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खुद को पहचानों और आगे बढ़कर पा लो सफलता

देहरादून। न्यूज लाइव ब्यूरो

International institute of Psychometric counseling देहरादून ने अपने आप को पहचानो विषय पर सेमिनार में बताया कि किस प्रकार व्यक्ति अपने गुणों को पहचानकर अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकता है और समाज व परिवार मे सौहार्द्रपूर्ण  वातावरण बना सकता है। सेमिनार का संचालन करते हुए संस्था के संस्थापक अध़्यक्ष डॉ. मुकुल शर्मा ने अपनी क्षमताओं को पहचान कर उनमें सुधार किया जा सकता है और अपने जीवन को बदला जा सकता है। सेमिनार में देहरादून, दिल्ली सहित अन्य जगहों से भी विशेषज्ञ शामिल हुए।

सेमिनार का संचालन करते हुए मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकुल शर्मा।

इस मौके पर तृप्ति ने कहा कि आज लोग भ्रम में जीना पसंद करते हैं। अपने आप को जानने का प्रयास नहीं करते। उन्होंने कहा कि यदि जीवन में अपने गुणों को पहचान लिया जाए तो बुराइयों को दूर करना भी आसान हो जाता है। एडवोकेट रवि सिंह नेगी ने कहा कि हर व्यक्ति में समान क्षमता होती है। बस थोड़ा ही अंतर होता है, हमें उसे जानना है, पहचानना है और उस पर काम करना है। जब तक हम अपने अंदर के व्यक्तित्व को नहीं पहचान पाते, तब तक व्यक्ति अपने ही बुने भ्रमजाल में घूमता रहता है। डॉ. स्वाति ने कहा कि अध्यात्म के जरिये व्यक्ति स्वयं जानता है। अध्यात्म के माध्यम से हमें पता चलता है कि हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं, वह सही है या गलत है। यदि व्यक्ति को सही और गलत का बोध हो जाए तो वह निश्चित ही सफलता हासिल कर लेता है।

सेमिनार में प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र भी बांटे गए।

सेमिनार में पूजा सुब्बा ने कहा कि हमें हमेशा सकारात्मक रहना चाहिए। सकारात्मकता जीवन का मूल है क्योंकि नकारात्मक व्यक्ति अपनी क्षमताओं को खोने लगता है और सफलता उससे कोसों दूर भागने लगती है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार सकारात्मक रहकर हम सफलता हासिल कर सकते हैं। रजनीश गोयल ने कहा कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, हर व्यक्ति में सीखने की ललक होनी चाहिए। जीवन में परेशानियां आती हैं,  उनको अपनाना चाहिए, दूर नहीं भागना चाहिए। कई बार हम परेशानी से जितना दूर भागते हैं, वह उतनी ही बढ़ती जाती है। परेशानी को अपनाएंगे तो उसका समाधान भी मिल जाता है।

डॉ.दिनेश प्रताप ने कहा कि अपने आपको ही जानना सबसे बड़ा सवाल है। लोगों को मालूम ही नहीं है कि वह किस दिशा में बढ़ रहे,  न जाने किस भीड़ में खो रहे हैं, ऐसा होना आज के समय में आम बात है। यदि जीवन में कुछ करना है, आगे बढ़ना है तो हम क्या हैं, इस सवाल का जवाब तलाशना चाहिए।सेमिनार में लोगों ने विशेषज्ञों से अपनी समस्याओं पर चर्चा की। इस मौके पर निधि सिंह, अंकिंत सिंह, आयशा, नेहा, गरिमा, ऋचा, कंचन, मीनाक्षी, अंकिंत बिषट आदि उपस्थित रहे।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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