FeaturedShort story- Moral Values

जब भेड़िये के गले में फंस गई हड्डी

एक बार की बात है। एक जंगल में आलसी भेड़िया रहता था। उसके घर के पास एक तालाब था। कई जानवर तालाब पर आकर पानी पीते थे। भेड़िया हमेशा भोजन की तलाश में रहता। एक दिन, वह तालाब के पास बैठा था। तभी उसे मरा हुआ जंगली भैंसा दिखाई दिया। भेड़िये ने स्वयं से कहा, इसे कहते हैं किस्मत। मैं जितना चाहूं खा सकता हूं। यह सोचकर उसके मुंह में पानी भर गया।

वह फटाफट पूरा भैंसा खाना चाहता था। उसने विचार किया, अगर कोई जानवर आकर अपना हिस्सा मांगने लगा तो उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए किसी के भी आने से पहले इस भैंसे को डकार लेना जरूरी है। भेड़िया तेजी से खाने लगा। वह खाए जा रहा था, बिना चबाए हुए। वह बहुत तेजी से मुंह चला रहा था।

जल्दबाजी में हड्डी का एक टुकड़ा उसके गले में फंस गया। ओह! यह क्या हो गया। मेरा दम घुट रहा है। मुझे बेचैनी हो रही है। यह हड्डी तो बाहर भी नहीं निकल रही है। भेड़िया रोने लगा। वह खांसना चाहता था, लेकिन हड्डी की वजह से खांसने का प्रयास निरर्थक साबित हुआ। ओह, गले में दर्द हो रहा है। क्या करूं।

भेड़िया को अचानक नदी के पास रहने वाले सारस की याद आ गई। वही सारस, जिसकी लंबी चोंच सुराई के अंदर से भी खाना निकाल लेती है। भेड़िया सारस के पास पहुंचा और बड़ी विनम्रता से प्रार्थना करने लगा, मेरे प्रिय सारस, मेरे गले में एक हड्डी फंस गई है। यदि आप इसे अपनी लंबे चोंच से बाहर खींच लेंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा। आपको एक शानदार उपहार दूंगा।

सारस को भेड़िये पर दया आ गई। उसने भेड़िये से अपना मुंह खोलने के लिए कहा। जैसे ही भेड़िये ने मुंह खोला, सारस ने अपनी चोंच उसके मुंह में डाली और हड्डी को बाहर निकाल दिया। हड्डी बाहर निकलते ही भेड़िया बोला, आह, अब जाकर राहत मिली। सारस ने पूछा, मेरा उपहार कहां है?

भेड़िये ने जवाब दिया, कौन सा उपहार है। सारस ने नम्रता से कहा, आपने ही कहा था कि अगर मैं आपके गले से हड्डी को निकालूँगा तो आप मुझे एक उपहार देंगे। भेड़िये ने कहा, क्या यह उपहार काफी नहीं है कि मैंने तुम्हारा जीवन बख्श दिया। तुमने मेरे मुंह में अपनी चोंच डाल दी और जीवित बच गए। मैं चाहता तो तुम्हारे सिर को कुचल देता। अभी तक तो तुम मेरे पेट में होते।

भेड़िये का यह जवाब सुनकर सारस स्वयं को असहाय महसूस कर रहा था। उसके पास भेड़िये को देने के लिए कोई जवाब नहीं था। उसने भविष्य में किसी भी ऐसे जानवर की मदद नहीं करने का निश्चय कर लिया।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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