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अच्छी सेहत के लिए बहुत कुछ है कैथा यानी वुड एप्पल में

भारत में ऐसे कई परंपरागत भोजन हैं, जिनका उपयोग कम हो गया है। इन्हीं में से एक है कैथा। कैथा का पेड़ सामान्यतः सभी स्थानों पर देखने को मिलता है, परंतु खास तौर पर यह शुष्क स्थानों पर उगने वाला फल है।
कैथा लगभग सभी तरह की मिट्टी में लगाया जाता है और विशेषकर सूखे क्षेत्रों में इसका विकास जल्दी और आसानी से होता है।
इसके पौधे के विकास में देखभाल की जरूरत कम ही पड़ती है। इस पर फूल आने के 10 से 12 महीने में फल तैयार हो जाते हैं।

 इंडिया साइंस वायर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, पौष्टिकता के साथ-साथ कैथा औषधीय दृष्टि से भी बहुत फायदेमंद होता है। कैथे का कच्चा और पका फल दोनों ही खाने के लिए उपयोगी होता है।
कच्चा फल खट्टा, हल्का कसैला और पका फल खट्टा-मीठा होता है। कच्चा फल देखने में ग्रे-सफेद मिश्रित हरे रंग का और पका फल भूरे रंग का होता है। इसका छिलका वास्तव में एक खोल की तरह होता है।

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यह लकड़ी की तरह मोटा और सख्त होता है, जैसे बेल के फल का खोल होता है।
कैथा का वैज्ञानिक नाम लिमोनिया एसिडिसिमा (Limonia acidissima) है और अंग्रेजी में इसे वुड एप्पल (Wood Apple) और मंकी फ्रूट (Monkey Fruit) के नाम से भी जाना जाता है।
कैथा के पेड़ पर्णपाती होते हैं और जंगलों में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। कैथा के पेड़ उत्तर भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में काफी मात्रा में पाए जाते हैं।
इसके पेड़ की लकड़ी हल्की भूरी, कठोर और टिकाऊ होती है, इसलिए इसका इस्तेमाल इमारती लकड़ी के तौर पर भी किया जाता है।

कैथा विटामिन बी-12 का अच्छा स्रोत है।
मध्य भारत में इससे तैयार खाद्य पदार्थों को अच्छा और पौष्टिक माना जाता है। इससे तरह-तरह के खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं, जैसे – जैम, जैली, अमावट, शर्बत, चॉकलेट और चटनी ग्रामीण स्तर पर व्यवसाय का अच्छा साधन साबित हो सकता है।
कैथे का कच्चा फल विटामिन सी का भी अच्छा स्रोत है।
कैथे में आयरन, कैल्शियम, फोस्फोरस और ज़िंक भी पाए जाते हैं। इसमें विटामिन बी1और बी2 भी होता है।

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कैथे के सूखे बीजयुक्त गूदे में इन लवण और विटामिनों की काफी अच्छी मात्रा होती है।
कैथा के पेड़ की टहनियों और तने से निकाले गए फेरोनिया गम मधुमेह को रोकने में मदद करते हैं। यह रक्‍त प्रवाह में चीनी के प्रवाह, स्राव और संतुलन के प्रबंधन में विशेष योगदान करता है।
इसका नियमित रूप से सेवन करने से रक्‍त में ग्लूकोज़ के स्तर को कम करने में सहायक होता है।

फेरोनिया गम शरीर में इंसुलिन के उत्पादन में वृद्धि करता है।
कैथे का कच्चा फल विटामिन सी का अच्छा स्रोत है। कैथे में आयरन, कैल्शियम, फोस्फोरस और ज़िंक भी पाए जाते हैं। इसमें विटामिन बी1और बी2 भी उपस्थित होता है।
कैथा की जड़ों का भी उपयोग कर सकते हैं। इसकी जड़ से बने काढ़े का सेवन कर हृदय से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं।

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कैथा की पत्तियों से बने काढ़े के सेवन से कोलेस्ट्रॉल का स्‍तर कम होता है। इस काढ़े का प्रभाव कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं के बराबर होता है।
यह काढ़ा टिशू लिपिड प्रोफाइल और ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर को भी प्रब‍ंधित करने मे मदद करता है। दिल को स्वस्थ बनाने के लिए कैथा की जड़ों और पत्तियों से बने अर्क का प्रयोग भी कर सकते हैं।
पेट के अल्सर या बवासीर वाले लोगों के लिए भी कैथा की सलाह दी जाती है, क्योंकि इसकी पत्तियों में टैनिन होता है, जो सूजन को कम करने के लिए जाना जाता है।

कैथा में पेट को साफ करने वाले गुण भी होते हैं, जो कब्ज से राहत दिलाने में मदद करते हैं।
कैथा में एंटीफंगल और परजीवी विरोधी गतिविधियां भी होती हैं, जो पाचन प्रक्रिया को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
कैथा स्कर्वी रोग से बचाव और इलाज में सहायक है। यह लिवर को डैमेज होने से बचाने वाला, लिवर और हार्ट टॉनिक है।
वैज्ञानिक कैथे का इस्तेमाल बीमारियों से बचाव के लिए , स्वास्थ्यवर्धक के तौर पर और पोषण -समृद्ध आहार बनाने के लिए करने के पक्ष में हैं।

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कैथे में फाइटोकेमिकल भी पाए जाते हैं। इसमें एलकेलोइड और पॉलीफेनोल वर्ग के तत्व काफी अच्छी मात्रा में होते हैं, जो इसे कई रोगों से बचाव, रोकथाम और इलाज में सक्षम बनाते हैं।
म्यांमार सीमा क्षेत्र में महिलाएं कैथा का उपयोग कॉस्मेटिक के रूप में करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में डेंगू और मलेरिया का प्रभाव अधिक होता है।
इंडोनेशिया में कैथा का गूदा शहद मिलाकर सुबह नाश्ते में खाया जाता है। साथ ही थाईलैंड में इसके पत्तों को सलाद में मिलाकर खाया जाता है।

कुछ स्टडी में पाया गया है कि गर्भवती महिलाओं की त्वचा में कैथा की लुग्दी का लेप लगाने से उन्हें मलेरिया के प्रभाव से बचाया जा सकता है।
इस फल से बने लेप का उपयोग त्वचा की जलन से छुटकारा पाने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।
दक्षिण भारत में कैथा के गूदे को ताल मिसरी और नारियल के दूध के साथ मिलाकर खाया जाता है। इससे जेली और चटनी भी बनाई जाती है।

वैसे तो किसी और फल की तरह कैथे के सेवन से कोई नुकसान नहीं है, पर अगर आप किसी तरह की विशेष दवाइओं का सेवन कर रहें है तो डॉक्टर की सलाह से इसका सेवन करें।
पके हुए कैथा के फल पाचन के लिए भारी होते हैं। इसलिए अधिक मात्रा में सेवन पर यह अपचन, पेट दर्द और गैस जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है। किसी भी अन्य फल की तरह कैथे के अधिक मात्रा में सेवन से बचें।
(इंडिया साइंस वायर)

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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