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मैंने इंसान खरीद डाले….

मैं देवलोक में था और देवताओं के खिलाफ संग्राम करते-करते थक गया तो सीधे धरती पर चला आया। यहां अब मेरा राज है और मैंने इंसान को खरीद लिया है।अभी कुछ मेरी पकड़ से बाहर हैं। कोई बात नहीं इतना तो चलता है। यहां हर कोई मेरा नाम लेता। मुझे अपना दुश्मन मानने वाले भी दिन में दो चार बार मुझे याद कर ही लिया करते हैं। धरती का हर काम मेरी बैसाखी पर चलने का आदी हो रहा है। यहां तो मेरे खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात कहने वाले भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाए। सीधे नहीं तो किसी के जरिये उनका और मेरा संवाद जारी है। अब वो मेरी ताकत बन गए और मैं उनकी कमजोरी।

मेरे खिलाफ युद्ध का आह्वान करने वाले भीतरखाने मुझसे ही आकर मिल गए। मैं आपको नहीं बताऊंगा कि मैं कौन हूं, लेकिन आप मेरे इस सीधे संवाद से समझ गए होंगे कि मेरे नाम पर कितनों ने अपनी जिंदगी संवार ली। मुझे वो जगह बता दो, जहां मैं नहीं हूं। कोई खुलकर मेरा नाम अपने साथ नहीं जोड़ता, लेकिन इनमें से अधिकतर अपनी फसल में खाद और पानी मेरे ही नाम का डालते हैं, क्योंकि वो जानते हैं कि मैं उनकी ही नहीं बल्कि आने वाली कई पीढि़यों को हिन्दुस्तान से बाहर की सैर कराने की ताकत रखता हूं। इसलिए वो पर्दे के पीछे मेरे साथ हैं और जनता के सामने मेरे सबसे बड़े दुश्मन होने का नाटक करते नहीं थकते। क्योंकि वो जानते हैं कि मेरी मदद के बिना अपने तमाम खर्चों को पूरा कर पाना तो दूर एक कदम भी नहीं खिसक पाएंगे।

जो मुझसे दोस्ती नहीं कर रहे, कहते हैं कि उनकी जिंदगी उस तरह रफ्तार पर नहीं है, जैसी होनी चाहिए। मैंने अपने चाहने वालों को इतना प्रभावशाली जो बना दिया है कि लोग उनके ऐशोआराम देखकर मेरी ओर खींचे चले आ रहे हैं। मेरी आस्था में डूबने वाले के लिए किसी को भी खरीदना आसान हो गया है, चाहे वो इंसान हो या सामान। जो इंसान सामान की तरह नहीं बिकता, उससे मुझे डर लगता है, लेकिन यह मेरा जमाना है, इसलिए हमेशा उम्मीद रखता हूं कि वो एक दिन मेरे रास्ते पर चल ही देगा। जो फिर भी मेरी शरण में नहीं आए, वो मेरे लिए ठीक उन्हीं देवताओं की तरह हैं, जिनके डर से मैं धरती पर भाग आया था।

मैं धरती पर कहां नहीं हूं। मैं नदियों में दिखता हूं, मैं रेत की तरह बिकता हूं। मैं दफ्तर दर दफ्तर फैला हूं। सरकारी बिल्डिंगों के फर्श से अर्श तक मेरा दखल है। बनती हुई सड़कों पर मेरे नाम का कोलतार और बजरी लगता है। पुलों पर मेरे नाम का रेत, सरिया और सीमेंट बचता है। जच्चा बच्चा तक की दवाइयां तक पी गया मैं और कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाया। अस्पताल के बाहर जमीन पर पड़ा कोई कराहे तो इसमें मेरा क्या जाता है। मेरे नाम पर हुए काम ने कितनी जिंदगी लील ली होंगी, मुझे भी नहीं पता। मैं अंतिम गांव के अंतिम व्यक्ति का हिस्सा डकार जाता हूं।

मेरी वजह से किसी के मरने के बाद होने वाला करूण क्रंदन मुझे नहीं झकझोरता। आपदा में मचती चीख पुकार तक मुझको नहीं सुनाई देती। जलते जंगलों और घटती हरियाली से भी मेरा गहरा वास्ता है, लेकिन मजाल किसी की, मेरी ओर आंख उठाकर देख ले। मुझमें इतना साहस है कि मैं तुम्हारे खेतों में अंकुर तक न फूटने दूं। दफ्तरों पर लगती लाइन की वजह भी मैं ही हूं। मैं रोजगार की राह हूं और आम आदमी की आह हूं। बढ़ती महंगाई मेरी उपलब्धि है। मैंने प्रकृति पर हमला करने वालों को अपनी छाया दी है।

वो लोग जो जिंदगीभर की कुल पगार से केवल जिंदगी ही काट सकते थे, उनको मैंने कई कारों और हवेलियों का मालिक बना दिया। अपनी तनख्वाह में देश भ्रमण की भी हैसियत नहीं रखने वाले विदेशों में घूमकर सोशल मीडिया में तस्वीरें शेयर कर रहे हैं। इनके बच्चों को विदेशों के स्कूलों में दाखिला दिला दिया मैंने। जिसने अपने पद की ताकत को मेरे साथ मैच कर लिया, वो जन्नत की जिंदगी जी रहा है। मैंने अपने लोगों को आय से अधिक संपत्ति का तमगा दिया है। मैं हाईवे पर बिना किसी फ्रिक्शन के बुलेट ट्रेन वाली स्पीड पर हूं।  मेरा सबसे ज्यादा वरण उन लोगों ने किया है, जिन पर लोग विश्वास करते हैं। लोग समझते हैं कि ये हमारे लिए सहारा हैं, लेकिन धीरे धीरे जनता की समझ में आ रहा है कि ये उनका सहारा नहीं बन सकते, क्योंकि ये तो मेरी बैसाखी पर मौज कर रहे हैं।

सोचता हूं कि अगर मैं नहीं होता तो आज जैसी सियासत  भी नहीं होती। राजनीति तो पहले भी थी, लेकिन तब उसमें मेरा तड़का नहीं लगता था। जब से मैंने दखल दिया है इसका ग्लैमर बढ़ गया है औऱ लोग इस धंधे में खींचे चले आ रहे हैं। जिन्होंने मेरे स्वाद को नहीं चखा, वो धीरे-धीरे बाहर चला गया, क्योंकि मेरे बिना यहां सबकुछ बेरंग है, सब कुछ फीका है। मैं आर्थिक स्रोत का जरिया हूं, इसलिए इनकी पहली पसंद मैं ही हूं। 

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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