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शोधकर्ताओं ने ड्रैगन फ्रूट को बताया सुपर फूड

इंडिया साइंस वायर

कैक्टस कुल को आमतौर पर कांटेदार पौधों के लिए जाना जाता है। ऐसे में, यह जानकर हैरानी हो सकती है कि कैक्टस परिवार से संबंधित फल ड्रैगन फ्रूट दुनियाभर में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

ड्रैगन फ्रूट के प्रचलन के साथ-साथ इसकी खेती हाल के वर्षों में भारत में बढ़ी है। इसके स्वास्थ्यवर्द्धक गुणों को देखते हुए इस पर देश-विदेश में शोध हो रहे हैं। भारतीय शोधकर्ताओं के ऐसे ही एक अध्ययन में ड्रैगन फ्रूट (Hylocereus species) में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की पड़ताल की है। ड्रैगन फ्रूट की कम कैलोरी और पोषक गुणों के कारण इसे सुपर-फूड की संज्ञा दी जा रही है।

ड्रैगन फ्रूट को यह नाम उसकी बाहरी त्वचा और पपड़ीदार स्पाइक्स के कारण दिया गया है। हालांकि नाम सुनने में भले ही लगे, लेकिन ड्रैगन फ्रूट में विभिन्न पोषक तत्वों के साथ भरपूर मात्रा में पानी और अन्य महत्वपूर्ण खनिज होते हैं।

इसका स्वाद हल्का मीठा होता है और इसकी कीवी और सेब की मिलीजुली बनावट होती है। इस फल का रसदार गूदा बेहद स्वादिष्ट होता है।

कैक्टस कुल में इसके फूल बेहद सुंदर माने जाते हैं। इसीलिए, इसे ‘नोबेल वुमन’ या ‘क्वीन ऑफ द नाइट’ के नाम से भी जाना जाता है।

इस फल के उच्च पोषण मूल्य की जानकारी तो पहले से उपलब्ध है। लेकिन, फल की किस किस्म में बेहतर पोषण होता है और अच्छी उपज के लिए किसान को किस पर विचार करना चाहिए, इसके बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है।

इसी बात को ध्यान में रखकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं की एक टीम ने भारत में उगायी जाने वाली ड्रैगन फ्रूट के सात लोकप्रिय क्लोनों की जाँच की है, जिनमें दो में सफेद गूदे वाले फल और पाँच में लाल गूदे वाले फल शामिल हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि सफेद गूदे वाले ड्रैगन फ्रूट, लाल गूदे वाले फलों के मुकाबले उपज और शर्करा की मात्रा के मामले में बेहतर होते हैं। वहीं, लाल गूदे वाले फल फाइबर, फेनोलिक्स और एंटी-ऑक्सिडेंट के मामले में बेहतर पाए गए हैं।

अमीनो एसिड से भरपूर ड्रैगन फ्रूट में हिस्टिडीन, लाइसिन, मेथियोनीन, और फेनिलएलनिन जैसे तत्व पाए जाते हैं। ड्रैगन फ्रूट में कैफिक एसिड, फेरुलिक एसिड, विटामिन-सी, विटामिन K1, पोटेशियम और आयरन भी पाया जाता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि दोनों प्रकार के फल अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आदर्श हैं, क्योंकि इनमें कैलोरी कम होती है।

ड्रैगन फ्रूट को स्टेम कटिंग के माध्यम से संवर्द्धित किया जाता है। अध्ययन के दौरान, आईसीएआर-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के प्रायोगिक फार्मयार्ड में क्लोन लगाए थे। 12 से 15 महीनों में इसमें फूल आना शुरू हो जाते हैं और फल लगने के 30-35 दिनों बाद वे तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।

ड्रैगन फ्रूट की बेल दिखने में कैक्टस जैसी होती है, जिसे सहारा देने के लिए खंभों का उपयोग किया जाता है, ताकि फलों की बेलें फैल सकें।

लाल किस्मों के गूदे में फेनोलिक एसिड की मात्रा अधिक होती है। यह बीटासायनिन के अलावा विटामिन-सी, विटामिन-ई और विटामिन-के से भी भरपूर होता है, जिसे कई स्वास्थ्य लाभ के लिए जाना जाता है।

घुलित शर्करा और कार्बनिक अम्ल सहित कुल घुलनशील ठोस पदार्थ भी इसमें भरपूर मात्रा में पाए गए हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि जब किसान खेती के लिए क्लोन चुनते हैं, तो विभिन्न किस्मों के दाम किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण कारक होते हैं। इसलिए, विभिन्न किस्मों के गुणों का पता लगाना आवश्यक होता है।

शोधकर्ताओं में शामिल जी. करुणाकरण कहते हैं – ‘कुल घुलनशील ठोस और अम्लता का संयोजन इसे बेहतर स्वाद देता है।’ सफेद गूदे वाले फलों में उच्च फाइबर और शर्करा कम होती है। शोधकर्ता कहते हैं, ‘वजन घटाने में यह मददगार हो सकता है।

इसके साथ ही, मधुमेह रोगियों के लिए यह आदर्श फल हो सकता है। उपज और जैव-रासायनिक दोनों मानकों के मामले में फलों की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए, सफेद गूदे वाले हिरेहल्ली व्हाइट ड्रैगन फ्रूट क्लोन और लाल क्लोनों में हिरियूर राउंड रेड बेहतर पाए गए हैं।

दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका और एशियाई मूल का फल डैगन फ्रूट को पिताया या पितहाया के नाम से भी जाना जाता है। ड्रैगन फ्रूट की खेती दक्षिण-पूर्व एशिया, अमेरिका, कैरिबियाई क्षेत्र और ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के उष्ण-कटिबंधीय और उपोष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों में मुख्य रूप से की जाती है।

इस अध्ययन में, आईसीएआर-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु के शोधकर्ता एम. अरिवलगन, जी. करुणाकरण, टी.के. रॉय, एम. दिन्शा, बी.सी. सिंधु, वी.एम. शिल्पाश्री, जी.सी. सतीश और के.एस. शिवशंकर शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका फूड केमिस्ट्री में प्रकाशित किया गया है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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