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मैं मौत से भी ज्यादा तकलीफ देती हूं…

जो यह कहते हैं कि ईश्वर हर जीव में विराजमान हैं, शायद वो मुझे भूल गए। मैं धरती पर जन्में हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े जीव में वास करती हूं। क्या अमीर और क्या गरीब, मैं फर्क नहीं करती। मैं किसी में शांत नहीं हो सकी। मेरे लिए घरबार तक छोड़ दिया लोगों ने। आज भी मेरे सतायो की इस दुनिया में कोई कमी नहीं है। बेमौत मारने में कोई फर्क नहीं करती मैं, चाहे कोई इंसान हो या फिर पशु। मुझे पूजेे बिना कोई इस धरती पर नहीं टिक सकता, यह मेरा दावा है।

वक्त बदल रहा है और मेरा दायरा भी। महंगाई बढ़ने के साथ मेरे सताए लोगों की तादाद भी बढ़ती जाती है। मेरी ताकत को जानना है कि मुझसे घबराकर मौत को गले लगा चुके उन लोगों के घरों में जाकर पूछ लो। किसी घर में तो तुम्हें कोई यह बताने वाला नहीं मिलेगा कि मैं कितनी तकलीफ देती हूं। क्योंकि दूध पीते से लेकर कमाने वालों तक को मौत के आगोश में जाने के लिए मजबूर जो कर दिया था मैंने। अब तो समझ गए न कि मैं मौत से भी ज्यादा तकलीफ देती हूं। मैं वोटों के सौदागरों को अपनी सियासत चमकाने का मौका भी देती हूं। जब मैं किसी की जान लेती हूं तो कुछ दिन के लिए सुर्खियां बन जाती हूं। सत्ता के खिलाफ सियासी रंग गाढ़ा हो जाता है और घिसा पिटा राग सुनकर कान पक जाते हैं अवाम के। मेरे दंश से गुमनाम मारे जाने वाले सरकारी कफन में दफन कर दिए जाते हैॆं।

मेरे लिए दिनरात दौड़ते हैं लोग। कई तो तुम को शहरों में कचरे के ढेरों के पास मिल जाएंगे, वो चाहते हैं कि मैं हमेशा शांत रहूं, भले ही शरीर तपता या कंपकंपाता रहे। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा के आसपास भी मेरे लिए जुट जाते हैं तमाम। धर्मस्थलों के आसपास मंडराने वाले इन लोगों को मुझसे लड़ने की ताकत मिलती है। किसी के लिए मैं पेट भरने और किसी के लिए दूसरों के मुंह से अन्न छिनकर गोदाम भरने का मसला हूं मैं। धन, संपदा और सत्ता के पीछे भागने वालों की बदौलत ही मेरा दायरा और रूप बदल गया।

अब मैं उनको भी तड़पा रही हूं, जिनके गोदाम भरे पड़े हैं। मैं इनमें कई रूपों में विराज गई हूं और यह तय मानिये कभी शांत नहीं होने वाली। इनकी रगों में मेरा आकार सुरसा के मुंह की तरह फैलता जा रहा है। ये मुझे धन, सत्ता, सुख, अय्यासी और समृद्धि में तलाशते हैं, उनको मौज तो कराती हूं, लेकिन शांति से बैठने नहीं देती। मैं उनमें लगातार बढ़ती जाती हूं। रोज सुनते होगे कि किसी के घर में करोड़ों में दीमक लग गई और कोई दाने-दाने को मोहताज होकर सड़कों पर जिंदगी गुजार रहा है। 

सत्ता, धन, पद प्रतिष्ठा और बाहुबल के लिए मैंने इनसे न जाने कितने लोगों का घर बार छिनवा लिया होगा। मेरे लिए किसी शरीर से प्राण तक निकालने पड़ें तो इनको मंजूर है। मैं सब में हूं, किसी को दिनभर दो वक्त के लिए सताती हूं और किसी को पूरी जिंदगी के लिए तरसाती हूं। सच तो यह है कि केवल दो वक्त वाले मुझे शांत कर देते हैं, लेकिन पूरी जिंदगी वाले तो हमेशा बेचैन हैं और हमेशा रहेंगे।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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