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यादों में बहुगुणा जीः गांधी जी को किताबों में देखा था, पर आज मुलाकात हो गई

  • राजेश पांडेय

मैंने महात्मा गांधी जी को किताबों में देखा है पर आज मुझे पर्यावरण के गांधी जी से मिलने का मौका मिल गया। मैं तो उनको देखती रह गई। मेरी टीचर ने मुझे सुन्दर लाल बहुगुणा जी के बारे में बताया था कि उनकी प्रेरणा से उत्तराखंड में चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी।

यह वो आंदोलन था, जिसमें पेड़ों को बचाने के लिए महिलाएं और बच्चे पेड़ों से लिपट गए थे। आज पेड़ों को बचाने के लिए जो भी कुछ हो रहा है, उसकी बड़ी शुरुआत तो चिपको ही है, क्योंकि यह आंदोलन पूरे देश में फैला, जिससे पेड़ों की रक्षा होने लगी।

यह कहना था बिहार के मानव भारती स्कूल, पटना की छात्रा श्रीमोई का।

ज से ठीक दो साल पहले 24 मई, 2019 को बिहार से स्कूली बच्चों का एक दल देहरादून में पर्यावरणविद् सुन्दर लाल बहुगुणा जी से मिलने उनके आवास पर पहुंचा था। मानव भारती स्कूल देहरादून के साथ कम्युनिटी इंगेजमेंट प्रोग्राम के तहत बिहार से आए बच्चे बहुगुणा जी से मिले थे।

बच्चों से मिलकर मैं युवा हो गया

92 साल के बहुगुणा जी, बच्चों से बहुत प्यार करते थे।  बच्चे जब देहरादून में उनके घर पहुंचे तो वो बहुत खुश हो गए। कहने लगे, आओ बच्चों, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। तुम तो मेरे लिए तरुणाई का झरना हो। देहरादून के शौर्य ने बहुगुणा जी से पूछा था, तरुणाई क्या होता है।

बहुगुणा जी, शौर्य के सवाल पर मुस्कराते हुए बोले,तरुणाई का मतलब होता है युवा होना। उन्होंने बच्चों को एक कहानी सुनाई कि एक बूढ़ा व्यक्ति अपने दोस्तों से कहता है कि मैं तो तरुणाई के झरने से पानी पीकर आया हूं, इसलिए मैं तो युवा हो गया।

बूढ़े के साथी कहते हैं कि हमें भी पिलाओ तरुणाई के झरने का पानी। इस पर वह अपने साथियों से कहते हैं कि मैं तो हाथ लगाकर वहीं पी आया हूं पानी। अपने साथ लाया थोड़े ही हूं। आप सब उस झरने पर जाओ। बहुगुणा जी कहानी सुना रहे थे और सब बच्चे शांत होकर उनको सुन रहे थे।

उन्होंने हंसते हुए कहा, तुम सबसे मिलकर मैं युवा हो गया। दाड़ी पर हाथ लगाते हुए कहने लगे कि मेरी दाड़ी गायब हो गई। बच्चे खूब हंसे।

युवाओं के पास होती हैं तीन शक्तियां

उन्होंने बच्चों से कहा, आप सब में बहुत ताकत है। आप सभी युवाओं के पास आपकी तीन शक्तियां, आपका हेड यानी मस्तिष्क, जिससे आपके पास नये विचार आते हैं और कुछ रचनात्मक, सकारात्मक सोचते हैं।

दूसरा आपका हार्ट यानी दिल, जो स्नेह से लबालब रहता है। आप सबके प्रति प्रेम का भाव रखते हैं।

तीसरा आपके हैंड यानी हाथ, जिनसे आप कुछ ऐसा करते हैं, जो दूसरे लिए परोपकार होता है। आपको ये तीनों सामर्थ्यवान बनाते हैं।

