों नहीं। कौए ने जिस भेड़ को भोजन बनाने का मन बनाया था, वह भारी और बड़े सींगों वाली थी। उसे देखकर कौए के मुंह में पानी आ रहा था। वह सोच रहा था कि इस भेड़ को मारकर भोजन के लिए महीनों कहीं भटकने की जरूरत नहीं।

कौए ने बाज की स्टाइल में भेड़ को अपनी चोंच और पंजों से ऊपर उठाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। इस प्रयास में उसकी चोंच और पंजे भेड़ के घुंघराले बालों में फंस गए। काफी कोशिश के बाद भी कौआ उड़ान नहीं भर सका। भेड़ के बालों में फंसा कौआ स्वयं को छुड़ाने की कोशिश में जुटा था। कौए को अपनी पीठ पर चिपका जानकर भेड़ नाराज होकर दौड़ लगाने लगी। यह नजारा देखकर सभी भेड़ों की हंसी छूट गई और कौआ उन सबके लिए तमाशा बन गया।

कौए को अपने इस फैसले पर काफी दुख हो रहा था। अब वह भेड़ को भोजन बनाने की बात सपने में भी नहीं सोचेगा। वह तो भेड़ के घुंघराले बालों की पकड़ से मुक्त होना चाहता था। भेड़ दौड़ती हुई उस पेड़ के चक्कर लगाने लगी, जिसके नीचे चरवाहा आराम कर रहा था। शोर सुनने से जागा चरवाहा कौए को भेड़ की पीठ पर फंसा देखकर हंसने लगा।

उसने भेड़ को रोककर शांत रहने को कहा और कौए को मुक्त कराने के प्रयास करने लगा। भेड़ ने चरवाहे को बताया कि कौआ उसको अपना भोजन बनाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन स्वयं ही फंस गया। चरवाहे को कौए पर काफी गुस्सा आया। वह चाहता तो कौए को वहीं मार देता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। चरवाहे ने कौए को मुक्त कर दिया। कौए का पंजा टूट गया था। कौआ शर्मिंदा होकर उड़ता हुआ अपने पेड़ पर पहुंच गया। वह बार-बार कह रहा था कि अब कभी किसी की नकल नहीं करुंगा। मैं तो वहीं करूंगा, जो दूसरे कौए कर रहे हैं।

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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