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अंधविश्वास में जब मैंने नाना को लिखी थी मां के निधन की झूठी चिट्ठी

मां से बात की, तो बचपन की नादानी का एक किस्सा सामने आया

राजेश पांडेय। डोईवाला

मां से बात की, तो बचपन की नादानी का एक किस्सा सामने आया, जिस पर पछतावा करने के लिए अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है। मैं बहुत छोटा था, यही कोई पांचवीं क्लास में था। मां मुझसे चिट्ठी पत्री लिखवातीं, घर के राशन का पर्चा बनवातीं। थोड़ा बहुत लिखना जानता था।

एक दिन मां के सिर पर एक कौआ पंजा मारकर उड़ गया। उस समय यह अंधविश्वास था कि कौआ सिर पर पंजा मार दे तो समझो कुछ खराब होने वाला है। इसका उपाय यह बताया जाता था कि जिसके सिर पर कौआ पंजा मारता है, उनके निधन की सूचना चिट्ठी से उनके करीबी रिश्तेदार को भेज दो, तो कुछ खराब नहीं होगा। मां ने मुझसे कहा कि “नाना को चिट्ठी लिख दो।”

वो जमाना फोन पर आजकल की तरह बात करने का नहीं था। न ही पीसीओ थे। रिश्तेदारों का हाल जानने का एक मात्र सस्ता एवं उपयुक्त साधन चिट्ठी थी।

पर, हम दोनों मां और मैं, इस बात से अनभिज्ञ रहे कि यह चिट्ठी देहरादून से लगभग साढ़े चार सौ किमी. दूर यूपी के एटा जिला स्थित एक गांव में रह रहे नाना नानी के लिए कितनी कष्टकारी होगी। मैंने खाकी रंग वाले पोस्टकार्ड पर चिट्ठी लिख दी और कार्ड का एक कोना काट दिया। कोने से चिट्ठी को काटने का मतलब यह था कि चिट्ठी दुखद घटना वाली है। यह बात हमने पापा को भी नहीं बताई, नहीं तो हम दोनों को डांट पड़ना तय था।

चिट्ठी भेजने के बाद मैं और मां भूल गए कि हमने नाना नानी की परेशानियों को बढ़ा दिया है। करीब दस दिन बाद, मेरे नाना नानी घर की गली के बाहर किसी से हमारे घर का पता पूछते दिखे। वो हमारे घर पहली बार आ रहे थे। उनका मानना था कि शादी के बाद बेटी के घर उसके मां पिता को कम ही जाना चाहिए या फिर नहीं जाना चाहिए। पर, वो चिट्ठी उनके लिए पहाड़ टूटने के समान थी।

मुझे याद है कि दोनों घबराए हुए थे। वो हमारे घर की गली के बाहर पता पूछ रहे थे। मैं अपने नाना नानी को पहचानता था। मैं कई बार कई-कई दिन नाना के घर रहा था। नाना ने मुझे देखकर प्यार से लिपटा लिया। नाना नानी वहीं सड़कर पर मेरे गाल-हाथ चूमने लगे। नानी बोलीं, “क्या हुआ मां को।” मैंने कहा, “मां तो ठीक है। घर चलो।”

जैसे ही मैंने कहा, मां ठीक हैं, घर चलो। दोनों मेरे चेहरे को देखने लगे। मानों उन्हें लगा कि यह बच्चा हमारी नाती नहीं है। पर, मेरी इस बात से उनके चेहरे पर थोड़ी राहत थी।

हम घर पहुंचे और नाना नानी ने मां को सकुशल देखा तो बहुत खुश दिखाई दिए। पर नानी ने मां को डांटते हुए कहा, “तुमने यह चिट्ठी क्यों लिखी। हम बहुत घबरा गए थे।” मां ने उनको कौए के सिर पर पंजा मारने की बात बताई तो नाना बोले, “यह अंधविश्वास है। पंछी उड़ते हुए किसी के सिर से टकरा जाए तो इसका किसी के अच्छे बुरे से क्या मतलब।”

उस वर्षों पुरानी घटना को याद करके मां की आंखें नम हो जाती हैं और कहती हैं, “अंधविश्वास सबसे खराब बात है। बिल्ली का रास्ता काटना कहां से खराब बात है। वो तो जानवर है कि उसको भी रास्ते पर चलने का अधिकार है।”

मां के साथ और भी बहुत सारी बातें इस वीडियो में सुनिए…

 

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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