बच्चों ने मुलाकात के बाद बताया कि बहुगुणा जी, इतने बड़े व्यक्ति हैं और उनके साथ फर्श पर बैठकर बातें कर रहे थे। वो उनसे ऐसे मिले, जैसे मानों वर्षों से जानते हों।

24 मई, 2019 को बहुगुणा जी से मुलाकात। – (फाइल फोटो)

पेड़ किसी से कुछ नहीं लेता, वो तो दाता है

बहुगुणा जी ने बच्चों से कहा, आप मुझसे पूछो, क्या जानना चाहते हो। पटना से आई अवंतिका ने पूछा, आपको चिपको आंदोलन चलाने का आइडिया कहां से आया।

इस पर उन्होंने बताया कि मैंने देखा कि पेड़, जो किसी से कुछ नहीं लेता, बल्कि देता ही है। वह आपको स्वच्छ वायु देता है, खाना देता है, छाया देता है, जल देता है, सबसे महत्वपूर्ण तो आक्सीजन है, जो पेड़ों के अलावा कोई नहीं देता। लेकिन इंसान तो पेड़ों को काट रहा है, उस पेड़ को काट रहा है, जो किसी से कुछ नहीं लेता, बल्कि वो तो दाता है।

पेड़ों को तो बचाना होगा। पेड़ों को बचाने के लिए गांव के लोग, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे, पेड़ों से लिपट गए। ठेकेदार के लोग पेड़ों को काटने की हिम्मत नहीं कर पाए।

बहुगुणा जी ने बच्चों के साथ प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हुए गीत ‘धन्यवाद है प्रभु तेरा…’ गाया।

अपनी जरूरतें कम कर दो, पर्यावरण बच जाएगा

पटना के आयुष ने पूछा था कि पर्यावरण को बचाने के लिए बच्चे क्या करें। बहुगुणा जी ने कहा, अपनी जरूरतें कम कर दो। पर्यावरण बच जाएगा। पेड़ की पैदावार ही हम सबके जीवन का आधार हैं।

आप जानते हैं , पेड़ दस पुत्र के समान होता है। उनसे एक बच्चे ने पूछा कि आपने सभी को आंदोलन के लिए कैसे तैयार किया। बहुगुणा जी ने कहा, दूसरों को जोड़ने से पहले स्वयं से शुरुआत करनी होती है।

24 मई, 2019 को बहुगुणा जी से मुलाकात। फाइल फोटो

महिलाओं को अधिकारों के लिए जागरूक किया

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप बहुगुणा ने बच्चों को अपने पिता महान पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा जी और माता विमला बहुगुणा जी के संघर्ष की जानकारी दी। बताते हैं कि जब वो (प्रदीप बहुगुणा) छह साल के थे, तब शराब बंद कराने के लिए आंदोलन चल रहा था। उनको भी माता जी के साथ जेल में बंद कर दिया गया था।

बताते हैं कि पिताजी और माताजी ने गांव की बेटियों को एजुकेशन देने के लिए रात्रिशाला शुरू कीं। उन्होंने महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताया। समाज की प्रगति के लिए उन्होंने बहुत सारे आंदोलन चलाए। आपको पता है कि चिपको आंदोलन के बाद पूरे देश में पहाड़ों पर पेड़ों को काटने पर रोक लगा दी गई थी। सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया था।

बहुगुणा जी चावल नहीं खाते थे

बहुगुणा जी ने बच्चों से पूछा कि हमें पेड़ों से क्या मिलता है। बच्चों ने बताया, पानी, हवा, खाना, फल, लकड़ी, छाया और आक्सीजन मिलते हैं। बहुगुणा जी ने बच्चों को शाबास कहा।

बच्चों को बहुगुणा जी ने बताया था कि वो चावल नहीं खाते। बच्चों ने पूछा क्यों, पता चला कि चावल बनाने में काफी पानी इस्तेमाल होता है, इसलिए वो चावल नहीं खाते। वो सेब भी नहीं खाते, क्योंकि सेब की लकड़ी को काटा जाता है फलों की पेटियां बनाने के लिए।

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Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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